कक्षा 10 जनन नोट्स | Reproduction Notes Class 10 Biology In Hindi | जीवों में जनन नोट्स कक्षा 10

कक्षा 10 जनन नोट्स | Reproduction Notes Class 10 Biology In Hindi

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कक्षा 10 जनन नोट्स | Reproduction Notes Class 10 Biology In Hindi | जीवों में जनन नोट्स
  परिचय

अध्याय- 6.  जनन  (Reproduction)

* जनन :-

वह प्रक्रम, जिसके द्वारा जीव अपने जैसी संतानों की उत्पत्ति करते हैं, जनन कहलाता है |
➤ जनन जीवों का मुख्य लक्षण है , जिसके द्वारा जीवों की संख्या में वृद्धि होती है |
➤ जीवों के अस्तित्व के लिए जनन जरुरी है |
➤ जनन के द्वारा ही जीव अपनी जातियों का परिरक्षण करते हैं |
➤ जनन DNA प्रतिकृति एवं अन्य कोशिकीय संगठन का सृजन करता है |
 
* जनन के प्रकार :- जीवों में जनन मुख्यतः दो तरीके से संपन्न होता है –
1. अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction)
2. लैंगिक जनन (Sexual Reproduction) 
 
* अलैंगिक जनन :- अलैंगिक जनन से पैदा होनेवाली संतानें अनुवांशिक गुणों में ठीक जनकों के समान होती है, क्योंकि इसमें युग्मकों का संगलन नहीं होता है |
➤ इसमें जीवों का सिर्फ एक व्यष्टि भाग लेता है |
➤ इसमें युग्मक अर्थात शुक्राणु और अंडाणु कोई भाग नहीं लेते |
➤ जीवों में अलैंगिक जनन निम्नांकित कई विधियों से संपन्न होता है –
1. विखंडन (fission) 
2. मुकुलन (Budding)
3. पुनर्जनन (Regeneration)
4. बिजाणुजनन (spore Formation)
 
1. विखंडन :- विखंडन के द्वारा ही मुख्य रूप से एककोशिकीय जीवजनन करते हैं | जैसे अमीबा , जीवाणु, पैरामिशियम, एककोशिकीय शैवाल, युग्लिना आदि |
➤ विखंडन की विधियों से उत्पन्न वंशजों को अनुजात कहा जाता है |
➤ विखंडन की क्रिया दो प्रकार से संपन्न होती है —-
     (i) द्विखंडन (Binary fission)
    (ii) बहुखंडन (Multiple fission) 
 
(i) द्विखंडन :- वैसा विभाजन जिसके द्वारा एक व्यष्टि से खंडित होकर दो का निर्माण होता है , उसे द्विखंडन कहते हैं 
➤ एककोशिकीय जीव: जैसे  जीवाणु (bacteria), पैरामिशियम, अमीबा, क्लेमाइडोमोनास, युग्लिना ,यीस्ट आदि में द्विखंडन जनन की सबसे सामान्य विधि है |
➤ इस विधि में कोशिका या सम्पूर्ण शरीर का दो बराबर भागों में विभाजन हो जाता है |
 (ii) बहुखंडन :- वैसा विभाजन जिसके द्वारा एक व्यष्टि खंडित होकर अनेत व्यष्टियों की उत्पत्ति करता हो , उसे बहुखंडन कहते हैं |
2. मुकुलन :- मुकुलन एक प्रकार का अलैंगिक जनन है जो जनक के शरीर के धरातल से कलिका फूटने या प्रवर्ध निकलने के फलस्वरूप संपन्न होता है | 
➤ यीस्ट , हाइड्रा, स्पंज आदि में जनन मुकुलन द्वरा होता है |
➤ इस विधि में जीवों के शरीर से एक उभार निकलता है, जिसे मुकुल (bud) कहते है 
3. पुनर्जनन:-  इस प्रकार के जनन में जीवों का शारीर किसी कारण से दो या अधिक टुकड़ों में खंडित हो जाता है तथा प्रत्येक खंड अपने खोये हुए भागों का विकास कर पूर्ण विकसित नए जीव में परिवर्तित हो जाता है |
➤ स्पाइरोगाइरा (Spirogyra), हाइड्रा, प्लेनेरिया आदि में इस प्रकार का जनन पाया जाता है |
 
4. बिजाणुजनन :- निम्न श्रेणी के जीवों में बिजाणुजनन द्वारा बिजाणु बिजाणुधानियोंमें बनते हैं, जो अंकुरित होकर नया पौधा बनाते हैं |
➤ जीवाणु, शैवाल, कवक आदि में इस प्रकार का जनन पाया जाता है |
 
* पौधों में कायिक प्रवर्धन : 
जनन की वह प्रक्रिया जिसमें पादप शरीर का कोई कायिक या वर्धी भाग जिअसे जड़, तना, पट्टी आदि उससे विलग और परिवर्द्धित होकर नए पौधे का निर्माण करता , उसे कायिक प्रवर्धन कहते है |
➤ कायिक प्रवर्धन मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं – 
     (i) प्राकृतिक        (ii) कृत्रिम 
➤ प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन जड़ों द्वारा, तनों द्वारा, पत्तियों द्वारा संपन्न होता है |
➤ कृत्रिम कायिक प्रवर्धन की सामान्य विधियाँ हैं ——-
     कलम द्वरा, रोपण द्वारा, दाब-कलम द्वारा आदि
 इस तरह का कायिक प्रवर्धन ऑरकिड, अंगूर, गुलाब, सजावटी पौधों सामान्यतः होता हिया |
 
* ऊतक संवर्धन : 
इस प्रकार के कृत्रिम कायिक प्रवर्धन में स्वस्थ वांछित पौधे से ऊतक का एक छोटा तुल्दा काटकर ले लिया जाता है | इसे किसी बर्तन में रखे पोषक पदार्थ के घोल में रखा जाता है | बाद में यह पिंड बन जनता है जिसे कैलस (cellus) कहते हैं |
➤ ऊतक पर्वर्धन कायिक पर्वर्धन का आधिनिक विधि है |
➤ इस विधि से अनेक पौधों ; जैसे गुलदाउदी, शतावरी, ऑर्किड आदि में नए पौधे पैदा किये जाते हैं |
➤ इस विधि से तैयार किये गए पौधों को एकपूर्वज या क्लोन (clone) कहते हैं 
 
 * लैंगिक जनन :जनन की वह विधि जिसमें दो भिन्न लिंग, अर्थात नर और मादा भाग लेते हैं, उसे लैंगिक जनन कहते हैं |
नर युग्मक (male gamete)  को शुक्राणु (sperm)  तथा मादा युग्मक (female gamete) को अंडाणु (ovum)  कहते हैं |
➤ नर युग्मक आकार में छोटा एवं साचल होता है, जबकि मादा युग्मक आकार में बड़ा एवं अचल होता है |
➤ नर युग्मक तथा मादा युग्मक का संगलन निषेचन कहलाता है |
➤ निषेचन के फलस्वरूप युग्मनज या जाइगोट (zygote) का निर्माण होता है |
➤ जाइगोट विभाजित, विकसित एवं विभेदित होकर व्यस्क जीव का निर्माण करता है |
➤ लिंग के आधार पर जीवों को दो वर्गों में बाँटा गया है ——
   (i) एकलिंगी (unisexual) :- जब नर या मादा लिंग अलग अलग व्यष्टियों में पाए जाते हैं तब ऐसे जीव एकलिंगी कहलाते हैं | जैसे ; पपीता , तरबूज, मनुष्य, घोडा, बन्दर, कबूतर, मछली, मेढक, आदि |
➤ जो जीव केवल शुक्राणु उत्पन्न हैं, उन्हें नर जीव कहते हैं |
➤ जो जीव केवल अंडाणु उत्पन्न करते हैं, उन्हें मादा जीव कहते हैं | 
 (ii) द्विलिंगी (bisexual) :- जब नर और मादा लिंग एक ही व्यष्टि में होते हैं तो उसे द्विलिंगी या उभयलिंगी कहते हैं  जैसे ; सरसों ,गुड़हल, केंचुआ, क्रीमी, हाइड्रा आदि |
 
* पुष्पी  पौधों में लैंगिक जनन :-  लैंगिक जनन के लिए पुष्पी पौधों में फुल या पुष्प ही वास्तविक जनन भाग है ; क्योंकि इनमे जनन अंग उपस्थित होते हैं जो जनन क्रिया के लिए आवश्यक है |
➤ पुष्प एवं इसके जनन भाग :- सामान्यतः फुल एक डंठल के द्वारा तने से जुदा रहता है, जिसे वृंत कहते हैं | 
➤ वृंत के सिरे पर स्थित फुला हुआ तथा चपटा भाग पुष्पासन या थैलेमस कहलाता है |
➤ एक सामान्य पुष्प के चार भाग होते है —
 (i) बाह्यदलपुंज (calyx) 
 (ii) दलपुंज (corolla)
 (iii) पुमंग (androecium)
 (iv) जायांग (gynoecium)
➤ बाह्यदलपुंज और दलपुंज को सहायक अंग (accessory organs) कहते हैं |
➤ पुमंग और जायांग को आवश्यक अंग (essential organs) कहते हैं |
➤ सहायक अंग फूलों को आकर्षक बनाने के साथ आवश्यक अंगों की रक्षा भी करते हैं |
➤ आवश्यक अंग जनन का कार्य करते हैं |
➤ जब फुल में सिर्फ पुमंग या जायांग रहते हैं तो उन्हें एकलिंगी एवं दोनों की उपस्थिति होने पर उन्हें उभयलिंगी कहते है |
 
* पुमंग :- यह पुष्प का नर भाग है | इसमें कई लम्बी-लम्बी रचनाएँ होती है जिन्हें पुंकेसर (stamens) कहते हैं |
➤ प्रत्येक पुंकेसर के दो मुख्य भाग होते हैं —–
  (i) तंतु (filament) :- जो लचीला, पतला, लम्बा तथा डोरे के समान होता है और पुष्पासन से जुड़ा रहता है | 
  (ii) परागकोश (anther) :-  इसमें पीले रंग का कण पाया जाता है जिसे परागकण कहा जाता है |
 
* जायांग :- यह पुष्प का नर भाग है | यह स्त्रीकेसर (carpels) का बना होता है |
➤ स्त्रीकेसर में तीन भाग होते हैं ——
(i) अंडाशय (Ovary)   :-  यह स्त्रीकेसर का आधारीय भाग है जो पुष्पासन से जुड़ा रहता है | अंडाशय के भीतर बीजांड (ovule) रहते हैं | बिजंद के भीतर भूर्णकोष होता है जिसमें अंडाणु होते हैं 
(ii) वर्तिका (style) :- अंडाशय में  एक पतली वृंत जैसी रचना होती है जिसे वर्तिका कहते हैं |
(iii) वर्तिकाग्र (stigma) :- वर्तिका के शिखर पर फूली हुई छोटी , चिपटी एवं चिपचिपी रचना होती है, जिसे वर्तिकाग्र कहते हैं |
* परागण (pollination)  :- परागकणों के परागकोष से निकलकर उसी पुष्प या उस जाती के दुसरे पुष्पों के वर्तिकाग्र तक पहुँचने की क्रिया को परागण कहते हैं |यह निम्नांकित दो प्रकार का होता है  —-
(i) स्व-परागण (self-pollination) :- जब एक ही पुष्प के परागकण उसी पुष्प के वार्तिकाग्र पर पहुँचते हों या उसी पौधे के अन्य पुष्प के वार्तिकाग्र पर पहुँचते हों तो इसे स्व-परागण कहा जाता है |
(ii) पर-परागण (cross-pollination) :- जब एक पुष्प के परागकण दुसरे पौधे पर स्थित पुष्प के वर्तिकाग्र तक पहुँचते हों तो इसे पर-परागण कहा जाता है | इसके लिए किसी बहरी कारक (जैसे: किट, पक्षी, मनुष्य, वायु,जल आदि ) की आवश्यकता होती है | 
 
* निषेचन (fertilization) :- नर युग्मक और मादा युग्मक अर्थात शुक्राणु और अंडाणु के संयोजन (fusion) को निषेचन कहा जाता है | पादप में निषेचन की क्रिया बीजांड के भीतर होती है |


* मनुष्य का प्रजनन तंत्र :

मनुष्य एकलिंगी प्राणी है अर्थात नर-जनन अंग (male reproductive organs) तथा मादा-जनन अंग (female reproductive organs) अलाल-अलग व्यक्तियों में पाए जाते हैं | इन्हीं जनन अंगों के आधार पर मनुष्य परुष या नारी कहलाते हैं | 
 ➤ मानव जननांग साधारणतः लगभग 12 वर्ष की आयु में परिपक्व एवं क्रियाशील होने लगते हैं | इस अवस्था में बालक- बालिकाओं के शारीर में कुछ परिवर्तन होना प्रारंभ हो जाता है | यह अवस्था किशोरावस्था कहलाती है |
 ➤ किशोरावस्था में होने वाले परिवर्तन जैसे काँख एवं दोनों जांघों के बिच तथा बाह्य जनन अंग के समीप बाल आने लगते हैं | त्वचा कुछ तैलीय (oily) होने लगती है | चेहरे पर फुंसियों (pimples) का निकला प्रारंभ हो सकता है तथा विपरीत लिंग वाले व्यक्तिओं के प्रति आकर्षक उतपन्न होने लगता है |
 ➤ इस अवस्था में किशोर बालिकाओं के स्तनों में उभार आने लगता है | स्तन के केंद्र में स्थित स्तनाग्र (nipple) के चरों और की त्वचा का रंग गाढ़ा होने लगता है | मासिक चक्र प्रारंभ हो जाता है | 
 ➤ किशोर बालक में मूंछ और दाढ़ी का उगना प्रारंभ हो जाता है | वृषण में नर-युग्मक (शुक्राणु) बनने लगते हैं | नर मैथुन अंग शिशन (penis) के आकार में वृद्धि होने लगते हैं |

 

 ➤ किशोरावस्था में होनेवाले परिवर्तन की अवस्था यौवनारंभ (puberty) कहलाता है |यौवनारंभ के समय शारीर में होनेवाले परिवर्तन अंतः स्त्रावी ग्रंथियों द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन के प्रभाव से होता है |
 
* नर जनन अंग :
नर-जनन अंग में दो वृषण (testes), कई शुक्र अपवाहिकाएं (vasa efferentia), अधिवृषण (epididymis), शुक्रवाहिनी (vas deferens) , शुक्राशय (seminal), मूत्रमार्ग (urethra), तथा शिशन (penis) एवं कुछ सहायक ग्रंथियां होती है |
 
* वृषण :- वृषण पुरुष का सबसे प्रमुख जनन अंग है ; क्योंकि नर युग्मक (शुक्राणु) इसी में बनते हैं | 
 ➤ प्रत्येक पुरुष  में दो अंडाकार वृषण होते हैं जो दोनों जांघों के बिच त्वचा तथा पेशियों से बनी एक थैली में स्थित होते हैं | इस थैली को वृषणकोष (scrotum) कहते हैं |
 प्रत्येक वृषण ऊपर से तंतुमय संयोजी ऊतक के एक आवरण से ढँका होता है | प्रत्येक वृषण में कई कुंडलित नलिकाएं पाई जाती है जिन्हें शुक्रजनन नलिकाएं कहते हैं | इन्हीं नलिकाओं में शुक्राणुओं का विकाश होता है |
 
* अधिवृषण:- अधिवृषणवाहिनी एक लंबी नलिका है जो अत्यधिक कुंडलित और कासी हुई नलिका के रूप में वृषण के भीतर किनारे से चिपकी होती है | इस रचना को अधिवृषण कहते हैं | 
 ➤ अधिवृषण से एक शुक्रवाहिका नामक नलिका निकलती है | 
 ➤ अधिवृषण में शुक्राणु परिपक्व (mature) तथा सक्रीय होकर निषेचन के योग्य बनते हैं |
 
* शुक्रवाहिका :- यह करीब 25 cm लंबी नलिका है | इसकी दीवार मांसल और संकुचनशील होती है |
 ➤ शुक्रवाहिका आगे मुत्राशय तक जाती है |
 ➤ शुक्रवाहिका शुक्राशय की नलिका से जुड़कर एक स्खलन नली (ejaculation duct) का निर्माण करती है |
 
* स्खलन नली :- स्खलन नलिकाएँ एक पुरःस्थ ग्रंथि (prostate gland) में प्रवेश कर जाती है |
 ➤पुरःस्थ ग्रंथी में दोनों नालियां मूत्राशय से आनेवाली नली के साथ जुड़कर मूत्रमार्ग का निर्माण करती है |
 
* मूत्रमार्ग : यह एक लम्बी मांसल नली है | इसमें दो सहायक ग्रंथियां – पुरःस्थ ग्रंथि तथ काऊपर ग्रंथि की नालिकाएं भी खुलती है |
 ➤ मूत्रमार्ग शिशन के मध्य से होता हुआ मूत्र-जननछिद्र द्वारा बाहर खुलता है |
 ➤ मूत्रमार्ग से होकर मूत्र तथा वीर्य दोनों बहार निकलते हैं |
 
* पुरःस्थ ग्रंथि :- यह मूत्राशय के आधार पर स्थित एक छोटी, लगभग गोलाकार ग्रंथि है | 
 ➤ पुरःस्थ ग्रंथि से पुरःस्थ द्रव (prostatic fluid) स्त्रावित होता है | 
 पुरःस्थ द्रव (prostatic fluid) , शुक्राणु द्रव (spermatic fluid) तथा शुक्राशय द्रव (seminal fluid) मिलकर वीर्य (semen) बनाते हैं |
 ➤ पुरःस्थ द्रव के कारण ही वीर्य में विशेष गंध होती है |
 ➤ पुरःस्थ द्रव शुक्राणुओं को उत्तेजित करता है |
काऊपर ग्रंथि (Cowper’s gland) :-  पुरःस्थ ग्रंथि के ठीक निचे एक जोड़ी छोटी काऊपर ग्रंथियां होती है | 
 ➤ यह ग्रंथि एक क्षारीय द्रव स्त्रावित करती है जो मूत्रमार्ग की दीवार को मूत्र के द्वारा उत्पन्न खुजलाहट और जलन से बचाता है |
 ➤ मैथुन के समय यह द्रव मादा की योनि(vagina) की अम्लीयता को नष्ट करता हाई तथा शुक्राणुओं को सुरक्षित रखने में सहयोग करता है |
 
* शिशन (penis) :- यह एक मांसल, बेलनाकार रचना है जो पुरुष का मैथुन अंग है | 
 ➤ शिशन का शिखर भाग ग्लांस (glans)  कहलाता है | ग्लांस के ऊपर त्वचा का एक ढीला आवरण प्रिप्युस (prepuce) कहलाता है |
 ➤ शिशन का कार्य निषेचन के लिए शुक्राणुओं को स्त्री की योनि में पहुँचाना है |
 
* शुक्राणु (sperm) :- शुक्राणु सूक्ष्म , सक्रिय, एकगुण कोशिकाएँ हैं जिनका विकाश वृषण की शुक्रजनन नलिकाओं में होता है | ये नर युग्मक (male gametes) हैं |
 

* मादा-जनन अंग :-

मादा-जननांग में निम्नलिखित रचनाएँ पाई जाती है —-
अंडाशय (ovary) , फैलोपिअन नलिका (fallopian tube), गर्भाशय (uterus) , योनि (vagina) , वल्वा (vulva) |
 
* अंडाशय :- प्रत्येक स्त्री में एक जोड़ा अंडाशय पाया जाता है | 
  प्रत्येक अंडाशय एक पतली,पेरिटोनियम की झिल्ली के द्वारा उदरगुहा की पृष्ठीय दीवार से जुडी होती है |
➤ अंडाशय संयोजी ऊतक के एक आवरण ट्युनिका एल्बुजिनिया से ढँका होता है | इस आवरण के निचे जनन एपिथिलियम पाया जाता है जिससे अंडाणु (ova) विकसित होते हैं |
 
फैलोपिअन नलिका :- ये एक जोड़ी चौड़ी नलिकाएं हैं जो अंडाशय के उपरी भागों से शुरू होकर निचे की ओर जाती है और अंत में गर्भाशय से जुड़ जाती है |
➤ फैलोपिअन नलिका की दीवार मांसल एवं संकुचनशील होती है | इसकी भीतरी सतह पर सीलिया लगी होती है , जो अंडाणु को फैलोपिअन नलिका में नीचें की ओर बढ़ने में सहायता देती है |
➤ इस नलिका के द्वारा अंडाणु गर्भाशय में पहुँचते हैं |
 
* गर्भाशय :- यह मोटी दीवार वाली पेशीय थैली के समान रचना है जो मूत्राशय तथा मलाशय के बिच श्रोणिगुहा में स्थित होती है |
➤ गर्भाशय की गुहा में ही भ्रूण (embryo) का विकास होता है |
➤ इसकी गुहा सामान्य स्थिति में 7-8 cm लंबी होती है , परंतु भ्रूण के विकास के समय यह बढ़ जाती है 
➤ गर्भाशय का निचला भाग ग्रीवा कहलाता है | ग्रीवा निचे की ओर योनि में खुलता है |
 
* योनि :- यह एक पेशीय नली के समान रचना है जो 7-10 cm लंबी होती है | 
➤ इसकी दीवार पेशी तथा तंतुमय संयोजी ऊतक की बनी होती है |
➤ यह बाहर की ओर एक छिद्र वल्वा के द्वारा खुलती है |
➤ वल्वा एक पतली झिल्ली से ढँकी होती है जो हायमेन (hymen) कहलाती है |
➤ योनि संभोग या मैथुन (copulation) के समय नर के शिशन (penis) को ग्रहण करती है जिससे स्खलित वीर्य (semen) मादा जननांग के अन्दर पहुँचते हैं |
➤ जन्म के समय शिशु , मूत्र , मासिक स्त्राव इसी के द्वारा बाहर निकलते हैं |

कक्षा 10 जनन नोट्स | Reproduction Notes Class 10 Biology In Hindi

* मासिक चक्र (Menstrual Cycle) :- स्त्रियों में यौनारंभ सामान्यतः 10 से 12 वर्ष की आयु में होता है, अर्थात इस उम्र में नारी में जनन-क्षमता प्रारंभ हो जाती है तथा आतंरिक जननांगों में कुछ चक्रीय क्रियाएँ होती है है जिसे मासिक चक्र अथवा मासिक धर्म या मासिक स्त्राव (menses or menstruation) कहते हैं |
➤ यह चक्र 28 दिनों तक चलता है | सामान्य स्थिति में प्रत्येक 28 दिन पर इसकी पुनरावृत्ति होती है |
➤ यह क्रिया पिट्यूटरी ग्रंथी द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन के प्रभाव में होता है |
➤ मासिक चक्र के करीब 14 वें दिन केवल एक परिपक्व अंडाणु अंडाशय से बहार (अंडोत्सर्ग) निकलता है |
➤ यह अंडाणु फैलोपिअन नलिका में पँहुच जाता है | अंडोत्सर्ग के बाद फ़ॉलिकिल का बचा भाग पीले रंग का हो जाता है अब इसे पितपिंड (corpus luteum) कहते हैं |
➤ पितपिंड एक अंतः स्त्रावी ग्रंथि है इससे एक हॉर्मोन प्रोजेस्टेरोन (progesterone) स्त्रावित होता है इस हॉर्मोन के प्रभाव से गर्भाशय की दीवार और मोटी हो जाती है |
➤ 36 घंटे के भित्स्र अगर यह अंडाणु शुक्राणु के द्वारा निषेचित नहीं होता है तब यह नष्ट हो जाता है और टूटी हुई नष्ट अंडाणु 2 सप्ताह (14) दिन बाद योनि के द्वारा बाहर निकल जाते हैं इस क्रिया को मासिक स्त्राव कहते है |
➤ यह स्त्राव कारीब 3 से 5 दिनों में समाप्त हो जाता है |
➤ अगर अंडाणु शुक्राणु से निषेचित होने में सफल हो जाता है तब निषेचित अंडे का आगे विकास गर्भाशय में होने लगता है |
➤ गर्भधारण की पूर्ण अवधि में अंडाणु का निर्माण नहीं होता है |
➤ स्त्रियों में 45 से 50 वर्ष की आयु में मासिक चाकर बंद हो जाती है |
 
* लैंगिक जनन संचारित रोग :
यौन संबंध से होनेवाले संक्रामक रोग को लैंगिक जनन संचारित रोग कहते हैं |
➤ ऐसे रोग कई तरह के रोगाणुओं , जैसे बैक्टीरिया, वाइरस, प्रोटोजोआ जैसे सूक्ष्म जीवों द्वरा होते हैं |
➤ ऐसे रोगाणु मनुष्य की योनि, मूत्रमार्ग, जैसे जननांगो या मुख गुदा जैसे स्थानों के नाम और उष्म वातावरण में बढ़ते हैं |
➤ मनुष्य में होनेवाले ऐसे प्रमुख रोग निम्नलिखित है –
(i) बैक्टीरिया -जनित रोग :-  गोनोरिया (gonorrhoea), सिफलिस (syphilis), युरेथ्राइटिस (urethristis) तथा सर्विसाइटिस (cervicitis) 
(ii) वाइरस- जनित रोग :- सर्विक्स कैंसर (cervix carcinoma), हर्पिस (herpes) , एड्स (AIDS)
➤ एड्स HIV के कारण होने वाला रोग है |
(iii) प्रोटोजोआ – जनित रोग :- ट्राईकोमोनिएसीस (trichomoniasis)
 
* जनसंख्या- नियंत्रण (Population Control) :- जनसंख्या को सिमित रखना ही जनसंख्या- नियंतन कहलाता है 
➤ परिवार नियोजन से जनसँख्या को नियंत्रण किया जा सकता है |
➤ संतानोत्पत्ति निम्नलिखित उपायों से नियंत्रित की जा सकती है |—–
 
* प्रकृति वधी (Natural Method) :- मासिक स्त्राव के 14 वें दिन के समीप तथा उससे आगे के दिनों में संभोग से दूर रहा जाए तो अंडाणु का निषेचन नहीं होगा |
 
* यांत्रिक विधि (Mechanical Method) :- पुरुष कंडोम का उपयोग कर तथा स्त्री डायाफ्राम, कॉपर- T तथा लूप जैसे परिवार नियजनों के साधन को अपनाकर अंडाणु-निषेचन पर नियंत्रण किया जा सकता है |
 
* रासायनिक विधियाँ (Chemical Method) : ऐसे विधियों में विभिन्न रसायनों से निर्मित गर्भ-निरोधक साधनों का उपयोग किया जाता है | जैसे गर्भ-निरोधक क्रीम, गर्भ-निरोधक गोलियां आदि |
* सर्जिकल विधियाँ (surgical Method) :-  इसके अंतर्गत पुरुष नसबंदी (vasectomy) तथा स्त्री नसबंदी (tubectomy) किया जाता है |                 
                                The end. 
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