* उत्सर्जन :-
जीवों के शरीर से उपापचयी क्रियाओं के फलस्वरूप उत्पन्न अपशिष्ट पदार्थों (waste products) का निष्कासन उत्सर्जन कहलाता है |
*उत्सर्जी पदार्थ :-
जंतुओं के शरीर में बननेवाला सबसे प्रमुख उत्सर्जी पदार्थ कार्बन डाइऑक्साइड है ,इसके अतिरिक्त अमोनिया , यूरिया भी उत्सर्जी पदार्थ है |
* मनुष्य में उत्सर्जन :-
मनुष्य एवं समस्त वार्टिब्रेटा उपसंघ के जंतुओं में वृक्क(kidney) सबसे महत्वपूर्ण उत्सर्जी अंग है | वृक्क से सम्बद्ध अन्य रचनाएँ जो उत्सर्जन में भाग लेती है , वे है मूत्रवाहिनी (ureter) , मूत्राशय (urinary bladder) तथा मूत्रमार्ग (urethra) |
* वृक्क (kidney) :-
➜मनुष्य में एक जोड़ा वृक्क होता है | प्रत्येक वृक्क उदरगुहा की पृष्ठीय देहभित्ति से सटे हुए कशेरुकदंड के दोनों ओर स्थित होते हैं |
➜ बाँया वृक्क दाँया वृक्क की अपेक्षा कुछ ऊपर स्थित होता है |
➜ यह करीब 10 cm लम्बा , 5-6 cm चौड़ा तथा 2.5-4 cm मोटा होता है |
➜ वृक्क की भीतरी सतह हाइलम (hilum) कहलाती है | इसी जगह से वृक्क धमनी वृक्क में प्रवेश करती है तथा वृक्क शिरा बाहर निकलती है |
* मूत्रवाहिनी :-
➜ प्रत्येक वृक्क के हाइलम से एक मूत्रवाहिनी निकलती है |
➜ मूत्रवाहिनी का शीर्ष भाग जो वृक्क से बाहर निक्ल्ता है थोडा ज्यादा मोटा होता है |
* मूत्राशय :-
➜प्रत्येक मूत्रवाहिनी पीछे की ओर मूत्राशय में खुलती है |
➜मूत्राशय नाशपाती के आकार की पतली दिवार्वाली एक थैली के समान रचना है, जो उदरगुहा के पिछले भाग में रेक्टम के निचे स्थित होती है |
* मूत्रमार्ग :-
➜ मूत्राशय के पिछले भाग से एक नली निकलती है जिसे मूत्रमार्ग कहते है |
➜ मूत्रमार्ग मूत्रद्वार के द्वारा शरीर से बहार खुलता है |
* वृक्क की आतंरिक संरचना :-
➜ प्रत्येक वृक्क बाहर से संयोजी ऊतक तथा अरेखित पेशियों से बना एक पतला कैप्सूल से ढंका होता है |
➜ प्रत्येक वृक्क में एक बाहरी प्रांतस्थ भाग (cortex) तथा एक भीतरी अंतस्थ भाग (medulla) होता है | और यह 15-16 पिरामिड (pyramid) जैसी रचनाओं का बना होता है जिसे वृक्क शंकु (pyramid of kidney) कहते है |
➜ प्रत्येक वृक्क में सूक्ष्म , लम्बी, कुंडलित, नलिकाएं पाई जाती है , जो नेफ्रॉन(nephron) कहलाती है |
➜ नेफ्रॉन वृक्क की रचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है |
* नेफ्रॉन की संरचना :-
➜ प्रत्येक वृक्क में लगभग 10,000,00 नेफ्रॉन होते हैं |
➜ प्रत्येक नेफ्रॉन का आरम्भ प्याले जैसे रचना से होता है जिसे बोमेन-संपुट कहते है |
➜ यह ग्लोमेरुलस नामक रक्त कोशिकाओं के एक जाल को घेरता है |
➜ नेफ्रॉन के काय में एक समीपस्थ और एक दूरस्थ कुंडलित भाग होता है |
➜ समीपस्थ निचे आकर अवरोही चाप (descending loop) बनाता है और फिर प्रांतस्थ भाग में जाकर अधिरोही चाप (ascending loop) बनाता है |
➜ अवरोही और अधिरोही चाप के बिच एक विशेष भाग को हेनले का चाप कहते है |
➜ अधिरोही चाप आगे की ओर संग्राहक नलिका में खुलती है | जो अंत में मुत्रवाहिनी से जुड़ जाता है |
* वृक्क के कार्य :- वृक्क द्वारा मूत्र -निर्माण या उत्सर्जन की क्रिया निम्नलिखित तिन चरणों में पूर्ण होती है —
(i) ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेशन (glomerular filtration)
(ii) ट्यूबलर पुनरवशोषण (tubular reabsorption)
(iii) ट्यूबलर स्त्रवण (tubular secration)
(i) ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेशन (glomerular filtration) :- ग्लोमेरुलर एक छन्ना की तरह कार्य करता है |
➜ अभिवाही धमनिका जिसका व्यास अपवाही धमनिका से अधिक होता , रक्त के साथ यूरिया, यूरिक अम्ल, जल, ग्लुकोस, लवण, प्रोटीन इत्यादि ग्लोमेरुलस में लाती है | ये पदार्थ बोमेन -संपुट की पतली दिवार से छानकर नेफ्रॉन में चले जाते है |
➜ अपवाही धमनिका का व्यास कम होने के कारण ग्लोमेरुलस में रक्त पर दबाव बढ़ जाता है जिसके फलस्वरूप छानने की क्रिया उच्च दाब पर होती है |
उच्च दाब में फिल्ट्रेशन को अल्ट्राफिल्ट्रेशन कहते हैं |
(ii) ट्यूबलर पुनरवशोषण (tubular reabsorption) :- ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेट अब नलिकाओं से होकर गुजरता है, इसी समय कोशिकाएं उन पदार्थो को शोषित कर लेती है जिनकी आवश्यकता होती है तथा जिन पदार्थो की आवश्यकता नहीं होती उन्हें छोड़ देती है | साधारणतः सारा ग्लूकोस पुनः शोषित हो जाता हिया तथा जल की अधिक मात्रा का भी शोषण एवं दूषित पदार्थों का उत्सर्जन हो जाता है |
(iii) ट्यूबलर स्त्रवण (tubular secration) :- कभी कभी नलिका की कोशिका से कुछ उत्सर्जी पदार्थ भी स्त्रावित होकर फिल्ट्रेट से मिलता है |
➜ अब इस फिल्ट्रेट को ब्लाडर- मूत्र (bladder urine) कहते है | यह मूत्र मूत्र-नलिका से होकर गुजरता है तथा मूत्राशय में जमा होता है एवं समय-समय पर मूत्रमार्ग के छिद्र द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है |
कक्षा 10 जीव विज्ञानं जैव प्रक्रम: उत्सर्जन नोट्स
* मूत्र की बनावट :- मूत्र में साधारणतः जल, यूरिया तथा सोडियम क्लोराइड विघमान होते है |
➜ यदि एक मनुष्य 24 घंटे में 80-100 ग्राम प्रोटीन आहार के रूप में लेता है तो उसके मूत्र की प्रतिशत मात्रा निम्नलिखित होगी —-
जल(water) 96% एवं ठोस(solid) 4% (जिसमें यूरिया 2% तथा अन्य पदार्थ 2%) होता है |
➜ यूरिया प्रोटीन मेटाबोलिज्म का उपोत्पाद है | यह एमिनो अम्ल से बनता है | यूरिया की सामान्य मात्रा 100 mL रक्त में 30mg मानी जाती है |
* यूरिक अम्ल (Uric Acid ) :- रक्त में इसकी सामान्य मात्रा 2 mg – 3 mg प्रत्येक 100 mL रक्त में होती है |
➜ प्रतिदिन करीब 1.5 से 2 ग्राम यूरिक अम्ल मूत्र के साथ उत्सर्जित होती है |
➜ रक्त का पिला रंग इसमें स्थित रंजक युरोक्रोम (Urochrome) के कारण होता है |
* हिमोडायलिसिस (Haemodialysis) :- कभी-कभी विशेष परिस्थिति : जैसे संक्रमण , मधुमेह, सामान्य से अधिक उच्च रक्तचाप या किसी प्रकार के चोट के कारण वृक्क क्षतिग्रस्त होकर अपना कार्य करना बंद कर देता है | क्षतिग्रस्त वृक्क के कार्य न करने से शरीर में आवश्यकता से अधिक मात्रा में जल , खनिज या यूरिया जैसे जहरीले विकार एकत्रित होने लगते हैं जिससे रोगी की मृत्यु हो सकती है | ऐसी स्थति में वृक्क का कार्य एक अतिविकसित मशीन के इस्तेमाल से सम्पादित कराया जाता है |
➜ यह मशीन डायालिसिस मशीन (dialysis machine) कहलाता है |
➜डायालिसिस मशीन एक कृत्रिम वृक्क ( artificial kidney) की तरह कार्य करता है |
➜ इस मशीन में एक टंकी होता है जो डायलाइजर (dialyser) कहलाता है |
➜ डायलाइजर में डायलिसिस फ्लूइड (dialysis fluid) नामक तरल पदार्थ भरा होता है |
➜ इस तरल पदार्थ में सेलोफेन से बनी एक बेलनाकार रचना लटकती रहती है | यह बेलनाकार रचना आंशिक रूप से पारगम्य होती हिया तथा यह केवल विलय का ही विसरण होने देता है |
➜ डायलिसिस के समय रोगी के शरीर का रक्त एक धमनी के द्वारा निकालकर उसे 0० C तक ठंडा किया जाता है |
➜ इस रक्त को एक पम्प की सहायता से डायलाइजार में भेजा जाता है | यहाँ रक्त से नाइट्रोजनी विकार विकसित होकर डायलिसिस फ्लूइड में चला जाता है | इस तरह शुद्ध किये गए रक्त के पुनः शरीर के तापक्रम पर लाया जाता है | फिर इस रक्त को पम्प की मदद से एक शिरा के द्वारा रोगी के शरीर में वापस पहुंचा दिया जाता है |
➜डायलिसिस मशीन रक्त के शुद्धिकरण की प्रक्रिया हिमोडायलिसिस कहलाता है |
*पादप में उत्सर्जन :-
जंतुओं की तुलना में पौधों में उत्सर्जन के लिए विशिष्ट अंग नहीं पाए जाते है | इनमें उत्सर्जन के लिए विभिन्न तरीके अपनाएं जाते है |
➜ प्रकाशसंश्लेषण से निष्कासित ऑक्सीजन गैस विसरण क्रिया द्वारा पत्तियों के रंध्रो एवं अन्य भागों में अवस्थित वातरंध्रों के द्वारा उत्सर्जित होती है |
➜ वाष्पोत्सर्जन से निकलने वाला जल मुख्यतः रंध्रों द्वरा तथा पौधों के अन्य भागों से निष्कासित होता रहता है |
➜ बहुत से पौधे कार्बनिक अपशिष्टों या उत्सर्जी पदार्थों को उत्पन्न करते हैं जो उनकी मृत कोशिकाओं जैसे अंतःकाष्ट (heartwood) में संचित रहते हैं |
➜ पौधे उत्सर्जी पदार्थों को अपनी पत्तीओं एवं छाल ( bark) में भी संचित करते है |
➜ पत्तीओं के गिरने एवं छल के विलगाव से इन उत्सर्जी पदार्थों का पादप शरीर से निष्कासन होता है |
➜ विभिन्न चयापचयी क्रियाओं के दौरान टैनिन (tannin) , रेजिन (resin) , गोंद (gums) आदि उत्सर्जी पदार्थों का निर्माण होता है |
➜ टैनिन वृक्षों के छल में , रेजिन एवं गोंद पुराने जाइलम में संचित रहते है |
➜ कुछ पौधों में उत्सर्जी पदार्थ गाढ़े , दुधिया तरल के रूप में संचित रहता है जिसे लैटेक्स (latex) कहरे है |
➜ जलीय पौधे उत्सर्जी पदार्थों को विसरण द्वारा सीधे जल में निष्कासित करते है | जबकि स्थलीय पौधे आसपास के मृदा में निष्कासित करते है |
The end.
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BSEB Class 10 Biology Chapter 4 Notes in Hindi Medium | जैव प्रक्रम : उत्सर्जन (Excretion)
Nice sir
Op
Very nice bahut maitpur question
Very nice sir