कक्षा 10 जीव विज्ञानं जैव प्रक्रम: परिवहन नोट्स Transportation Notes Biology Class 10 In Hindi

कक्षा 10 जीव विज्ञानं जैव प्रक्रम: परिवहन नोट्स

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कक्षा 10 जीव विज्ञानं जैव प्रक्रम परिवहन नोट्स Transportation Notes Biology Class 10 In Hindi

  परिचय

3. जैव प्रक्रम  : परिवहन ( Transportation)

जैव प्रक्रम:-

वे सारी क्रियांएँ जिनके द्वारा जीवों का अनुरक्षण होता है जैव प्रक्रम (life process) कहलाता है |

जैव प्रक्रम में सम्मिलित क्रियांएँ निम्नलिखित हैं :-

    1. पोषण   (Nutrition)  
    2. श्वसन   (Respiration)    
    3. परिवहन  (Transporation)
    4. उत्सर्जन  (Excretion)
    5. जनन   (Reproduction)

* परिवहन :- 

उपयोगी पदार्थों का उनके मूल स्रोतों से शरीर की प्र्तेयेक कोशिका तक पहुँचाने तथा अनुपयोगी और हानिकारक पदार्थों को कोशिकाओं से निकालकर गंतव्य स्थान तक पहुँचाने की क्रिया को पदार्थों का परिवहन (transport of materials) कहते हैं |

* पौधों में पदार्थों का परिवहन :- एक कोशिकीय पौधों तथा सरल बहुकोशिकीय शैवालों में पदार्थों का परिवहन विसरण द्वारा होता है |
➤ जटिल बहुकोशिकीय पौधों में जल एवं खाघ पदार्थों के परिवहन के लिए एक ख़ास तंत्र होता है जिसे संवहन ऊतक कहते हैं | इस तंत्र के दो भाग होते हैं –
(i) जाइलम (xylem)
(ii) फ्लोएम (phloem)
(i) जाइलम :-  यह जल-संवाहक ऊतक भी कहलाता है | यह मिटटी से जल एवं खनिज-लवणों को पौधों के जड़ से पत्तियों तक ले जाता है 
(ii) फ्लोएम :- यह ऊतक पौधों में बने भोज्य पदार्थों को शरीर के विभिन्न भागों में वितरित करता हैं |
* जाइलम एवं फ्लोएम में अंतर 
➤ जाइलम एवं फ्लोएम में निम्नलिखित मुख्य भेद हैं –

जाइलम

फ्लोएम

1. इसकी कोशिकाएं मृत

   होती है |

2. यह जल एवं घुलित

   खानिल का स्थानंतरण

   करता है |

3. इसमें जल एवं घुलित  

  खनिज-लवणों का बहाव

  ऊपर की ओर होता है |

1. इसकी कोशिकाएं जीवित

   होती है |

2. यह खाघ पदार्थों का

   स्थानंतरण करता है |

3. इसमें खाघ पदार्थों का

  ऊपर एवं निचे दोनों

  तरफ परिवहन होता है |

कक्षा 10 जीव विज्ञानं जैव प्रक्रम: परिवहन नोट्स

* पौधों में पदार्थों के परिवहन की क्रियाविधि : पौधों में जल, खनिज लवणों एवं खाघ पदार्थों का परिवहन दो तरह      से होता है –
(i) स्थानंतरण (transfer)
(ii) वाष्पोत्सर्जन (transpiration)
 
(i) स्थानंतरण :- पौधों के एक भाग से दुसरे भाग में खाघ पदार्थों के जलीय घोल के आने जाने को खाघ पदार्थों का       स्थानंतरण कहते है |
➤ खाघ पदार्थों एवं अन्य पदार्थों जैसे एमिनो अम्ल का स्थानंतरण पौधों में सदा अधिक संद्र्तावाले भागों सेन कम सांद्रता वाले भागों की ओर होता हैं |
➤ अधिक सांद्रता वाले भाग को संभरण – सिरे (supply end) कहते हैं |
➤ कम सांद्रता वाले भाग को उपभोग – सिरे (consumption end ) कहते हैं |
 
(ii)  वाष्पोत्सर्जन :- पौधों के वायवीय भागों से जल का रंध्रों (stomata) द्वारा वाष्प के रूप में निष्कासन की क्रिया वाष्पोत्सर्जन कहलाती है |
 ➤ वाष्पोत्सर्जन की क्रिया सभी पौधों में समान रूप से नहीं होती है |
   जैसे – एक मकई का पौधा प्रतिदिन 3 से 4 लीटर जल इस क्रिया से छोड़ता है जबकि एक सेब का पौधा इतने ही अंतराल में 10 से 20 लीटर जल निष्कासित करता है |
* वाष्पोत्सर्जन का महत्त्व :- 
➤ पौधे के मूल से चोटी तक लगातार जल की धरा वाष्पोत्सर्जन के द्वारा ही प्रवाहित होती है |
➤ यह खनिज अवशोषण एवं परिवहन में भी सहायता करता है |
➤ यह पौधों में तापक्रम -संतुलन बनाए रखने में सहायक होता है |

 * जंतुओं में परिवहन 

➤ उच्च श्रेणी के जंतुओं में एक विशेष प्रकार का परिवहन तंत्र होता है जो ऑक्सीजन , कार्बन डाइऑक्साइड, पोषक तत्वों, हार्मोन उत्सर्जी पदार्थों को शरीर के एक भाग से दुसरे भाग में ले जाता है |
➤ जंतुओं में परिवहन की क्रिया तीन अवयवों की सहायता से होती है –
(i) रक्त (blood) 
(ii) ह्रदय (heart)
(iii) रक्त वाहिनियाँ (blood vessels) 
➤ इन तीनों अवयव मिलकर  परिसंचरण या रक्त परिवहन तंत्र (blood circulatory system) का निर्माण करते हैं |
➤ इसके अतिरिक्त परिवहन के लिए लसिका तंत्र (lymphatic system) नामक एक और तंत्र भी उच्च श्रेणी के जंतुओं में पाया जाता है |

* रक्त :- 

➤रक्त लाल रंग का एक गाढ़ा क्षारीय तरल पदार्थ है | इसका pH मान 7.4 होता है | इसे तरल संयोजी ऊतक भी कहा जाता है |
➤ रक्त के दो प्रमुख घटक होते हैं –
 (i) प्लाज्मा (plasma)
 (ii) रक्त कणिकाएं (blood corpuscles)

(i)  प्लाज्मा : – 

➤यह हलके पीले रंग का चिपचिपा द्रव है |
➤ रक्त में करीब 55 % प्लाज्मा होता है |
➤ इसका रंग विलुरुबिन के कारण पिला होता है |
➤प्लाज्मा में दो प्रकार के प्रोटीन पाए जाते हैं –
(i) फइब्रिनोजिन (fibrinogen) :- यह शरीर के बहार रक्त के थक्का जमने में मदद करता है |
(ii) हिपैरिन (heparin) : यह शरीर के अन्दर रक्त को जमने से रोकता है |
➤ प्लाज्मा में करीब 90 % जल , 7% प्रोटीन , 0.9% अकार्बनिक लवन , 0.18% ग्लूकोस, 0.5% वसा तथा शेष अन्य कार्बनिक पदार्थ होते हैं |
➤ जब प्लाज्मा से फइब्रिनोजिन अलग हो जाता है तब प्लाज्मा का शेष भाग सीरम (serum) कहलाता है |
* कार्य :- 
 (i) यह शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का निर्माण करता है |
 (ii) यह शरीर में टूटे – फूटे अंगों को भरने में मदद करता है |

(ii) रक्त कणिकाएं :-

➤रक्त में रक्त कणिकाएं करीब 45% होता है |
➤ यह तिन प्रकार के होते है –
 (i) लाल रक्त कनिका (Red Blood Corpuscles or RBC))
(ii) श्वेत रक्त कनिका (White Blood Corpuscles or WBC)
(iii) रक्त पट्टीकानु(Blood Platelets)

* लाल रक्त कनिका (RBC):- 

➤ इसमें एक विशेष प्रकार का वर्णक हीमोग्लोबिन (haemoglobin) पाया जाता है |
➤ हीमोग्लोबिन के कारण रक्त का रंग लाल होता है |
➤ हीमोग्लोबिन को  ऑक्सीजन का वाहक भी कहते हैं क्योंकि इसमें ऑक्सीजन से संयोजन करने की क्षमता होती है |
➤ हीमोग्लोबिन ऑक्सीजन से संयोजन कर ऑक्सीहिम्ग्लोबिन बनता है |
➤ हीमोग्लोबिन कार्बन डाइऑक्साइड से संयोजन कर कार्बोक्सीहिमोग्लोबिन बनाता है |
➤ रक्त का आकार 7.2 माइकरोन होता है |
➤ रकत का जीवन काल 20 – 120 दिनों तक होता है |
➤ इसका जन्म अस्थिमज्जा में होता है |
➤ रक्त की मृतुय यकृत में हो जाती है |
➤  रक्त की संख्यां पुरुषों में 50 लाख तथा महिलाओं में 45 लाख घन मिलीमीटर होता है |
➤ Blood Bank में रक्त को सोडियम नाइट्रेट में 40 f  पर रखा जाता है |
➤ रक्त का प्रमुख कार्य यह ऑक्सीजन को ढोकर विभिन्न कोशिकाओं तक ले जाता है |
* श्वेत रक्त कनिका (WBC) :-
➤ ये अनियमित आकर की केंद्रकयुक्त कोशिकाएं हैं |
➤ यह रंगहीन द्रव है |
➤ इसकी संख्या RBC की अपेक्षा अत्यंत कम होती है |
➤ इसका जन्म अस्थिमज्जा में होता है |
➤ इसकी मृत्यु रक्त में ही हो जाती है |
➤ इसका जीवन काल 1-4 दिनों तक होता है |
➤ इसकी संख्यां 8 हजार से 10 हजार प्रति घन मिलीलीटर होती है |
  * कार्य :- 
  (i) यह शरीर में प्रवेश करने वाले रोगाणुओं को भक्षण कर उनको नष्ट कर देते हैं |
  (ii) यह शरीर के अन्दर टूटे फूटे उतकों और कोशिकाओं को भक्षण करता हैं|

 

* रक्त पट्टीकाणु (Blood Platelets) :-

➤ इसे थ्रोम्बोसाइट्स या बिंबाणु भी कहा जाता है |
➤ इसमें केंद्रक नहीं पाया जाता है |
➤ इसका जन्म अस्थिमज्जा में होता है |
 ➤ इसकी मृत्यु यकृत में होती है |
➤ इसका जीवन काल 3- 5 दिनों तक होता है |
➤ इसकी संख्यां 250 – 3 लाख घन मिलीलीटर होती है |
* कार्य : – 
 (i) रक्त को थक्का बनाने में मदद करता है |

*  ह्रदय :-

ह्रदय एक अत्यंत कोमल, मांसल रचना है जो वक्षगुहा के मध्य में पस्लिओं के निचे तथा दोनों फेफड़ों के बिच स्थित होता है |
➤ यह हृद-पेशियों का बना होता है |
➤ ह्रदय एक केन्द्रीय पम्प अंग है जो रक्त पर दबाव बनाकर उसका परिसंचरण पुरे शरीर में करता है |
➤ इसके चरों ओर एक दोहरी झिल्ली पाई जाती है जिसे पेरिकार्डियम (pericardium) कहते हैं जिसमे पेरिकार्डियल द्रव (pericardial fluid) भरा रहता है | यह द्रव ह्रदय को बहरी चोटों से तथा ह्रदय में होने वाले घर्सन से बचाता है |
➤ मनुष्य के ह्रदय में चार वेश्म होते हैं – दाँया और बाँया अलिंद ( right and left auricle), तथा दाँया और बाँया निलय ( right and left ventricle).
➤ दाँया और बाँया अलिंद ह्रदय के चौड़े अग्रभाग में होते हैं तथा ये दोनों एक सेप्टम(septum) के द्वारा एक-दुसरे से अलग होते हैं जिसे अंतराअलिंद भित्ति कहते हैं |
➤ दाँया और बाँया निलय ह्रदय के निचले भाग में स्थित होते हैं तथा ये अंतरानिलय भित्ति के द्वारा एक दसरे से अलग होते हैं |
➤ दाँया अलिंद महाशिरा से रक्त प्राप्त करता है जबकि बाँया अलिंद फुफ्फुस शिरा से रक्त प्राप्त करता है |
➤ अलिंद से निलय में छिद्र द्वारा रक्त पहुँचता है जिसमें कपाट होता है | दाँया अलिंद तथा दांयाँ निलय में त्रिदली कपाट होता है जबकि बाँया अलिंद तथा बाँया निलय में द्विदली कपाट होता है | कपाट रक्त को विपरीत दिशा में जाने से रोकता है |
* ह्रदय की क्रियाविधि :-
ह्रदय शरीर के सभी भागों से अशुद्ध रक्त को ग्रहण करता है ओर फिर उस अशुद्ध रक्त को ऑक्सीजन के द्वारा शुद्ध करने के लिए फेफड़ों में भेजता है तथा पुनः शुद्ध रक्त को फेफड़ों से ग्रहण कर शरीर के विभिन्न भागों में पम्प कर देता है जिससे सम्पूर्ण शरीर में रक्त का परिसंचरण होता है |
➤ ह्रदय के वेश्मों में बारी-बारी से संकुचन (contraction) तथा शिथिलन (relaxation) होता है |
➤ ह्रदय के वेश्मों का संकुचन सिस्टोल तथा शिथिलन डायस्टोल कहलाता है |
➤ सिस्टोल और डायस्टोल की क्रिया को धड़कन (heartbeat) कहते हैं |
➤ ह्रदय में संकुचन तथा शिथिलन एक विशेष प्रकार के ऊतक के द्वारा होता है जो एक प्रकार का विधुत धारा उत्पन्न करता है  इस ऊतक को  S-A नोड कहते हैं
➤ ह्रदय के विधुत- धरा को एक विशेष प्रकार के यंत्र द्वारा  अंकित किया जाता है जिसे इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफ (electrocardiograph) कहते है |
➤ इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफ द्वारा अंकित रेखाचित्र को इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (electrocardiogram, ECG) कहते हैं|
➤ रक्त परिवहन का एक चक्र , अर्थात ह्रदय में रक्त का भरना तथा फिर उसका बाहर निकलना हृद -चक्र (cardiac cycle) कहलाता है |

* रक्त वाहिनियाँ :

रक्त के परिसंचरण के लिए शरीर में तिन प्रकार की रक्त वाहिनियाँ होती है –
(i) धमनियाँ (arteries)
(ii) रक्त केशिकाएँ (blood capillaries)
(iii) शिराएँ (veins)
* धमनियाँ :-
ये शुद्ध रक्त को ह्रदय से शरीर के विभिन्न भागों में ले जाती है |
➤ धमनियों की दीवारें मोटी, लचीली , तथा कपाटहिन् होती है |
➤ फुफ्फुस धमनी एक अपवाद है जो अशुद्ध रक्त को फेफड़ों से ह्रदय में ले जाती है |
➤ शरीर के विभिन्न भागों में धमनियाँ बँटकर धमनिकाएँ बनाती है |
➤ धमनिकाएँ विभिन्न अंगों के अन्दर केशिकाओं में विभक्त हो जाती है |
* केशिकाएँ :- 
 ये अत्यन महीन रक्त नलिकाएं हैं |
➤ इनकी दीवार एक चपटी एपिथिलियम के स्तर की बनी होती है |
➤ केशिकाओं की दीवार जल , घुले हुए भोज्य पदार्थ एवं उत्सर्जी पदार्थ , ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड के लिए पारगम्य होती है |
 ➤ विभिन्न केशिकाएँ जुड़कर शिरिकाएं बनाती है तथा विभिन्न शिरिकाएं आपस में जुड़कर शिरा बनाती है |
* शिराएँ :-
ये अशुद्ध रक्त को विभिन्न अंगों से ह्रदय की ओर ले जाती है |
➤ फुफ्फुस शिराएँ अपवाद है जो शुद्ध रक्त को फेफड़ों से ह्रदय में ले जाती है
* रक्तचाप :-
महाधमनी एवं उनकी मुख्य शाखाओं में रक्त प्रवाह का दबाव रक्तचाप (blood pressure) कहलाता है |
➤ इसका काम रक्त पर दबाव बनाकर उसका परिसंचार्ण पुर शारीर में करना है |
➤ जब रक्त पर दबाव निलयों के संकुचन से उत्पन्न होता है तब यह दबाव सिस्टोलिक प्रेशर (systolic pressure) कहलाता है |
➤ जब रक्त पर दबाव निलयों के शिथिलन से उत्पन्न होता है तब यह दबाव डायस्टोलिक प्रेशर (diastolic pressure) कहलाता है |
➤सिस्टोलिक प्रेशर 120 mm पारे (Hg ; mercury) के स्तम्भ द्वारा उत्पन्न दाब के बराबर होता है |
➤ डायस्टोलिक प्रेशर 80 mm पारे (Hg ; mercury) के स्तम्भ द्वारा उत्पन्न दाब के बराबर होता है |
➤ एक स्वस्थ व्यक्ति का सामान्य स्थिति में सिस्टोलिक प्रेशर / डायस्टोलिक प्रेशर = 120/80 होता है |
➤ रक्तचाप की माप स्फिग्मोमैनोमिटर (sphygmomanometer) के द्वारा मापा जाता है|
➤ सामान्य से अधिक उच्च रक्तचाप हाइपरटेंसन (hypertension) कहलाता है |
➤ हाइपरटेंसन की अवस्था में कभी कभी रक्त वाहिनियाँ फट जाती है , जिससे आंतरिक रक्तस्त्राव होने लगता है जिससे रोगी की मृत्यु हो जाती है |
                                                                   The end. 
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      BSEB Class 10 Biology Chapter 3 Notes in Hindi Medium | जैव प्रक्रम : परिवहन (Transportation)

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