कक्षा 10 जीव विज्ञानं हमारा पर्यावरण नोट्स | कक्षा 10
कक्षा 10 जीव विज्ञानं हमारा पर्यावरण नोट्स | कक्षा 10 जीव विज्ञानं हमारा पर्यावरण Our Environment Notes Biology Class 10 In Hindi | Our Environment class 10 | Biology Class 10th Chapter 8 Notes | Bihar Board Class 10th Biology Chapter 8 Notes In Hindi | hamara paryavaran | Hamara paryavaran Notes Class 10 | पारिस्थितिक तंत्र तथा पारिस्थितिक तंत्र की संरचना
परिचय
8. हमारा पर्यावरण (Our Environment)
*पर्यावरण :-
किसी जीव के चरों ओर फैली हुई भौतिक या जैव और जैव कारकों से निर्मित दुनिया जिसमें वह न निवास करता है एवं जिससे वह प्रभावित होता है, उसे उसका पर्यावरण या वातावरण कहा जाता है |
¨ पर्यावरण के अंतर्गत जलमंडल , स्थाल्मंडल, वायुमंडल एवं जीव मंडल आते हैं |
¬ पारिस्थितिक तंत्र या परितंत्र :-
जीव मंडल के विभिन्न घटक तथा उसके बिच उर्जा और पदार्थ का आदान–प्रदान, सभी एक साथ मिलकर पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण करते हैं |
¨ परिस्थित्क तंत्र जीवमंडल की एक स्वपोषी संरचनात्मक एवं कार्यात्मक इकाई होती है |
¨ यह उर्जा के लिए पूर्ण रूप से सूर्य पर निर्भर रहता है |
¨ इसके अजीव घटक मृदा , वायु, जल, प्रकाश, ताप आदि है तथा जैव घटक जंतु, पौधे , मानव एवं सूक्ष्म जीवधारी है |
¬ पारिस्थितिक तंत्र की संरचना :-
एक पारिस्थितिक तंत्र के निम्नांकित दो मुख्य अवयव होते हैं
(1) अजैव घटक
(2) जैव घटक
¬ अजैव घटक :-
इन्हें निम्नांकित तीन वर्गों में बाँटा जा सकता है –
1. भौतिक वातावान (Physical Environment) :- इसमें मृदा , जल त्तथा वायु सम्मिलित है |
2. पोषण (Nutrient) :- इसके अंतर्गत विभिन्न अकार्बनिक एवं कार्बनिक पदार्थ आते हैं |
3. जलवायु (Climatic factors) :- सूर्य की रोशनी, तापक्रम, अन्द्र्ता , दाब इत्यादि मिलकर जलवायु का निर्माण करते हैं |
¨ जलवायु पारिस्थितिक तंत्र में जीवों की संख्या, उनके वितरण , मेटाबोलिज्म तथा व्यवहार को प्रभावित करते हैं |
¬ जैव घटक :-
इन्हें निम्नांकित तीन वर्गों में बाँटा गया है –
1. उत्पादक (Producers) :- जैसे हरे पौधे, जो भोजन का संश्लेषण करते हैं |
2. उपभोक्ता (Consumers) :- जो पौधों और उनके विभिन्न उत्पादों को खाते हैं |
3. अपघटनकर्ता (Decomposers) :- ये मृत उत्पादक तथा उपभोक्ताओं का अपघटन करते हैं तथा इससे उत्पन्न पोषणों और गैसों को फिर वातावरण में छोड़ देते हैं |
1. उत्पादक (Producers) :-
हरे पौधे, जैसे शैवाल , घास , पेड़ इत्यादि एकमात्र जीव हैं, जिनमें प्रकशसंश्लेषण द्वारा अपना भोजन स्वंय बनाने की क्षमता है | ये सूर्य की प्रकाश–उर्जा (Light energy) को विकिरण–उर्जा (Radiant energy) के रूप में ग्रहण कर क्लोरोफिल की उपस्थिति में रासायनिक स्थितिज उर्जा (Potential energy) में परिवर्तित कर देते हैं , जो कार्बनिक यौगिक के रूप में हरे पौधों के उतकों में संचित रहता है |
2. उपभोक्ता (Consumers) :-
ऐसे जीव जो अपने पोषण के लिए पूर्णरूप से उत्पादकों पर निर्भर रहते हैं, उपभोक्ता (Consumers) कहलाते हैं | सभी जंतु उपभोक्ता की श्रेणी में आते हैं |
¨ उपभोक्ताओं को तीन श्रेणियों में बाँटा जा सकता है |
(i) प्राथमिक उपभोक्ता (Primary Consumers) :-
ऐसे उपभोक्ता जो पोषण के लिए प्रत्यक्ष रूप से उत्पादक अर्थात हरे पौधे को खाते हैं, प्राथमिक उपभोक्ता कहलाते हैं |
जैसे – गाय , बकरी, भैंस , हिरन , खरगोश, ग्रासहोपर ( शाकाहारी)
मनुष्य और तिलचट्टा सर्वभक्षी (omnivorous) हैं, अर्थात उनका भोजन पौधे और जंतु दोनों हैं , परन्तु जब वे हरे पौधे को खाते हैं तब वे प्राथमिक उपभोक्ता की श्रेणी में आते हैं |
(ii) द्वितीयक उपभोक्ता (Secondary Consumers) :-
कुछ जंतु जैसे शेर , बाघ कुछ पक्षी, सर्प,मेढक मांसाहारी (Carnivorous) होते हैं तथा वे शाकाहारी प्राथमिक उपभोक्ता को खाते हैं, द्वितीयक उपभोक्ता कहलाते हैं |
(iii) तृतीयक उपभोक्ता (Tertiary Consumers) :-
जब कोई जंतु द्वितीयक उपभोक्ता को खाते हैं तब वह तृतीयक उपभोक्ता कहलाते हैं |
जैसे – जब सर्प मेढक (द्वितीयक उपभोक्ता) को खाता है तब वह तृतीयक उपभोक्ता कहलाता है |
¨ मांसाहारी जंतु भिन्न –भिन्न स्थितियों में द्वितीयक या तृतीयक श्रेणी के हो सकते हैं | जैसे सर्प जब खरगोश को खाता है तब वह द्वितीयक उपभोक्ता होता है , परन्तु वही सर्प जब मेढक को खाता है तब वह तृतीयक उपभोक्ता कहलाता है |
¬ अपघटनकर्ता (Decomposers) :-
पौधों और जंतुओं (उत्पादक और उपभोक्ता) के मृत शरीर तथा जंतुओं के वर्ज्य पदार्थों का जीवाणुओं (bacteria), कवकों (fungi) के द्वारा अपघटन किया जाता है अतः जीवाणु और कवक अपघटनकर्ता कहलाते हैं |
¬ आहार शृंखला (Food Chain) :-
एक पारिस्थितक तंत्र में उर्जा का एकपथीय प्रवाह उसमें स्थित शृंखलाबद्धतरीके से जुड़े जीवों के द्वारा होता है | जीवों की इस शृंखला को आहार शृंखला कहते हैं |
¨ सौर – उर्जा का प्रग्रहण उत्पादक जीव (हरे पौधे ) करते हैं | उत्पादक को प्राथमिक उपभोक्ता (शाकाहारी) जंतु खाते हैं और फिर शाकाहारी जंतुओं को द्वितीयक उपभोक्ता (मांसाहारी) जंतु खाते हैं और फिर इन्हें उच्चतम श्रेणी के मांसाहारी जंतु तृतीयक उपभोक्ता के रूप में खाते हैं इस प्रकार उर्जा का प्रवाह एक जीव से दुसरे जीवों में सदा एकपथीय दिशा में होता है |
¨ कुछ सामान्य आहार शृंखला निम्नलिखित है –
घास ¨ ग्रासहॉपर ¨ मेढक ¨ सर्प ¨ गिद्ध शैवाल ¨ छोटे जंतु ¨ छोटी मछली ¨ बड़ी मछली ¨ मांसाहारी पक्षी पौधे ¨ कृमी ¨ चिड़िया ¨ बिल्ली घास ¨ हिरण ¨ बाघ
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कक्षा 10 जीव विज्ञानं हमारा पर्यावरण नोट्स
¬ आहार जाल (Food Web) :– पारिस्थितिक तंत्र में सामान्यतः एक साथ कई आहार श्रृंखलाएं पाई जाती है | ये आहार श्रृंखलाएं हमेशा सीधे न होकर एक दुसरे से आड़े- तिरछे जुड़कर एक जाल सा बनाती है | आहार शृंखलाओं के इस जाल को आहार जाल कहते हैं |
1. पौधे ¨ ग्रासहॉपर ¨ बाज 2. पौधे ¨ ग्रासहॉपर ¨ गिरगिट ¨ बाज 3. पौधे ¨ खरगोश ¨ बाज 4. पौधे ¨ चूहा ¨ सर्प ¨ बाज 5. पौधे ¨ चूहा ¨ बाज
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¬ पोषी स्तर ( Trophic Level ) :-
आहार शृंखला के कई स्तर होते हैं तथा हर स्तर पर भोजन (उर्जा) का स्थानांतरण होता है | आहर शृंखला के इन्हीं स्तरों को पोषी स्तर कहते हैं |
¨ एक वन-पारिस्थितिक तंत्र में चार पोषी स्तर होते हैं – प्रथम पोषी स्तर , द्वितीय पोषी स्तर , त्रितितक पोषी स्तर, चतुर्थ पोषी स्तर
¨ आहार शृंखला के उत्पादक (हरे पौधे) प्रथम पोषी स्तर हैं | शाकाहारी जंतु (प्राथमिक उपभोक्ता ) द्वितीय पोषी स्तर हैं | मांसाहारी जंतु (द्वितीयक उपभोक्ता) तृतीय पोषी स्तर तथा उच्चतम श्रेणीवाले मांसाहारी जंतु (तृतीयक उपभोक्ता) चतुर्थ पोषी स्तर हैं |
¬पारिस्थितिक तंत्र के प्रकार्य :-
एक पारिस्थितिक तंत्र में निम्नांकित दो मूल प्रक्रियाएँ सम्पादित होती है |
(i) पहले के अंतर्गत सौर उर्जा का हरे पौधों के द्वारा प्रग्रहण होता है और वह अन्य जीवों में खाघ के रूप में स्थानांतरित हो जाता है | इस प्रकार उर्जा का प्रवाह एकपथीय होता है |
¬ पारिस्थितिक तंत्र के प्रकार्य :-
एक पारिस्थितिक तंत्र में निम्नांकित दो मूल प्रक्रियाएँ सम्पादित होती है |
(i) पहले के अंतर्गत सौर उर्जा का हरे पौधों के द्वारा प्रग्रहण होता है और वह अन्य जीवों में खाघ के रूप में स्थानांतरित हो जाता है | इस प्रकार उर्जा का प्रवाह एकपथीय होता है |
(ii) दूसरी प्रक्रिया के अंतर्गत विभिन्न अजैव पदार्थों का चक्रीय पथ के द्वारा जैव और अजैव वातावरण के बिच आदान-प्रदान होता रहता है |
¬ उर्जा प्रवाह :-
आहार शृंखला के प्रत्येक पोषी स्तर पर कुल उर्जा के 10 प्रतिशत उर्जा का ही स्थानांतरण अगले पोषी स्तर को हो पाता है तथा शेष 90 प्रतिशतउर्जा का व्यवहार विभिन्न प्रकार से हो जाता है |
¬ जैव आवर्धन :-
आहार श्रृंखला में हानिकारक पदार्थ का एक जीव से दुसरे जीव में स्थानांतरण ही जैव आवर्धन कहलाता है |
जैसे – बहुत से रासायनिक पदार्थ (कीटनाशक , उर्वरक ) का उपयोग फसल की उत्पादकता बढाने एवं इन्हें रोग से बचाने के लिए किया जाता है | आहार शृंखला द्वारा ये रसायन विभिन्न पोषी स्तरों से अंततः मानव शरीर में प्रविष्ट हो जाता है |
¬ मानव एवं पर्यावरण :
मनुष्य द्वारा अपने क्रियाकलापों से उत्पन्न अनावश्यक पदार्थों को जहाँ- तहाँ फेक देते हैं | इन्हीं अनावश्यक पदार्थों को अपशिष्ट (waste) कहते हैं |
¨ अपशिष्ट पदार्थों को दो भागों में बाँटा जा सकता है –
(i) जैव निम्नीकरणीय अपशिष्ट
(ii) जैव अनिम्नीकरणीय अपशिष्ट
(i) जैव निम्नीकरणीय अपशिष्ट : ऐसे अवांछित पदार्थ , जिन्हें जैविक अपघटन के द्वारा पुनः उपयोग में आनेवाले पदार्थों में बदल दिया जाता है , जैव निम्नीकरणीय अपशिष्ट कहलाते हैं |
जैसे – जंतुओं के मल-मूत्र , कृषि द्वारा उत्पन्न अपशिष्ट , कागज़, कपडे, जंतुओं और पेड़ पौधों के मृत शरीर , साधारण घरेलु अपशिष्ट पदार्थ आदि|
(ii) जैव अनिम्नीकरणीय अपशिष्ट : प्रदुषण के ऐसे कारक जिनका जैविक अपघटन नहीं हो पाता है तथा जो अपने स्वरूप को हमेशा बनाए रखते हैं , अर्थात प्राकृतिक विधिओं द्वारा नष्ट नहीं होते हैं |
जैसे – कीटनाशक एवं पीड़कनाशक , DDT , शीशा , एलुमिनियम , प्लास्टिक रेडियोधर्मी पदार्थ आदि |
¬ कचरा प्रबंधन :
कचरे को एक जगह एकत्र कर उसका वैज्ञानिक तरीके से समुचित निपटारा करने को कचरा – प्रबंधन कहते हैं |
¬ ओजोन परत एवं ओजोन अवक्षय :
वायुमंडल का ओजोन स्तर हानिकारक पराबैगनी किरणों को अवशोषित कर लेता है |
¨ कुछ सुगन्धित (सेंट) झागदार शेविंग क्रीम , कीटनाशी , गंधहारक आदि डिब्बों में आते हैं और फुहारा या झाग के रूप में निकलते हैं इन्हें ऐरोसोल कहते है |
¨ ऐरोसोल में प्रयुक्त CFC जैसे रसायनों से ओजोन स्तर का अवक्षय होता है |
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