कक्षा 10 जीव विज्ञान जैव प्रक्रम : श्वसन नोट्स Respiration Notes Biology Class 10 In Hindi

कक्षा 10 जीव विज्ञान जैव प्रक्रम : श्वसन नोट्स

 कक्षा 10 जीव विज्ञान  जैव प्रक्रम : श्वसन नोट्स  Respiration Notes Biology Class 10 In Hindi| Biology 2nd Chapter Notes | Class 10 Biology 2nd Chapter Notes

कक्षा 10 जीव विज्ञान जैव प्रक्रम : श्वसन नोट्स Respiration Notes Biology Class 10 In Hindi

 परिचय

2. जैव प्रक्रम  : श्वसन

जैव प्रक्रम:-

             वे सारी क्रियांएँ जिनके द्वारा जीवों का अनुरक्षण होता है जैव प्रक्रम (life process) कहलाता है |

जैव प्रक्रम में सम्मिलित क्रियांएँ निम्नलिखित हैं :-

    1. पोषण   (Nutrition)  
    2. श्वसन   (Respiration)    
    3. परिवहन  (Transporation)
    4. उत्सर्जन  (Excretion)
    5. जनन   (Reproduction)

*श्वसन :-

जीवन सम्बन्धी क्रियाओं. के सुचारू रूप से संचालन के लिए शरीर को आवश्यक उर्जा की पूर्ति पोषण के द्वारा होती है |वातावरण से ग्रहण किये गए भोज्य-पदार्थों का उनके मूल जटिल रूपों में उर्जा के उत्पादन के लिए उपयोग करना संभव नहीं है | इसलिए जटिल खाघ पदार्थों को पाचन के द्वारा उन्हें सरल रूप पे परिवर्तित किया जाता है ताकि वे उतकों द्वारा आसानी से अवशोषित हो सके तथा उनका उपयोग उर्जा के उत्पादन के लिए हो सके |
    पचे हुए भोज्य पदार्थो से उर्जा का उत्पादन भोजन अणुओं के ऑक्सीकरण (oxidation) के द्वारा होता है |
भोजन अणुओं का ऑक्सीकरण दो परिस्थितिओं में होता है- 

  (i) ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में जिसे अवायवीय (anaerobic) कहते हैं |
  (ii) ऑक्सीजन की उपस्थिति में जिसे वायवीय (aerobic) कहते हैं |
➞ ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में भोजन अणुओं के ऑक्सीकरण से मुक्त होने वाली उर्जा की मात्र बहुत कम होती है |
➞ भोजन अणुओं में संचित उर्जा अधिक -से अधिक मात्र में मुक्त हो इसके लिए उनका ऑक्सीकरण ऑक्सीजन की उपस्थिति में होना अनिवार्य है |
                                     अतः शरीर को पोषण के साथ -साथ ऑक्सीजन की भी आवश्यकता होती है और ऑक्सीजन श्वसन के द्वरा प्राप्त होता है |
वृहित रूप में श्वसन उन सभी प्रक्रियाओं का सम्म्लिलित रूप है जिनके द्वारा  शरीर में उर्जा का उत्पादन होता है |
➞ उर्जा के उत्पादन के लिए कोशिकाओं में सरल भोज्य पदार्थ सामान्यतः ग्लूकोस या कभी-कभी वसा या विशेष परिस्थिति में एमिनो अम्लों का विखंडन(oxidative degradation) किया जाता है जिससे इनके बंधन (bond) टूटते हैं और इनमें संचित रासायनिक उर्जा (chemical energy) मुक्त होती है |
यह उर्जा ATP (adenosine triphosphate) के रूप  में संचित रहती है |
➞ATP ही समस्त जैव कोशिकाओं में रासायनिक उर्जा का सार्वजनिक वाहक (universal carrier) है |
➞ATP को जैव उर्जा भी कहा जाता है |
➞ATP के उत्पादन के लिए कोशिका मुख्यतः : ग्लूकोस का उपयोग करती है अतः ग्लूकोस को कोशिकीय ईंधन (cellular fuel)  भी कहा जाता है |
➤ श्वसन क्रिया को निम्नलिखित समीकरण से दर्शाया जाता है :- 
C6H12O+ 6O→ 6CO+ 6H2O + उर्जा
परिभासा:-
श्वसन वैसी क्रियाओं के सम्मिलित रूप को कहते हैं जिसमें बाहरी वातावरण से ऑक्सीजन ग्रहण कर शरीर की कोशिकाओं में पहुँचाया जाता है जहाँ इसका उपयोग ग्लुकोसं का ऑक्सीकरण करके कई चरणों में विशिष्ट एंजाइम की उपस्थिति में  ATP (जैव उर्जा ) का उत्पादन किया जाता है तथा इस क्रिया से उत्पन्न कार्बन डाईऑकसाइड को फिर कोशिकाओं से शारीर के बाहर निकाल दिया जाता है | 
➞ श्वसन क्रिया में ग्लूकोस अणुओं का ऑक्सीकरण कोशिकाओं में होता है | इसीलिए इसे कोशिकीय श्वसन भी कहते हैं |
➞ सम्पूर्ण कोशिकीय श्वसन को दो अवस्थाओं में विभाजित किया जाता है –
  (i) अवायवीय श्वसन (anaerobic respiration) :-   यह श्वसन का प्रथम चरण है जिसके अंतर्गत ग्लूकोस का आंशिक विखंडन ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में होता है | यह क्रिया कोशिकाद्रव्य (cytoplasm) में होती है |
➞ इस प्रक्रिया में चूँकि ग्लूकोस अनु का आंशिक विखंडन होता है, अतः उसमे उर्जा का बहुत छोटा भाग ही मुक्त हो पाता है | शेष उर्जा पायरूवेट(pyruvate) के बंधनों में ही संचित रह जाती है |
➞ पायरूवेट के आगे की स्थिति निम्नांकित तिन प्रकार की हो सकती है –
(क) पायरूवेट ऑक्सीजन की अनुओअस्थिति में इथेनॉल (ethenol) एवं कार्बन डाइऑकसाइड में परिवर्तित हो जाता है | यह क्रिया किण्वन (fermentation) कहलाती है जो यीस्ट (yeast) में होती है |
 
(ख) ऑक्सीजन के अभाव में हमारी पेशियों में पायरूवेट से लैक्टिक अम्ल का निर्माण होता है |
हमारी पेशी कोशिकाओं में अधिक मात्रा में लैक्टिक अम्ल के संचय से दर्द होने लगता है |बहुत ज्यादा चलने या दौड़ने के बाद हमारी मांसपेशियों में इसी कारण एंठन या तकलीफ होती है |
 
(ग) ऑक्सीजन की उपस्थिति में पायरूवेट का पूर्ण ऑक्सीकरण होता है एवं कार्बन डाइऑकसाइड तथा जल का निर्माण होता है | चूँकि यह क्रिया ऑक्सीजन की उपस्थिति में होती है , अतः इसे वायवीय श्वसन कहते हैं |

कक्षा 10 जीव विज्ञान जैव प्रक्रम : श्वसन नोट्स

  (ii) वायवीय श्वसन (aerobic respiration )  :-  श्वसन के प्रथम चरण में बना पायरूवेट पूर्ण ऑक्सीकरण के लिए माइटोकोंड्रिया में चला जाता है | यहाँ ऑक्सीजन की उपस्थिति में पायरूवेट का विखंडन होता है |
 * अवायवीय एवं वायवीय श्वसन में अंतर 
1.वायवीय श्वसन आक्सीजन की उपस्थिति में होता है जबकि अवायवीय श्वसन इसकी उनुपस्थिती में होता है |
2. वायवीय श्वसन का प्रथम चरण कोशिकद्रव्य में तथा द्वितय चरण माइटोकोंड्रिया में पपुरा होता है जबकि अवायवीय श्वसन की पूरी क्रिया कोशिकाद्रव्य में होती है |
3. वायवीय श्वसन में ग्लूकोस का पूर्ण ऑक्सीकरण होता है तथा कार्बन डाइऑक्साइड एवं जल का न इर्मन होता है जबकि अवायवीय श्वसन में ग्लूकोस का आंशिक ऑक्सीकरण होता है एवं पायरूवेट , इथेनोल या लैक्टिक अम्ल का निर्माण होता है |
4. वायवीय श्वसन में अवायवीय श्वसन की तुलना में ज्यादा उर्जा मुक्त होती है |
* पौधों में श्वसन 
 पौधों में श्वसन गैसों का आदान प्रदान शरीर की सतह द्वारा विसरण क्रिया से होता है | इसके लिए आक्सीजनयुक्त वायु वायुमंडल से पत्तियों के रंध्रों, पुराने वृक्षो के टनों की कड़ी त्वचा पर स्थित वात्रन्ध्र एवं अंतरकोशिकीय स्थानों द्वारा पौधों में प्रवेश करती है |
➞ पौधों में श्वसन की क्रिया जंतुओं के श्वसन से निम्नलिखित प्रकार से भिन्न होती है –
1. पौधों के प्रत्येक भाग अर्थात जड़, ताना , तथा पत्तियों में अलग – अलग श्वसन होता है |
2. जंतुओं की तरह पौधों में श्वसन गैसों का परिवहन नहीं होता है |
3. पौधों में जंतुओं की अपेक्षा श्वसन की गति धीमी होती है |
* जंतुओं में श्वसन  
➞ निम्न श्रेणी का जंतुओं जैसे एककोशिकीय जिव (अमीबा , पैरामिशियम ) में श्वसन गैसों (आक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड) का आदान-प्रदान कोशिका झिल्ली से विसरण क्रिया द्वारा होता है |
➞निम्न श्रेणी के बहुकोशिकीय जंतुओं (हाइड्रा) में श्वसन गैसें का आदान-प्रदान शरीर की सतह से विसरण के द्वारा होता है |
➞ उच्च श्रेणी के जंतुओं (जैसे- पक्षी, मैमेलिया ) को अपने जीवन सम्बन्धी कार्यकलापों के लिए अधिक उर्जा की आवश्यकता होती है | ज्यादा उर्जा के उत्पादन के लिए इन्हें अधिक आक्सीजन की जरुरत होती है | इसके लिए इनके शारीर में विशिष्ट प्रकार के श्वसन अंग पाए जाते हैं |
➞ जंतुओं में सामान्यतः तीन प्रकार के श्वसन अंग होते हैं – 
1. श्वासनली (Trachea), 2. गिल्स (Gills), 3. फेफड़े (Lungs)
 
1. श्वासनली (Trachea):ट्रैकिया द्वारा श्वसन कीटों , जैसे टिड्डा (grashopper) तथा तिलचट्टा (cockroach) में होता है |
 
2. गिल्स (Gills) :- गिल्स विशेष प्रकार का श्वसन अंग है जो जल में घुलित आक्सीजन का उपयोग श्वसन के लिए करते हैं | 
 ➞ प्रत्येक मछली में गिल्स दो समूहों में पाए जाते हैं |
➞ गिल्स एक चपटी थैली में स्थित होता है जिसे गिल कोष्ठ कहते हैं |
➞प्रत्येक गिल कोष्ठ में कई गिल पत्लिकाएं होती है |
➞कुछ अकशेरुकी जलीय जंतुओं जैसे झींगा (prawn) , सीप(mussel) में भी जलीय श्वसन गिल्स द्वारा होता है | इस प्रकार का श्वसन जलीय श्वसन (aquatic respiration) कहलाता है |
 
3. फेफड़े (Lungs): उपसंघ वर्टिब्रेटा के उच्चवर्गीय जंतुओं में श्वसन के लिए फेफड़ा (Lungs) पाया जाता है जो वायवीय श्वसन के उपयोग में आता है |
➞ वर्ग एम्फीबिया (मेढ़क) में फेफड़े के अतिरिक्त त्वचा तथा मुख-ग्रसनी से भी श्वसन होता है 
➞ रेप्टीलिया (जैसे सर्प, लिजर्ड , कछुआ तथा मगरमच्छ) तथा उच्च श्रेणी के वर्टिब्रेटा: जैसे एवीज (पक्षी) तथा मैमेलिया (मनुष्य) में श्वसन सिर्फ फेफड़ों से ही होता है  |
*  मानव श्वसन तंत्र 
श्वसन अंग –  मनुष्य में नासिका छिद्र (nostrils), स्वरयंत्र या लैरिंक्स (larynx) , श्वासनली या ट्रैकिया (trachea) तथा फेफड़ा (lungs) मिलकर श्वसन अंग कहलाते हैं |
 
नासिका (Nose) :- नासिका मुखद्वार के ठीक ऊपर स्थित होती है इसमें दो गोलाकार छिद्र होते हैं जो अन्दर की ओर दो अलग-अलग नासिका वेश्मों (nasal chambers) में खुलते हैं | 
➞ दोनों नासिका वेश्म नासा पट्टिका (nasal septum) के द्वारा एक दुसरे से पृथक होते हैं | 
➞ नासिका वेश्म का छोटा अग्रभाग जिसमें बाह्य नासिका छिद्र खुलता है प्रघ्राण (vestibule) कहलाता है |
➞ प्रघ्राण के पीछे नासा वेश्म का छोटा उपरी भाग घ्राण क्षेत्र तथा निचला भाग श्वसन क्षेत्र कहलाता है |
➞ मनुष्य में घ्राण अत्यंत छोटा होता है जिसके कारण मनुष्य में सूंघने की क्षमता कुछ निम्न स्तनधारियों की अपेक्षा कम होती है |
➞ नासिका वेश्म अन्दर की ओर ग्रसनी(pharynx) में कंठद्वार के ठीक निचे एक छोटी रचना लैरिंक्स (larynx) में खुलती है |
लैरिंक्स पीछे की ओर श्वासनली (trachea) में खुलता है |
➞ ट्रैकिया ली लम्बाई करीब 11 cm होती है जिसका व्यास लगभग 16 mm का होता है |
➞ निचे की ओर ट्रैकिया वक्षगुहा में पहुँचती है जहाँ यह विभाजित होकर दो श्वसनियों (bronchi) में बंट जाती है |
➞ प्रत्येक श्वसनी फेफड़े में प्रवेश कर तुरंत श्वास्निकाओं (bronchioles)  में विभाजित हो जाती है |
➞ प्रत्येक श्वसनिका फिर पतली शाखाओं में बंट जाती है जिन्हें वायुकोष्ठिका वाहिनियाँ (alveolar ducts) कहते हैं 
➞ मनुष्य के दोनों फेफड़ों में ऐसे करीब 3×10 power 8 वायुकोष पाए जाते हैं |
 
फेफड़ा :- फेफड़े मनुष्य की वक्षगुहा में स्थित होतें | फेफड़ा दो स्पंजी, गुलाबी , थैलिनुमा रचना है जो ह्रदय के इधर उधर प्लूरल गुहाओं (pleural cavities)  में स्थित होता है |
➞ प्लूरल गुहा के चारों ओर प्लूरल मेम्ब्रेन (pleural membrane) का पतला आवरण होता है जिसे पैराइटल प्लुरा (parietal pleura) कहते है 
➞ फेफड़ा और प्लुरा के बिच म्यूक्स जिस चिकना तरल पदार्थ पाया जाता है जो फेफड़े के फैलने और फिर वास्तविक रू[ में लौटने से होने वाले घर्षण को कम करता है |
* श्वसन क्रिया 
श्वसन दो क्रियाओं का सम्मिलित रूप है | पहली क्रिया में हवा नासिका से फेफड़े तक पहुँचती है जहाँ इसका ऑक्सीजन फेफड़े के दिवार में स्थित रक्त कोशिकाओं के रक्त में चला जाता है | इस क्रिया को प्रश्वास (inspiration) कहते है | इसके विपरीत दूसरी क्रिया उच्छ्वास (expiration) कहलाती है जिसके अंतर्गत रक्त से फेफड़े में आया कार्बन डाइऑक्साइड बची हवा के साथ नासिका से बहार निकल जाता है |
➞ श्वसन की दो अवस्थाएं प्रश्वास तथा उच्छ्वास मिलकर श्वासोच्छ्वास (breathing) कहलाती है |

*फेफड़े में श्वसन गैसों का आदान-प्रदान :- प्रश्वास के द्वारा वायुमंडलीय हवा नासिका तथा श्वासनली से होती हुई फेफड़ों की वायुकोष्ठिकाओं में पहुच जाती है | वायुकोष्ठिका के चरों ओर रक्त कोशिकाओं का घाना जाल होता है |शरीर के विभिन्न भागों से अनोक्सिकृत रक्त पहले ह्रदय में पहुँचता है जहाँ इसे फेफड़ों में भेज दिया जाता है | ऐसे रक्त को शिरिय रक्त भी कहा जाता है

➞ वायु कोष्ठिका में स्थित वायुमंडलीय हवा में करीब 21 प्रतिशत ऑक्सीजन होता है जबकि रक्त कोशिकाओं में स्थित शिरिय रक्त में ऑक्सीजन की मात्रा अपेक्षाकृत बहुत कम होता है | अर्थात , वायु कोष्ठिका की हवा में ऑक्सीजन का आंशिक दबाव शिरिय रक्त की अपेक्षा बहुत् अधिक होता है जिसके कारण ऑक्सीजन का विसरण वायु कोष्ठिका ओं से शिरिय रक्त में हो जाता है |
➞ रक्त में स्थित लाल रुधिर कोशिकाओं (red blood corpuscles) के हीमोग्लोबिन (haemoglobin) ऑक्सीजन से संयोजन कर ओक्सीहीमोग्लोबिन (oxyhaemoglobin) में परिवर्तित हो जाती है जो रक्त परिसंचरण (blood circulation)  के द्वारा शारीर के वुभिन्न भागों में स्थित कोशिकाओं में पहुँच जाते हैं |

➞ ओक्सीहीमोग्लोबिन   पुनः टूटकर हीमोग्लोबिन और ऑक्सीजन देता है | इस तरह ऑक्सीजन विभिन्न कोशिकाओं तक पहुँचता है जहां इसका उपयोग भोजन- अणुओं को ऑक्सीकृत कर उर्जा उत्पादन किया जाता है | इसके पश्चात् उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड फिर विसरण द्वारा कोशिकाओं से रक्त कोशिकाओं के रक्त में पहुँचता है यहाँ यह रक्त के हीमोग्लोबिन से संयोजन कर कर्बोक्सीहीमोग्लोबिन (carboxyhaemoglobin) बनाते हैं जो परिसंचरण के द्वारा इसी रूप में फेफड़ों में पहुँचता है |

फेफड़ो में कर्बोक्सीहीमोग्लोबिन पुनः टूटकर अलग हो जाते है और कार्बन डाइऑक्साइड उच्छवास के द्वारा नासिका वेश्म से बाहर निकल जाता है |
                                                               The end. 
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      BSEB Class 10 Biology Chapter 2 Notes in Hindi Medium | जैव प्रक्रम : श्वसन (Respiration)

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