इस पोस्ट में हम कक्षा 10, भौतिक विज्ञान का Chapter 1 प्रकाश का परावर्तन तथा अपवर्तन नोट्स कक्षा 10 का कम्पलीट अध्ययन करेंगे। कक्षा 10 Science Chapter 10 का नोट्स दिया गया है . यहाँ से आप अपने परीक्षा की तैयारी कर सकते है .Class 10 Chapter 1 Notes – प्रकाश- परावर्तन तथा अपवर्तन Notes In Hindi, class 10 Reflection Of LightClass 10 science Chapter 10 प्रकाश का परावर्तन तथा अपवर्तन notes in hindi. जिसमे हम गोलीय दर्पण, वक्रता केंद्र, मुख्य अक्ष, मुख्य फोकस, दर्पण सूत्र , अपवर्तन के नियम, अपवर्तनांक , गोलाकार लेंस द्वारा प्रकाश का अपवर्तन , गोलाकार लेंस द्वारा बनाई गई छवि , लेंस सूत्र आदि के बारे में पड़ेंगे । prakash ka pravartan tatha apvartan class 10 notes in hindi
भौतिक विज्ञान (Physics)
अध्याय : 1. प्रकाश का परावर्तन तथा अपवर्तन
(Light Reflection And Refraction)
✸ प्रकाश (Light) :-
प्रकश वह करक है जिसकी सहायता से हम वस्तुओं को देखते हैं |
➤ वस्तव में प्रकाश जब वस्तुओं से टकराकर हमारी आँख तक पहुँचता है तब ही हम वस्तुओं को देख पाते हैं
✸ प्रकाश के गुण :-
➤ प्रकाश सरल ( सीधी ) रेखाओं में गमन करता है ।
➤ प्रकाश विद्युत चुंबकीय तरंग है इसलिए इसे संचरण के लिए माध्यम की आवश्यकता नहीं पड़ती ।
➤ प्रकाश अपारदर्शी वस्तुओं की तीक्ष्ण छाया बनाता है ।
➤ प्रकाश की चाल निर्वात में सबसे अधिक है : 3 × 10⁸ m/s
✸प्रकाश – स्रोत (Light Source ) :-
जिस वस्तु से प्रकाश निकलता है , उसे प्रकाश – स्रोत कहा जाता है |
➤ प्रकाश स्रोत प्राकृतिक (Natural) और मानव निर्मित (Man-Made) होते है |
➤ सूर्य , तारे आदि प्रकश के प्राकृतिक स्रोत हैं |
➤ मोमबत्ती , लैम्प, दिया, बल्ब आदि प्रकाश के मानव- निर्मित स्रोत हैं |
➤ प्रकाश के जितने भी स्रोत हैं उनमे अन्य प्रकार की विभिन्न ऊर्जाओं को प्रकाश में बदला जाता है –
जैसे- (i) लालटेन,लैम्प आदि में तेल में संचित रासायनिक ऊर्जा को प्रकाश में बदला जाता है |
(ii) बिजली के बल्ब और टॉर्च में विद्युत् ऊर्जा को प्रकाश में परिणत किया जाता है |
अतः प्रकाश एक प्रकार की ऊर्जा है |
✸ प्रदीप्त (Luminous things) :
जो वस्तुएँ प्रकाश उत्सर्जित करती है, वे प्रदीप्त या दीप्तिमान वस्तुएँ कहलाती है |
जैसे – सूर्य, बिजली का जलता बल्ब, जलती मोमबत्ती आदि |
✸अप्रदीप्त (Non-Luminous things) :
जो वस्तुएँ प्रकाश उत्सर्जित नहीं करती है वे, अप्रदीप्त वस्तुएँ कहलाती है |
जैसे : टेबुल, कुर्सी, पुस्तक, पौधे आदि |
➤ जब किसी प्रदीप्त वस्तु से निकला प्रकाश किसी अप्रदीप्त वस्तु से टकराकर हमारी आँखों तक पहुँचता है तभी हम उस अप्रदीप्त वस्तु को देख पाते हैं |
✸प्रकीर्णन ( Scattering) :
प्रकाश जब सूक्ष्मकणों पर पड़ता है , तो वे कण उनपर पड़ने वाले प्रकाश की कुछ ऊर्जा को अवशोषित (Absorb) कर फिर उसे चारों ओर विकिरित करते हैं | इस प्रक्रिया को प्रकीर्णन कहा जाता है |
✸ प्रकाश की किरणें (Ray) :
किसी प्रदीप्त पदार्थ से प्रकाश सरल रेखा में सभी दिशाओं में जाता है | एक सरल रेखा पर चलनेवाले प्रकाश को प्रकाश की किरण कहते हैं |
✸किरणपुंज (Beam) :
प्रकाश की किरणों के समूह को प्रकाश का किरणपुंज कहते हैं |
➤ मुख्यतः किरणपुंज तीन प्रकार के होते हैं –
(a) अपसारी किरणपुंज (Diverging Beam)
(b) समांतर किरणपुंज (Parallel Beam)
(c) अभिसारी किरणपुंज (Converging Beam)
(a) अपसारी किरणपुंज (Diverging Beam) :– इस प्रकार के किरणपुंज में प्रकाश की किरणें एक बिंदु-स्रोत से निकलकर फैलती चली जाती है |
(b) समांतर किरणपुंज (Parallel Beam) :- ऐसे किरणपुंज में प्रकाश की किरणें एक-दुसरे के समांतर होती है
➤ बहुत अधिक दुरी पर स्थित प्रकाश–स्रोत (जैसे – सूर्य) से आते किरणपुंज को समांतर किरणपुंज माना जाता है |
(c) अभिसारी किरणपुंज (Converging Beam) :- इस प्रकार के किरणपुंज में प्रकाश की किरणें एक बिंदु पर आकर मिलती हुई प्रतीत होती है | अतः ऐसे किरणपुंज में किरणों के बिच की दुरी घटती जाती है |
✸ पारदर्शी पदार्थ (Transparent) :- वे पदार्थ जिनसे होकर प्रकाश आसानी से पार कर जाता है, पारदर्शी पदार्थ कहलाते हैं |
जैसे – कांच , पानी, हवा आदि |
Prakash ka pravartan tatha apvartan class 10 notes in hindi
✸पारभासी पदार्थ (Translucent) :- वे पदार्थ जो उनपर पडनेवाले प्रकाश के एक छोटे- से भाग को ही अपने में से होकर जाने देते हैं |
जैसे – घिसा हुआ काँच,तेल लगा कागज, बैलून का रबर , आँख की पलक , हलके बदल, कुहासा आदि |
✸अपारदर्शी पदार्थ (Opaque) :- वे पदार्थ जो प्रकाश को अपने में से होकर नहीं जाने देते, अपारदर्शी पदार्थ कहलाते हैं |
जैसे – लकड़ी , लोहा, पत्थर, अलकतरा , पेंट, मोटा गत्ता, धातु की प्लेट आदि |
✸प्रकाश का परावर्तन (Reflection Of Light) :
प्रकाश के किसी वस्तु से टकराकर लौटने को प्रकाश का परावर्तन कहते हैं |
➤ अच्छी तरह से पॉलिश की हुई चिकनी सतहों पर पडनेवाले प्रकाश का अधिकांश भाग उनके द्वारा लौटा दिया जाता है , अर्थात परावर्तित हो जाता है |
➤ समतल दर्पण प्रकाश का एक अच्छा परावर्तक है |
➤ समतल दर्पण चिकने काँच की एक समतल प्लेट से बना होता है |
➤ प्रकाश की किरणों का पथ दर्शाने वाले चित्र को किरण-आरेख (Ray-Diagram) कहा जाता है |
✸ परावर्तन के नियम (Law of Reflection) :
प्रकाश की किरण किसी सतह पर पड़कर जिन नियमों का पालन करते हुए उस सतह से परावर्तित होती है , उन नियमों को परावर्तन के नियम कहते हैं
➤ इनके कुछ पदों (terms) व्याख्या निम्नलिखित है –
1. आपतित किरण (Incident Ray) :- किसी सतह पर पड़नेवाली किरण को आपतित किरण कहते हैं |
2. आपतन बिंदु (Point Of Incidence) :- जिस बिंदु पर आपतित किरण सतह से टकराती है , उसे आपतन बिंदु कहते हैं |
3. परावर्तित किरण (Reflected Ray) :- जिस माध्यम (जैसे – हवा ) से चलकर आपतित किरण सतह पर आती है उसी माध्यम में गई किरण को परावर्तित किरण कहते हैं |
4. अभिलम्ब (Normal) :- किसी समतल सतह के किसी बिंदु पर खींचे हुए लम्ब को उस बिंदु पर अभिलम्ब कहते हैं |
5. आपतन कोण (Angle of Incidence) :- आपतित किरण, आपतन बिंदु पर खींचे गए अभिलम्ब कोण से जो कोण बनाती है , उसे आपतन कोण कहते हैं |
6. परावर्तन कोण (Angle of Reflection) :- परावर्तित किरण , अप्टन बिंदु पर खींचे गए अभिलम्ब से जो कोण बनाती है , उसे परावर्तन कोण कहते हैं |
➤ प्रकाश के परावर्तन के निम्नलिखित दो नियम हैं –
(i) आपतित किरण, परावर्तित किरण तथा अप्टन बिंदु पर खींचा गया अभिलम्ब तीनो एक ही समतल में होते हैं |
(ii) आपतन कोण (i), परावर्तन कोण (r) के बराबर होता है | (अर्थात i=r)
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✸ प्रतिबिंब (Image) :-
किसी बिंदु स्रोत से आती प्रकाश की किरणें दर्पण से परावर्तन के बाद जिस बिंदु पर मिलती है या जिस बिंदु से आती हुई प्रतीत होती है , उसे बिंदु –स्रोत का प्रतिबिंब कहते हैं |
· प्रतिबिंब दो पराक्र के होते हैं –
(i) वास्तविक प्रतिबिंब (Real Image)
(ii) आभासी या काल्पनिक प्रतिबिंब (Virtual Image)
(i) वास्तविक प्रतिबिंब (Real Image) :- किसी बिंदु – स्रोत से आती प्राकश की किरणें दर्पण से परावर्तन के बाद जिस बिंदु पर वास्तव में मिलती है, उसे उस बिंदु स्रोत का वास्तविक प्रतिबिंब कहते हैं |
➤ वास्तविक प्रतिबिंब परदे प्र प्राप्त किया जा सकता है |
➤ वास्तविक प्रतिबिंब वस्तु की अपेक्षा हमेशा उल्टा होता है |
(ii) आभासी या काल्पनिक प्रतिबिंब (Virtual Image) :- किसी बिंदु – स्रोत से आती प्रकाश की किरणें परावर्तन के बाद जिस बिंदु से आती हुई प्रतीत होती है , उसे उस बिंदु – स्रोत का आभासी प्रतिबिंब कहते हैं |
➤ आभासी प्रतिबिंब को परदे पर प्राप्त नहीं किया जा सकता है |
➤ आभासी प्रतिबिंब वस्तु की अपेक्षा हमेशा सीधा होता है |
✸ पाश्र्व परिवर्तन (Lateral Inversion) :- वस्तु का दाहिना भाग समतल दर्पण में प्रतिबिंब का बायाँ भाग तथा वस्तु का बायाँ भाग प्रतिबिंब का दाहिना भाग दिखाई पड़ता है | इसी को पाश्र्व परिवर्तन कहते हैं |
✸समतल दर्पण द्वारा बने प्रतिबिंब की विशेषताएँ :-
(i) प्रतिबिंब दर्पण के पीछे बनता है |
(ii) प्रतिबिंब का आकर वस्तु के आकर के बराबर होता है |
(iii) पर्तिबिम्ब वस्तु की अपेक्षा सीधा बनता है |
(iv) प्रतिबिंब पार्श्विक रूप से उल्टा होता है |
(v) प्रतिबिंब आभासी होता है |
(vi) प्रतिबिंब दर्पण से उतना ही पीछे बनता है जितना वस्तु दर्पण से आगे रहता है |
✸ गोलीय दर्पण ( Spherical Mirror) :
गोलीय दर्पण उस दर्पण को कहते हैं जिसकी परावर्तक सतह किसी खोखले गोले का एक भाग होता है |
✦ गोलीय दर्पण के प्रकार :-
(i) (Concave Mirror) :- वह गोलीय दर्पण जिसका पृष्ठ अन्दर की ओर अर्थात गोले के केंद्र की ओर वक्रित है, अवतल दर्पण कहलाता है |
उपयोग :-
(A) दाढ़ी बनाने के काम आता है ,|
(B) आँख, दांत, नाक, कान , गले इत्यादि में डॉक्टर प्रकाश की किरणें छोटे अवतल दर्पण से परावर्तित करके इन अंगों में डालते हैं
(C) टेबल लैम्प में इसका उपयोग किया जाता है |
(D) मोटरकारों , रेल इंजनों में तथा सर्च लाइट के लेम्प पे परावर्तक के रूप में होता है |
(ii) उत्तल दर्पण ( Convex Mirror) :- वह गोलीय दर्पण जिसका परावर्तक पृष्ठ बाहर की ओर वक्रित है, उत्तल दर्पण कहलाता है |
उपयोग :-
(A) मोटरकारों में ड्राईवर की सीट के पास लगा होता है | इसमें ड्राईवर पीछे से आने वाले व्यक्तियों व गाड़ियों के प्रतिबिंब देख सकता है |
➤ काँच के टुकड़े की बहरी सतह को राजतित करने से अवतल दर्पण (Concave Mirror) बनता है
➤ काँच के टुकड़े के भीतरी सतह को राजतित करने पर उत्तल दर्पण ( Convex Mirror) बनता है |
✸ गोलीय दर्पण से सम्बंधित विभिन्न पद(term) :
1. ध्रुव (Pole) :- गोलीय दर्पण के मध्य बिंदु को दर्पण का ध्रुव कहते हैं |
2. वक्रता केंद्र (Centre of curvature) :- गोलीय दर्पण जिस गोले का भाग होता है , उस गोले के केंद्र को दर्पण का वक्रता – केंद्र कहते हैं
3. वक्रता – त्रिज्या ( Radius of curvature ) :- गोलीय दर्पण जिस गोले का भाग होता है उसकी त्रिज्या को दर्पण की वक्रता – त्रिज्या कहते हैं |
4. प्रधान या मुख्य अक्ष (Principal Axis) :- गोलीय दर्पण के ध्रुव से वक्रता – केंद्र को मिलाने वाली सरल रेखा को दर्पण का प्रधान या मुख्य अक्ष कहते हैं |
✸गोलीय दर्पण का फोकस तथा फोकस दुरी :-
➤ किसी अवतल दर्पण का फोकस उसके मुख्य अक्षपर वह बिंदु है, जहाँ मुख्य अक्ष के समांतर आती किरणों दर्पण से परावर्तन के बाद मिलती है
➤ गोलीय दर्पण के ध्रुव तथा मुख्य फोकस के मध्य की दूरी फोकस दूरी कहलाती है । इसे अक्षर F द्वारा निरूपित करते हैं । छोटे द्वारक के गोलीय दर्पणों के लिए वक्रता त्रिज्या फोकस दूरी से दुगुनी होती है । हम इस संबंध को R = 2F द्वारा व्यक्त करते हैं ।
➤ गोलीय दर्पण की फोकस – दुरी उसकी वक्रता – त्रिज्या की आधी होती है
✦ गोलीय दर्पण में बने प्रतिबिंब :-
- गोलीय दर्पण पर , जब मुख्य अक्ष के समांतर प्रकाश किरण आपतित होती है , तो वह परावर्तित होकर मुख्य फोकस ( अवतल दर्पण ) से होकर जाती हैं या मुख्य फोकस से होकर आती हुई प्रतीत उत्तल दर्पण में होती है ।
- जब मुख्य फोकस में से होकर जाने वाली ( अवतल दर्पण ) अथवा मुख्य फोकस बिंदु की ओर जाने वाली किरण ( उत्तल दर्पण ) दर्पण पर आपतित होती है , तब वह परावर्तित होकर मुख्य अक्ष के समांतर हो जाती है ।
- जब वक्रता केंद्र में से होकर जाने वाली ( अवतल दर्पण ) या वक्रता केंद्र की ओर जाने वाली ( उत्तल दर्पण ) किरण दर्पण पर आपतित होती है , तब वह परावर्तित होकर अपने मार्ग पर ही वापस लौट जाती है ।
- उत्तल दर्पण के बिंदु P की ओर मुख्य अक्ष से तिर्यक दिशा में आपतित किरण तिर्यक दिशा में ही परावर्तित होती है । आपतित तथा परावर्तित किरणें आपतन बिंदु पर मुख्य अक्ष से समान कोण बनाती है ।
➤ P – दर्पण का ध्रुव
➤ PC – दर्पण का मुख्य अक्ष
➤ C – दर्पण का वक्रता – केंद्र
➤ AB – मुख्य अक्ष पर राखी वस्तु
➤ F – दर्पण का फोकस
➤ A’B’ – मुख्य अक्ष पर बना वस्तु का पर्तिबिम्ब
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✸ चिह्न परिपाटी (Sign Convention) :-
प्रकाश में दर्पण से वस्तु की दूरी ( 𝑢) , दर्पण से प्रतिबिंब की दूरी ( 𝑣 ) , फोकस दूरी ( 𝑓 ) आदि को उचित चिह्न देते हैं । इसके लिए निर्देशांक ज्यामिति की परिपाटी अपनाई जाती है , जो निम्न प्रकार से हैं :-
➤ बिंब हमेशा दर्पण के बाईं ओर रखा जाता है । इसका अर्थ है कि दर्पण पर बिंब से प्रकाश बाईं ओर से आपतित होता है ।
➤ मुख्य अक्ष के समांतर सभी दूरियाँ दर्पण के ध्रुव से मापी जाती हैं ।
➤ मूल बिंदु के दाईं ओर ( + x – अक्ष के अनुदिश ) मापी गई सभी दूरियाँ धनात्मक मानी जाती हैं जबकि मूल बिंदु के बाईं ओर ( – x – अक्ष के अनुदिश ) मापी गई दूरियाँ ऋणात्मक मानी जाती हैं ।
➤ मुख्य अक्ष के लंबवत तथा ऊपर की ओर ( + y – अक्ष के अनुदिश ) मापी जाने वाली दूरियाँ धनात्मक मानी जाती हैं ।
➤ मुख्य अक्ष के लंबवत तथा नीचे की ओर ( – y – अक्ष के अनुदिश ) मापी जाने वाली दूरियाँ ऋणात्मक मानी जाती हैं ।
➤ इस परिपाटी के अनुसार –
(i) अवतल दर्पण की वक्रता – त्रिज्या (R) तथा फोकस – दुरी (F) ऋणात्मक होती है |
(ii) उत्तल दर्पण की वक्रता – त्रिज्या (R) तथा फोकस – दुरी (F) धनात्मक होती है |
✸दर्पण सूत्र :-
(i) ध्रुव P से वस्तु O की दुरी ( PO ) को वस्तु – दुरी या बिंब – दुरी (Object Distance ) कहा जाता है | और इसे संकेत u से निरुपित किया जाता है |
(ii) ध्रुव P से प्रतिबिंब I की दुरी ( PI ) को प्रतिबिंब – दुरी (Image Distance) कहते हैं | और इसे संकेत v से निरुपित करते हैं|
(iii) ध्रुव P से फोकस F की दुरी (PF) को फोकस – दुरी (Focal Length) कहा जाता है और इसका संकेत F है |
(iv) ध्रुव P से दर्पण के वक्रता – केंद्र C की दुरी (PC) को वक्रता – त्रिज्या ( Radius of curvature) कहा जाता है और इसे R से निरुपित करते हैं |
➤
गोलिया दर्पण के लिए वस्तु – दुरी u , प्रतिबिंब – दुरी v और फोकस – दुरी f के बिच सम्बन्ध को एक सूत्र से बताया जा सकता है जिसे दर्पण – सूत्र ( Mirror Formula ) कहा जाता है | जो निम्नलिखित है
✸आवर्धन (Magnification) :
प्रतिबिंब की ऊंचाई और वस्तु की ऊंचाई के अनुपात को आवर्धन कहा जाता है |
➤ आवर्धन को m से सूचित किया जाता है |
प्रकाश का अपवर्तन
✸ प्रकाश का अपवर्तन :- प्रकाश की किरणों के एक पारदर्शी माध्यम से दुसरे पारदर्शी माध्यम में जाने पर दिशा – परिवर्तन की क्रिया को प्रकाश का अपवर्तन कहते हैं |
✸ प्रकाश की चाल :
➤ विभिन्न माध्यमों में प्रकाश की चाल भिन्न – भिन्न होती है |
➤ प्रकाश निर्वात या शून्य में सबसे तीव्र गति लगभग तीन लाख किलोमीटर प्रति सेकेण्ड (300,000 km/s) से चलता है |
➤ जिस माध्यम का प्रकाशीय घनत्व जितना ही अधिक होता है उसमें प्रकाश की चाल उतनी ही कम है |
➤ यदि एक माध्यम की अपेक्षा दुसरे माध्यम का अपवर्तनांक अधिक हो , तो दुसरे माध्यम को पहले माध्यम से प्रकाश्तः सघन (Optical Denser ) कहा जाता है अथवा पहले माध्यम को दुसरे की अपेक्षा प्रकाशतः वायरल (Optically Rarer ) कहा जाता है
✸अपवर्तनांक :-
किसी माध्यम की प्रकाश की किरण की दिशा को बदलने की क्षमता को उसका अपवर्तनांक कहते हैं |
· किसी माध्यम का अपवर्तनांक शून्य में प्रकश की चाल (c) और उस माध्यम में प्रकश की चाल (cm) के अनुपात को कहते हैं |
✸ आपेक्षिक अपवर्तनांक :-
दो माध्यमों के निरपेक्ष अपवर्तनांको के अनुपात को आपेक्षिक अपवर्तनांक कहा जाता है |
✦ अपवर्तन के नियम :
1. आपतित किरण , आपतन बिंदु पर अभिलंब और अपवर्तित किरन तीनों एक से समतल में होते हैं |
2. किन्हीं दो माध्यमों और प्रकाश के किसी विशेष वर्ण के लिए आपतन कोण अनुपात एक नियतांक होता है |
➤ द्वितीय नियम को स्नेल का नियम (Snell’s law) भी कहा जाता है
✸ प्रकाश के अपवर्तन का दैनिक जीवन में उपयोग :
(i) जब प्रकश की किरण किसी प्रकाशतः वायरल माध्यम से प्रकाशतः सघन माध्यम में जाती है टो वह अभिलंब की ओर मुड़ जाती है |
(ii) जब प्रकाश की किरण किसी प्रकाशतः सघन माध्यम से प्रक्ष्तः वायरल माध्यम में जाती है टो वह अभिलंब से दूर हट जाती है |
(iii) जब प्रकश की किरण दो माध्यमो को अलग करने वाली सतह पर लंबवत पड़ती है तो वह बिना मुड़े अर्थात अपवर्तन के सीधे निकाल जाती है |
✸ प्रिज्म ( Prism) :-
किसी कोण पर झुके दो समतल पृष्ठों के बिच घिरे किसी पार्दशक माध्यम को प्रिज्म कहते हैं |
➤ प्रकाश का आवागमन प्रिज्म के जिन दो फलकों से होता है , उन्हें प्रिज्म का अपवर्तक पृष्ठ कहते हैं |
➤ अपवर्तक पृष्ठों के बिच के कोण को प्रिज्म का अपवर्तक कोण या प्रिज्म का कोण कहा जाता है |
➤ आपतित किरण तथा निर्गत किरण के बिच के कोण को विचलन का कोण कहते हैं
➤ अपवर्तक कोण अधिक होने पर विचलन कोण भी अधिक होता है |
✸लेंस (Lens) :- पारदर्शक पदार्थ का वह टुकड़ा है जो दो निश्चित ज्यामितीय से गिरा रहता है |
➤ लेंस दो प्रकार के होते हैं –
1. उत्तल लेंस (Convex Lens)
2. अवतल लेंस (Concave Lens)
➤ उत्तल लेंस में किनारे की अपेक्षा मध्य का भाग अधिक मोटा होता है तथा लेंस में मध्य भाग की अपेक्षा किनारे का भाग अधिक मोटा होता है |
➤ लेंस को घेरनेवाली गोलीय सतह के केंद्र कोम लेंस का वक्रता – केंद्र कहते हैं |
1. उत्तल लेंस के विभिन्न रूप हैं –
(i) उभयोत्तल (Biconvex) :- जिसके दोनों तल उत्तल हों |
(ii) समतलोत्तल (Plano-convex) :- जिसका एक तल समतल और दूसरा उत्तल हो |
(iii) अवतलोत्तल (Concavo-convex) :- जिसका एक तल उत्तल और दूसरा अवतल हो |
2. अवतल लेंस के विभिन्न रूप हैं –
(i) उभयावतल ( Biconcave) :- जिसके दोनों तल अवतल हों |
(ii) समतलावतल(Plano-Concave) :- जिसका एक तल समतल और दूसरा अवतल हो |
(iii)उत्तलावतल (Convexo-Concave) :- जिसका एक तल उत्तल और दूसरा अवतल हो |
✸ वक्रता – केंद्र तथा मुख्य अक्ष :-
लेंस को घेरनेवाली गोलीय सतह के केंद्र को लेंस का वक्रता – केंद्र (Centre Of Curvature) कहते हैं |
➤ किसी लेंस का मुख्य अक्ष (Principal Axis ) उसकी सतहों के वक्रता – केन्द्रों को मिलाने वाली रेखा होती है |
➤ किसी पतले लेंस का प्रकाश – केंद्र उसके मुख्य अक्ष पर वह बिंदु है जिससे होकर जानेवाली किरण लेंस से अपवर्तन के बाद बिना विचलन के निकाल जाती है |
✸ लेंस की क्रिया :
1. उत्तल लेंस का कार्य उससे होकर जानेवाली किरणपुंज को अभिसरित करना है | यही कारण है की उत्तल लेंस को अभिसारी लेंस भी कहा जाता है |
2. अवतल लेंस का कार्य उससे होकर जानेवाली किरणपुंज को अपसारितकरना है | यही कारण है की अवतल लेंस को अपसारी लेंस भी कहा जाता है |
✸ फोकस एवं फोकस – दुरी :
➤ उत्तल लेंस के मुख्य अक्ष पर एक निश्चित बिंदु F1 से आती किरणें लेंस से अपवर्तित होकर मुख्य अक्ष के समांतर हो जाती है | इस बिंदु F1 को उत्तल लेंस का प्रथम मुख्य फोकस(first principal focus) कहा जाता है |
➤ किसी अवतल लेंस के मुख्य अक्ष के निश्चित बिंदु F1 की दिशा में आपतित किरणें लेंस से अपवर्तन के बाद मुख्य अक्ष के समांतर निकलती है इस बिंदु F1 को अवतल लेंस का प्रथम मुख्य फोकस कहते हैं |
➤ लेंस के प्रकाश – केंद्र (Optical centre) O से प्रथम मुख्य फोकस F1 की दुरी को लेंस की प्रथम मुख्य फोकस – दुरी कहा जाता है |
➤ यदि प्रकाश की किरणें किसी उत्तल लेंस के मुख्य अक्ष के समांतर आपतित हों, तो वे लेंस से अपवर्तित होकर मुख्य क्ष पर लेंस के दूसरी ओर स्थित जिस बिंदु से होकर जाती है , उस बिंदु को उस उत्तल लेंस का द्वितीय मुख्य फोकस F2 कहा जाता है |
➤ यदि प्रकाश की किरणें किसी अवतल लेंस के मुख्य अक्ष के समांतर आपतित हों, तो अपवर्तित किरणें जिस निश्चित बिंदु F2 से आती हुई प्रतीत होती है , उस बिंदु को अवतल लेंस का द्वितीय मुख्य फोकसकहते हैं |
➤ लेंस से प्रकाश – केंद्र से द्वितीय मुख्य फोकस की दुरी लेंस की द्वितीय मुख्य फोकस – दुरी कहा जाता है |
➤ लेंस के प्रकश – केंद्र से उसके फोकस की दुरी को उस लेंस की फोकस – दुरी कहते हैं
➤ किसी लेंस के सतहों की वक्रता जितनी अधिक होगी, अर्थात लेंस जितना मोटा होगा , उसकी फोकस दुरी उतनी ही कम होगी |
➤ उताल लेंस की फोकस दुरी धनात्मक होती है
➤ अवतल लेंस की फोकस दुरी ऋणात्मक होती है |
✸ प्रतिबिंब (Image) :-
किसी बिंदु – स्रोत से आती प्रकाश की किरणें लेंस से अपवर्तन के बाद जिस बिंदु पर मिलती है या जिस बिंदु से आती हुई प्रतीत होती है उसे उस बिंदु – स्रोत का प्रतिबिंब कहते हैं|
➤ यह दो प्रकार का होता है –
1. वास्तविक प्रतिबिंब (Real Image)
2. आभासी प्रतिबिंब (Virtual Image)
1. वास्तविक प्रतिबिंब (Real Image) :- किसी बिंदु – स्रोत से आती किरणें अपवर्तन के बाद जिस बिंदु पर वास्तव में मिलती है , उसे उस बिंदु – स्रोत का वास्तविक प्रतिबिंब कहते हैं |
➤ वास्तविक प्रतिबिंब वस्तु की अपेक्षा हमेशा उल्टा होता है |
2. आभासी प्रतिबिंब (Virtual Image) :- किसी बिंदु – स्रोत से आती किरणें अप्वारातना के बाद जिस बिंदु से आती हुई प्रतीत होती है , उसे उस बिंदु – स्रोत का आभासी प्रतिबिंब कहते हैं |
➤ आभासी प्रतिबिंब वस्तु की अपेक्षा हमेशा सीधा होता है |
➤ उत्तल लेंस द्वारा किसी वस्तु के वास्तविक और आभासी दोनों ही प्रकार के प्रतिबिंब बनते हैं |
➤ अवतल लेंस द्वारा किसी वस्तु का सदा आभासी प्रतिबिंब ही बनता है |
✸ लेंसों के लिए निर्देशांक चिह्न :-
(i) लेंस के मुख्य अक्ष को निर्देशांक XX’ अक्ष मन जाता है |
(ii) सभी दूरियां लेंस के प्रकश – केंद से मापी जाती है |
(iii) आपतित प्रकाश की दिशा में मापी गयी सभी दूरियां धनात्मक (positive) होती है तथा आपतित प्रकाश की दिशा के विपरीत में मापी गयी सभी दूरियां ऋणात्मक (negative) होती है
(iv) लेंस के प्रधान अक्ष XX’ के लंबवत मापी गयी दूरियां धनात्मक तब होती है जब वे अक्ष के ऊपर होती है , तथा ऋणात्मक तब होती है जब वे अक्ष के निचे होती है |
✸ लेंस सूत्र (Lens formula) :-
लेंस के लिए वस्तु – दुरी u , प्रतिबिंब – दुरी v, फोकस दुरी f के बिच के संबध को एक सूत्र द्वारा बताया जाता है जिसे लेंस सूत्र कहते हैं | लेंस सूत्र निम्नलिखित है –
(i) प्रकाश केंद्र Lसे वस्तु या बिंब की दुरी LO को वस्तु – दुरी या विम्ब – दुरी कहते हैं | और इस संकेत को u से निरुपित किया जाता है |
(ii) प्रकाश केंद्र Lसे प्रतिबिंब I की दुरी LI को प्रतिबिंब – दुरी कहते हैं और इसे vसे निरुपित किया जाता है |
(iii) प्रकश केंद्र L से लेंस के फोकस F2 की दुरी LF2 को फोकस दुरी कहते हैं और इसे fसे निरुपित किया जाता है |
✸ आवर्धन :- प्रतिबिंब की ऊंचाई और वस्तु की ऊंचाई के अनुपात को आवर्धन कहा जाता है |
➤
यदि वस्तु की ऊंचाई h और प्रतिबिंब की ऊंचाई h’ हो तो लेंस का आवर्धन –
➤ आवर्धन m के मान में ऋणात्मक चिह्न का अर्थ है की प्रतिबिंब वस्तु के सापेक्ष उल्टा बन रहा है अर्थात वास्तविक है और m का धनात्मक मान आभासी प्रतिबिंब इंगित करता है |
➤ किसी लेंस की क्षमता (P) उसकी फोकस दुरी (f) के व्युत्क्रम से मापी जाती है |
➤ लेंस की मात्र का SI मात्रक m -1 होता है |
➤ 1 डाइओप्टर (D) उस लेंस की क्षमता है जिसकी फोकस – दुरी 1 मीटर हो |
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Vivek Kumar
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