Class 10 Science Chapter 11 मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार Notes In Hindi. इस अध्याय में हम मानव नेत्र का अध्ययन , उसके दोष और निवारण के बारे में पढ़ेंगे । हम कुछ प्रकाशीय परिघटनाओं जैसे- इंद्रधनुष बनना , आकाश का रंग लाल या नीला होना इत्यादि के कारणों आदि के बारे में पड़ेंगे । Manav Netra Class 10 In Hindi Notes
✽ भौतिक विज्ञान (Physics) ✽
Class – 10
Chapter -2
मानव नेत्र तथा रंगबिरंगा संसार
(Human Eye And Colorful World)
✸ मानव नेत्र (Human Eye) :
मानव नेत्र एक अद्भुत प्रदत्त प्रकाशीय यंत्र है जो प्रकाश के अपवर्तन के द्वारा किसी वस्तु का अस्थाई प्रतिबिंब बनाता है मानव नेत्र का कहलाता है
✸बनावट :
मानव नेत्र या आँख लगभग गोलीय होता है |
➤ आँख के गोले के गोले , जिसे नेत्रगोलक(Eyball)कहते हैं , की सबसे बाहरी परत सफ़ेद मोटे आपरदर्शी चमड़े की होती है, जिसे स्वेट पटल या स्क्लेरोटिक कहा जाता है |
➤ आँख का अगला कुछ उभरा हुआ भाग पारदर्शी होता है जिसे कॉर्निया (Cornea) कहते हैं | जो मानव नेत्र के आंतरिक अंगों को सुरक्षा प्रदान करता है|
➤ स्क्लेरोटिक के निचे गहरे भूरे रंग की परत होती है जिसे कोरोयड (Choroid) कहते हैं |
➤नेत्रगोलक की सबसे भीतरी सुक्ष्मग्राही परत को दृष्टिपटल या रेटिना (Retina) कहते हैं |
➤ नेत्र लेंस :- यह प्राकृतिक उत्तल लेंस का बना होता है जो वस्तु का वास्तविक और उल्टा प्रतिबिंब रेटिना पर बनाता है |
➤लेंस और रेटिना के बिच का भाग काचाभ द्रव से भरा होता है |
➤ आईरिस :- यह कार्निया और नेत्र लेंस के बीच का भाग है जिसके बीचों बीच एक छिद्र होता है जिसे पुतली कहते हैं यह प्रकाश की तीव्रता के प्रति संवेदनशील होता है
✸ सिद्धांत :
➤ मानव नेत्र प्रकाश के अपवर्तन के नियम पर कार्य करता है तथा वस्तु का अस्थाई तथा उल्टा प्रतिबिंब बनाता है जिससे मस्तिष्क के प्रेरणा से हम सीधा रूप में देख पाते हैं
✸मानव नेत्र के देखने की क्रियाविधि :
➤जब किसी वस्तु से चली प्रकाशीय किरण नेत्र लेंस से अपवर्तित होता है तो उस वस्तु का वास्तविक और उल्टा प्रतिबिंब रेटिना पर प्राप्त होता है जिसकी सूचना प्रकाशीय तंतु द्वारा मस्तिष्क को प्राप्त होती है तथा मस्तिष्क के प्रेरणा से मानव नेत्र वस्तु को सीधा करके स्पष्ट रूप में देख पाता है|
✸ समंजन – क्षमता :
वस्तु दूर रहे या निकट , हम उसे साफ़ – साफ़ देखते है | आँख ऐसा अपने लेंस की फोकस – दुरी को बदलकर करता है | यह परिवर्तन सिलियरी पेशियों के तनाव के घटने – बढ़ने से होता है | आँख के इस सामर्थ्य को समंजन – क्षमता (Power Of Accommodation) कहते हैं |
✸स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दुरी :
जिस न्यूनतम दुरी तक आँख वस्तु को साफ़ – साफ़ देख सकता है , उसे स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दुरी कहते हैं | इसे संकेत D से सूचित किया जाता है |
➤सामान्य नेत्र के लिए यह दुरी लगभग 25 cm होती है |
✸ मानव नेत्र का दूर बिंदु :
वह दूरस्थ बिंदु जहाँ पर स्थित किसी वस्तु को नेत्र बिना समंजन के स्पष्ट देख सकता है , नेत्र का दूर – बिंदु कहलाता है |
➤ मानव नेत्र का दूर बिंदु नेत्र लेंस से अनंत दूरी पर होता है |
➤ इसे F से सूचित किया जाता है |
✸ मानव नेत्र का निकट बिंदु :
वह निकटस्थ बिंदु जहाँ पर स्थित किसी वस्तु को नेत्र समंजन की क्रिया से स्पष्ट देख सकता हिया , नेत्र का निकट – बिंदु कहलाता है |
➤ एक सामान्य स्वस्थ्य नेत्र का निकट बिंदु या स्पष्ट दृष्टि के अल्पतम दूरी 25 cm होती है |
➤ इस दूरी को N से सूचित किया जाता है |
➤ दूर – बिंदु और निकट – बिंदु के बिच की दुरी को दृष्टि – परास (Range of vision) कहा जाता है |
✸दृष्टि दोष (Defects Of Vision) :
कई कारणों से नेत्र बहुत दूर स्थित या निकट स्थित वस्तुओं का स्पष्ट प्रतिबिंब रेटिना पर बनाने की क्षमता खो देता है | ऐसी कमी दृष्टि दोष कहलाती है |
➤ मानव नेत्र में दृष्टि दोष मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं –
(1) निकट – दृष्टि दोष (short-sightedness or Myopia)
(2) दूर – दृष्टि दोष (far-sightedness or hypermetropia)
(3) जरा – दूरदर्शिता (presbyopia)
(1) निकट – दृष्टि दोष (short-sightedness or Myopia):
जिस नेत्र दोष के कारण कोई व्यक्ति निकट स्थित वस्तु को स्पष्ट रूप से देख पाता है किंतु दूर स्थित वस्तु को स्पष्ट रूप से नहीं देख पाता है निकट दृष्टि दोष कहलाता है |
✦ दोष के कारण :
इस दोष के दो कारण हो सकते हैं –
(i) नेत्रगोलक का लम्बा हो जाना , अर्थात नेत्र – लेंस और रेटिना के बिच की दुरी का बढ़ जाना |
(ii) नेत्र – लेंस का आवश्यकता से अद्घिक मोटा हो जाना जिससे उसकी फोकस – दुरी का कम हो जाना |
✦ उपचार :
इस दोष को दूर करने के लिए उचित फोकस दूरी वाले अवतल लेंस के चश्मे का उपयोग किया जाता है जो दूर स्थित वस्तु को नजदीक में लाकर उसे आसानी से देख पाता है |
(2) दूर – दृष्टि दोष (far-sightedness or hypermetropia):
वह नेत्र दोष जिसके कारण कोई व्यक्ति दूर स्थित वस्तु को स्पष्ट रूप से देख पाता है किंतु नजदीक स्थित वस्तु को स्पष्ट रूप से नहीं देख पाता है दूर- दृष्टि दोष कहलाता है |
✦ दोष के कारण :
(i) नेत्रगोलक का छोटा हो जाना , अर्थात नेत्र – लेंस और रेटिना के बिच की दुरी का कम हो जाना |
(ii) नेत्र – लेंस का आवश्यकता से अधिक पतला हो जाना जिससे उसकी फोकस – दुरी का बढ़ जाना |
✦ उपचार :
इस दोष को दूर करने के लिए उचित फोकस दूरी वाले उत्तल लेंस के चश्मे का उपयोग किया जाता है|
(3) जरा – दूरदर्शिता (presbyopia) :
जिस नेत्र दोष से ग्रसित व्यक्ति को नजदीक स्थित वस्तु या दूर स्थित वस्तु स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देता है, उस दोष को जरा दृष्टि दोष कहते हैं|
✦ दोष के कारण :
इस दृष्टि दोष का मुख्य कारण सिलियरी मांसपेशियों को ठीक से कार्य करना नहीं है, यह नेत्र दोष प्रायः अधिक उम्र के व्यक्तियों में होता है |
✦उपचार :
इस दृष्टि दोष को दूर करने के लिए बाइफोकल (bifocal) लेंस का उपयोग किया जाता है जिसमे दो लेंस एक ही चश्मे में ऊपर – निचे लगा दिए जाते हैं |
✸ मानव नेत्र और फोटोग्राफिक कैमरा में समानता :
मानव नेत्र |
फोटोग्राफिक कैमरा |
1. यह प्रकाश के अपवर्तन के सिधांत पर कार्य करता है |
1. यह भी प्रकाश के अपवर्तन के सिधांत पर कार्य करता है |
2. यह उत्तल लेंस का बना होता है | |
2. यह भी उत्तल लेंस का बना होता है | |
3. यह वस्तु का वास्तविक तथा उल्टा प्रतिबिंब बनाता |
3. यह भी वस्तु का वास्तविक तथा उल्टा प्रतिबिम्ब ही बनाता है |
4. इसमें अनेक संवेदनशील भाग होते हैं |
4. इसमें भी अनेक संवेदनशील भाग होते हैं |
✸ मानव नेत्र और फोटोग्राफिक कैमरा में असमानता :
मानव नेत्र |
फोटोग्राफिक कैमरा |
1. यह वस्तु का अस्थाई प्रतिबिंब बनाता है | |
1.यह वस्तु का स्थाई प्रतिबिंब बनाता है |
|
2. यह प्राकृतिक उत्तल लेंस का बना होता है | |
2. यह कृत्रिम उत्तल लेंस का बना होता है |
3. इसकी फोकस दूरी स्वतः परिवर्तित होती है |
3. इसकी फोकस – दुरी स्वतः परिवर्तित होती है |
4. इसकी फोकस दूरी स्वतः परिवर्तित नहीं होती है
|
4. इसमें प्रकाश की तीव्रता के लिए शटर कार्य करता है |
✸वायुमंडलीय अपवर्तन : वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण निम्न घटनाएँ मुख्य हैं –
(i) वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण हमें तार टिमटिमाते (Twinkling) प्रतीत होते हैं |
(ii) वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण ही सूर्योदय तथा सूर्यास्त के बिच का समय लगभग 4 मिनट बढ़ जाता है |
✸प्रिज़्म :
तीन पारदर्शी सतहों से घिरी हुई क्षेत्र को प्रिज़्म कहते हैं | इनके कोई भी दो सतह समांतर नहीं होता है|
✸प्रिज़्म का कोण :
प्रिज़्म के दो अपवर्तक सतहों के बीच बना कौण प्रिज़्म का कोण कहलाता है|
✸ प्रकाश का वर्ण – विक्षेपण :
श्वेत प्रकाश के इसके विभिन्न रंगों में विभक्त होने की घटना को प्रकाश का वर्ण – विक्षेपण (dispersion) कहते हैं |
➤ श्वेत प्रकाश कई रंगों का मिश्रण है |
✸वर्ण पट्ट :
श्वेत प्रकाश के वर्ण विक्षेपण के फलस्वरूप प्राप्त सात रंगो के पट्टी को वर्ण पट्ट कहते है |
➤ वे रंग हैं – बैगनी (V), जमुनी (J), नीला (B), हरा (G), पिला (Y), नारंगी (O), तथा लाल (R) | संक्षेप में इसे बैजानीहपीनाला (VIBGYOR) कहते हैं |
➤ बैगनी (Violet) वर्ण (रंग) के प्रकाश का तरंगदैर्घ्य सबसे कम और लाल (Red) वर्ण (रंग) के प्रकाश का तरंगदैर्घ्य सबसे अधिक होता है |
➤ श्वेत प्रकश के वर्ण – निक्षेपण में बैगनी रंग का विचलन सबसे अधिक होता है और लाल रंग का सबसे कम |
✸प्रकाश के विभिन्न वर्ण (रंग) और उनके तरंगदैर्घ्य :
वर्ण (रंग) |
तरंगदैर्घ्य नैनोमीटर (nm) में |
बैगनी |
400-440 |
जामुनी |
440-460 |
नीला |
460-500 |
हरा |
500-570 |
पिला |
570-590 |
नारंगी |
590-620 |
लाल |
620-700 |
✸श्वेत प्रकाश सात रंगों का मिश्रण है कैसे ?
प्रसिद्ध वैज्ञानिक न्यूटन (1642-1727) ने ही सर्वप्रथम प्रिज्म की सहायता से सूर्य के प्रकाश का वर्णपट प्राप्त किया था | उन्होंने एक दुसरे पिज्म द्वारा वर्णपटके रंगों को और विभाजित करने का प्रयास किया | उन्होंने पाया की दूसरा प्रिज्म उन रंगों को और अधिक रंगों में विभाजित नहीं करता | फिर उन्होंने दुसरे प्रिज्म को पहले प्रिज्म के विपरीत रखा और पाया की दुसरे प्रिज्म से निर्गत प्रकाश श्वेत प्रकाश था | इससे उन्होंने यह निष्कर्ष निकला की सूर्य का प्रकाश वर्णपट के रंगों से ही बना है | कोई भी प्रकाश जो सूर्य के प्रकाश जैसा वर्णपट दे, श्वेत प्रकाश कहलाता है |
✸इंद्रधनुष :
वर्षा होने के बाद जब सूर्य चमकता है और हम सूर्य की ओर पीठ करके खड़े होते हैं, तो हमें कभी – कभी आकाश में अर्धवृताकार रंगित पट्टी दिखाई पड़ती है | इस अर्धवृताकार रंगीन पट्टी को इन्द्रधनुष (Rainbow) कहते हैं |
➤ असंख्य वर्षा की बूंदें प्रिज्म – सा व्यवहार करती है और सूर्य के श्वेत प्रकाश को उसके सातों रंगों में विभक्त कर देती है और हमें इन्द्रधनुष दिखाई पड़ता है |
✸ प्रकाश का प्रकीर्णन :
➤आकाश का नीला रंग, गहरे समुद्र के जल का रंग, सूर्यास्त के समय सूर्य लाल दिखाई देना प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण ही होता है |
➤ प्रकाश के पथ में आनेवाले कणों से विभिन्न दिशाओं में प्रकिर्णित प्रकाश के कारण ही हम प्रकाश के पथ को देख पाते हैं | पथ के विभिन्न बिन्दुओं से प्रकाश हमारी आँखों तक पहुँचता हिया और हम प्रकाश के पथ को देख पाते हैं |
✸कोलॉइड :
➤ दूध एक कोलॉइड है जिसमे छोटे – छोटे वसा के कण जल में निलंबित रहते हैं |
➤ धुआँ भी एक कोलॉइड है जिसमे राख के कण हवा में निलंबित रहते हैं |
➤ कुहासा भी कोलॉइड का एक उदहारण है जिसमे छोटो – चोटी जल की बुँदे वायु में निलंबित रहती है |
✸ टिंडल प्रभाव :
किसी कोलॉइड विलयन में निलंबित कणों से प्रकाश के प्रकीर्णन को टिंडल प्रभाव (Tyndall Effects) कहा जाता है |
✸प्रकाश के विभिन्न रंगों का प्रकीर्णन :
➤ हम जानते हैं की नील र्कंग का तरंगदैर्घ्य कम और लाल रंग का अधिक होता है | अतः जब श्वेत प्रकाश सूक्ष्म कणों पर पड़ता है तो नील रंग का प्रकीर्णन अधिक होता है और लाल रंग का प्रकीर्णन बहुत कम होता है |
➤ जब धुएँ में राख के सूक्ष्म कण अधिक होते हैं तो नील रंग का प्रकीर्णन अधिक होता है | अतः धुआँ हल्का नीला प्रतीत होता है
➤ बादल सफ़ेद दिखाई पड़ता है , क्योंकि इसमें पानी की बनों का आकर बड़ा होता है |
✸आकाश का रंग :
➤ चन्द्रमा पर वायुमंडल नहीं है | इसलिए चन्द्रमा पर खड़े अंतरिक्षयात्री को आकाश काला प्रतीत होता है | क्योंकि वायुमंडल नहीं होने के कारण प्रकीर्णन नहीं होता है |
✸सूर्य का रंग :
➤ सूर्योदय और सूर्यास्त के समय , वायुमंडल से होकर सूर्य के प्रकाश को अधिक दुरी तय करनी पड़ती है और इसे अधिक कणों से होकर गुजरना पड़ता है , जो मुख्यतः नील रंग को प्रकिर्णित कर देते हैं | अतः जो बचा हुआ प्रकाश हमारी आँखों तक आता है उसमे मुख्यतः लाल रंग होता है | यही कारण है की सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सूर्य लाल दिखाई पड़ता है |
Note :
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Good sir
Sir aapka notes bahut accha hai
Nice
Ashan shabdo me satik notes hai sir