कक्षा 10 नियंत्रण और समन्वय नोट्स
कक्षा 10 नियंत्रण और समन्वय नोट्स Control and Co-Ordination Notes Class 10 Biology In Hindi . नियंत्रण एवं समन्वय Chapter 5 Notes In Hindi , नियंत्रण एवं समन्वय क्या है ?, तंत्रिका तंत्र क्या है ?, पौधों में नियंत्रण एवं समन्वय , जंतुओं में नियंत्रण, प्रतिवर्ती चाप क्या है ? अंतः स्त्रावी तंत्र क्या है ? जनन ग्रंथि ? मानव तंत्र को कितने भागों में बांटा गया है ?, हार्मोन कितने प्रकार के होते हैं ?
परिचय
अध्याय- 5. नियंत्रण और समन्वय (Control and Co-ordination)
* नियंत्रण एवं समन्वय :-
➤जैव कार्यों के सफल संचालन हेतु सभी जीवों के अंगों एवं अंगतंत्रों का समन्वय तथा नियंत्रण जरुरी है |
➤ वैसे जीव जिनका शरीर एक कोशिका का बना होता है, जैसे क्लेमाइडोमोनास, अमीबा आदि में सभी क्रियाओं का संचालन, समन्वय तथा उनका नियंत्रण उसी अकेली कोशिका के द्वारा होता है , जबकि बहुकोशिकीय जीवों में भिन्न–भिन्न कार्य के लिए अलग अलग अंग एवं अंगतंत्र होते है |
➤ पौधों एवं जंतुओं में स्थापित समन्वय और नियंत्रण में अंतर होता है |
➤पौधों में तंत्रिका तंत्र नहीं पाया जाता है | पौधों में केवल रासायनिक नियंत्रण होता है |* पौधों में नियंत्रण एवं समन्वय :-
➤ पौधों में नियंत्रण एवं समन्वय का कार्य पादप हार्मोन के द्वारा होता है जिसे फाइटोहार्मोंस कहते हैं | पौधों में बाह्य उघिपनों को ग्रहण करने की क्षमता होती है तथा उसके अनुसार उसमें गति भी होती है | पौधों में ऐसी गति को अनुवर्तिनी गति (tropic movement) कहते है | जो निम्न प्रकार के होते हैं —————-
(i) प्रकाश– अनुवर्तन (Phototropism) :-
इसमें पौधों के अंग प्रकाश की और गति करते है | इस प्रकार की गति ताने के शीर्ष भाग में स्पष्ट दिखती है |
(ii) गुरुत्वानुवर्तन (Geotropism):- इसमें पौधों के अंग गुरुत्वाकर्षण की दिशा में गति करते है | यह पौधे की जड़ों में दिखता है |
(iii) रासायनिक अनुवर्तन (Chemotropism):-
यह गति रासायनिक उघीपनों के द्वारा होता है | परागन के समय परागकण से निकलने वाली परागनलिका की बिजंद में होने वाली गति इस प्रकार का अनुवर्तन दर्शाता है |
(iv) जलानुवर्तन (Hydrotropism):- पौधों के अंग का जल की और होने वाली गति जलानुवर्तन कहलाती है |
*पौधों में रासायनिक समन्वय :-
पौधों की जैविक क्रियाओं के बीच समन्वय स्थापित करने वाले रासायनिक पदार्थ को पादप हार्मोन या फाइटोहार्मोन कहते हैं |
➤ पादप हार्मोन पौधों के विभिन्न अंगो में पहुंचकर वृद्धि एवं अनेक उपापचयी क्रियाओं नियंत्रित एवं प्रभावित करते हैं |
➤ बहुत से कार्बनिक यौगिक जो पौधों से उत्पन्न नहीं होते, परन्तु पादप हार्मोन की तरह कार्य करते हैं उन्हें भी वृद्धि–नियंत्रक (growth regulator) पदार्थ कहा जाता है |
➤ रासायनिक संघटन तथा कार्यविधि के आधार पर हार्मोन्स को पाँच वर्गों में विभाजित किया गया है —–
1. ऑक्जिन ( Auxin)
2. जिबरेलिन्स (Gibberellins)
3. साइटोकाइनिन (Cytokinin)
4. ऐबसिसिक एसिड ( Abscisic acid)
5. एथिलीन (Ethylene)
1. ऑक्जिन ( Auxin) :-
पौधों के स्तंभ–शीर्ष पर मुख्यतः संश्लेषित होनेवाले ये कार्बनिक यौगिक कोशिका विभाजन एवं कोशिका दिर्घन में सहायता करते हैं |
➤ ऑक्जिन के द्वारा मुख्यतः पौधे के ताने में वृद्धि होती है |
➤ ये प्रायः बीजरहित फलों के उत्पादन में सहायक होते हैं |
2. जिबरेलिन्स (Gibberellins) :-
इस वर्ग का मुख्य हार्मोन जिबरेलिक अम्ल है , जो जटिल कार्बनिक यौगिक है
➤ कोशिका विभाजन एवं कोशिका दिर्घन द्वारा ये पौधे के स्तंभ की लम्बाई में वृद्धि करते हैं | इनके उपयोग से वृहित आकार के फलों एवं फूलों का उत्पादन किया जाता है |
3. साइटोकाइनिन (Cytokinin) :-
ये ऐसे रासायनिक कार्बनिक पदार्थ है, जो बीजों के भूर्णपोष एवं पौधों की जड़ों में संश्लेषित होते हैं |
➤ ये कोशिका विभाजन में मुख्य भूमिका अदा करते हैं |
➤ ये जीर्णता को रोकते हैं एवं पर्न्हारित को काफी समय तक नष्ट होने नहीं देते हैं |
4. ऐबसिसिक एसिड ( Abscisic acid) :-
यह एक वृद्धि रोधक कार्बनिक यौगिक है जो ऑक्जिन एवं जिबरेलिन्स के प्रभाव को उल्टा कर देते हैं |
➤ यह ऐसा रासायनिक यौगिक है जिसे किसी पौधे पर छिड़कने पर शीघ्र ही पत्तियों का विगलन हो जाता है |
5. एथिलीन (Ethylene):-
यह गैस रूप में पाया जानेवाला हार्मोन है |
➤ यह खासकर वैसे उच्च वर्ग के पौधों में पाया जाता है जो प्रतिकूल परिस्थितियों में रहते हैं
➤ यह फलों को पकाने में सहायक होते हैं | अतः इसे फल पकानेवाला हार्मोन भी कहा जाता है |
➤ कृत्रिम रूप से फलों को पकाने में इसका उपयोग किया जाता है |
* जंतुओं में नियंत्रण एवं समन्वय :
जंतुओं में विभिन्न प्रकार की शारीरिक क्रियाओं के बिच समन्वय तथा नियंत्रण निम्नांकित दो प्रकार से होता है |
1. तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय (Nervous Control and Coordination)
2. रासायनिक नियंत्रण एवं समन्वय (Chemical Control and Coordination)
1. तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय (Nervous Control and Coordination) :- यह तंत्रिकाओं के द्वारा होता है |
➤ उच्च श्रेणी के जंतुओं में ऐसी तंत्रिकाएं मिलकर एक तंत्र का निर्माण करती है जिसे तंत्रिका तंत्र (Nervous System) कहते हैं |
➤ जंतुओं के शारीर में एक विशेष प्रकार का ऊतक पाया जाता है जिसे तंत्रिकीय ऊतक (Nervous Tissue) कहते हैं | तंत्रिकीय ऊतक न्यूरोन (neuron) का बना होता है अर्थात तंत्रिका कोशिकाओं से तंत्रिका ऊतक तथा फिर तंत्रिका ऊतक से तंत्रिका तंत्र का निर्माण होता है
➤ अधिकांश जंतुओं में तंत्रिका तंत्र विभिन्न प्रकार की आंतरिक संवेदना : जैसे प्यास , भूख, तृष्णा , रोग इत्यादि तथा बाह्य संवेदना : जैसे भौतिक , रासायनिक , यांत्रिक या विधुतीय प्रभाओं को ग्रहण करने, शरीर के विभिन्न भागों में उनका संवहन करने तथा संवेदनाओं की प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए अंगों को प्रेरित करने का कार्य करते हैं |
➤ उच्च श्रेणी के जंतुओं में तंत्रिका तंत्र मस्तिष्क (brain) मेरुरज्जु (spinal cord ) तथा विभिन्न प्रकार की तंत्रिकाओं (nerves) से बना होता है |
* तंत्रिका कोशिका या न्यूरॉन :-
यह तंत्रिका तंत्र की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है |
➤ प्रत्येक न्यूरॉन में एक ताराकार कोशिकाका्य (cell body) होता है जिसे साइटन ( cyton) कहते है |
➤ साइटन में कोशिकद्रव्य तथा एक बड़ा न्यूक्लियस होता है |
➤ साइटन से अनेक पतले तंतु या प्रवर्धन निकले होते है जो अन्य की अपेक्षा लम्बा होता है ,एक्सन (axon) कहलाता है | तथा छोटे और शाखित Dendrites कहलाते हैं|
➤ डेड्राइट्स संवेदनाओं को संवेदी अंग ( कान, नाक , जीभ आदि ) से ग्रहण कर साइटन को पंहुचाते हैं|
➤ साइटन में संवेदना विधुत आवेग में परिवर्तित हो जाता है |
* मनुष्य का मस्तिष्क:-
मस्तिष्क एक अत्यंत महत्वपूर्ण कोमल अंग है | तंत्रिका तंत्र के द्वरा शरीर की क्रियाओं के नियंत्रण और समन्वय में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका मस्तिष्क की ही होती है |
➤ मस्तिष्क खोपड़ी की मस्तिष्क्गुहा (brain box) के अन्दर सुरक्षित रहता है | यह चरों और से एक तंतुमय संयोजी ऊतक की एक झिल्ली से घिरा होता है जिसे मेनिंजिज कहते है |
➤ मेनिंजिज कोमल मस्तिष्क को बहरी आघातों तथा दबाव से बचाता है |
➤ मस्तिष्क और मेनिंजिज के बिच सेरीब्रोस्पाइनल द्रव्य (cerebrospinal fluid) भरी होती है यह मस्तिष्क को नाम बनाए रखता है |
➤ इसका औसत आयतन लगभग 1650 mL तथा औसत भार करीब 1.5 kg होता है |
➤ मस्तिष्क को तिन प्रमुख भागों में बाँटा गया है —-
1.अग्रमस्तिष्क (forebrain)
2. मध्यमस्तिष्क (midbrain)
3. पश्चमस्तिष्क (hindbrain)
1.अग्रमस्तिष्क (forebrain) :- यह दो भागों में बंटा होता है –
(i) सेरीब्रम (cerebrum)
(ii) डाइएनसेफ्लोन (diencephalon)
(i) सेरीब्रम (cerebrum) :- यह मस्तिष्क के शीर्ष, पाशर्व तथा पश्च भागों को ढंके रहता है |
➤ यह मस्तिष्क का सबसे बड़ा भाग है |
➤ यह मस्तिष्क का अत्यंत महत्वपूर्ण भाग है | यह बुद्धि और चतुराई का केंद्र है |
➤ मानव में किसी बात को सोचने –समझने की शक्ति , स्मरण–शक्ति , किसी कायर को करने की प्रेरणा , घृणा , प्रेम, कष्ट, हर्ष, भय, के अनुभव जैसी क्रियाओं का नियंत्रण और समन्वय सेरीब्रम के द्वारा ही होता है|
(ii) डाइएनसेफ्लोन (diencephalon) :- यह कम या अधिक ताप के आभास तथा दर्द और रोने जैसी क्रियाओं का नियंत्रण करता है |
2. मध्यमस्तिष्क (midbrain) :- यह मस्तिष्क स्टेम का उपरी भाग है |
➤ इसमें संतुलन एवं आँख की पेशियों को नियंत्रित करने के केंद्र होते हैं
3. पश्चमस्तिष्क (hindbrain):- यह दो भागों में बंटा होता है –
(i) सेरिबेलम (cerebellum)
(ii) मस्तिष्क स्टेम (brain stem)
(i) सेरिबेलम (cerebellum) :- यह समन्वय , संतुलन, ऐच्छिक पेशिओं की गतियों इत्यादि का नियंत्रण करता है |
➤ यदि मस्तिष्क से सेरिबेलम को नष्ट कर दिया जाए तो ऐच्छिक गतियाँ असंभव हो जाएगी |
उदाहरण– हाथों का परिचलन ठीक से नहीं होगा, पैरों द्वरा चलना मुश्किल हो जायेगा , बातचीत करने में कठिनाई होगी |
(ii) मस्तिष्क स्टेम (brain stem):- इसके अंतर्गत (क) पोन्स वैरोलाई (pons varolii) , (ख) मेडुला ओब्लांगेटा (medulla
oblongata) आता है |
(क) पोन्स वैरोलाई :- यह श्वसन को नियंत्रित करता है |
(ख) मेडुला ओब्लांगेटा :- इसमें अनैच्छिक क्रियाओं के नियंत्रण केंद्र स्थित होते हैं |
➤ यह ह्रदय की धड़कन (heartbeat), रक्तचाप (blood pressure) और श्वसन–गति की दर (rate of respiration) का नियंत्रण करते हैं|
➤ मस्तिष्क के इसी भाग द्वारा खाँसना(coughing) , छींकना (sneezing), उल्टी करना (vomiting) , पाचक रस के स्त्राव इत्यादि का नियंत्रण होता है |
* मस्तिष्क के कार्य :- मस्तिष्क के प्रमुख कार्य निम्नलिखित है —
(i) आवेग–ग्रहण (To receive impulses) :- मस्तिष्क सभी संवेदी अंगों से आवेगों को ग्रहण करता है |
(ii) ग्रहण किये गए आवेगों की अनुक्रिया (Responding to the impulses received) :- विभिन्न संवेदी अंगों से जो आवेग मस्तिष्क में पहुँचते है, विश्लेषण के बाद मस्तिष्क उनकी अनुक्रिया के लिए उचित निर्देश निर्गत करता है |
(iii) विभिन्न आवेगों का सहंसबंधन (correlating various impulses) :- मस्तिष्क को भिन्न–भिन्न संवेदी अंगों से एक साथ कई तरह के आवेग प्राप्त होते हैं | मस्तिष्क इन आवेगों को सहंसबंधित कर विभिन्न शारीरिक कार्यों का कुशलतापूर्वक समन्वय करता है |
(iv) सुचना का भण्डारण (storage of information) :- मस्तिष्क में विभिन्न सूचनाएं चेतना या ज्ञान के रूप में संचित रहती है | इसीलिए, मानव मस्तिष्क को ज्ञान का भंडार भी कहा जाता है |
* प्रतिवर्ती चाप (Reflex Arc) :-
न्यूरॉन में आवेग का संचारण एक निश्चित पथ में होता है | इस पथ को प्रतिवर्ती चाप कहते हैं | इस चाप में निम्नलिखित घटक होते हैं जो आवेग के चालन में भाग लेते हैं —
(i) ग्राही अंग (Receptor) :- ये त्वचा, पेशियों तथा अन्य अंगों में मौजूद रहते हैं जो विभिन्न प्रकार के उद्दीपनों को ग्रहण करते हैं |
(ii) संवेदना मार्ग (Sensory path) :- ग्राही अंगों द्वारा उद्दीपनों के ग्रहण किये जाने के पश्चात इन उद्दीपनों का संचरण संवेदी न्यूरॉन में होता है | जो संवेदना मार्ग का निर्माण करते हैं |
(iii) तंत्रिका केंद्र (Nerve centers) :- संवेदना मार्ग से आए हुए संदेशों को प्राप्त कर यह उचित आदेश देने का कार्य करता है |
(iv) प्रेरक मार्ग (Motor path) :- तंत्रिका केंद्र द्वारा आदेशों का संचरण न्यूरॉनों (motor neurons) द्वारा होता है | प्रेरक न्यूरॉन प्रेरक मार्ग का निर्माण करते हैं |
(v) अभिवाही अंग (Effectors)
:- प्रेरक मार्ग से होते हुए आदेश अभिवाही अंगों में पहुँचते हैं जहाँ पर केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र से प्राप्त आदेशों के अनुसार औचित अनुक्रियिया होती है |
2. रासायनिक नियंत्रण एवं समन्वय (Chemical Control and Coordination):-
शारीरिक क्रियाओं के नियंत्रण और समन्वय में प्रयुक्त रसायन हॉर्मोन(hormones) कहलाते है|
➤ हॉर्मोन अंतः स्त्रावी ग्रंथियों (endocrine system) द्वारा स्त्रावित होते हैं | ये अंतः स्त्रावी तंत्र ( endocrine system) कहलाते हैं |
* हॉर्मोन (Hormons) :- ये विशिष्ट कार्बनिक यौगिक हैं|
➤ हार्मोन प्रेरक का कार्य करता है |
➤ तंत्रिकीय नियंत्रण एवं समन्वय की अपेक्षा हार्मोन–नियंत्रण एवं समन्वय का प्रभाव अपेक्षाकृत धीरे–धीरे होता है परन्तु इनके प्रभाव देर तक टिकता है |
➤ मनुष्य में बहुत सी क्रियाएं हॉर्मोन के द्वारा सम्पादित होती है |
* मनुष्य के अंतः स्त्रावी तंत्र :-
मनुष्य के शरीर में पाई जानेवाली अंतः स्त्रावी ग्रंथियां निम्नलिखित हैं–
1. पिट्यूटरी ग्रंथि (pituitary gland)
2. थाइरॉइड ग्रंथि (thyroid gland)
3. पाराथाइरॉइड ग्रंथि (parathyroid gland)
4. एड्रिनल ग्रंथि (adrenal gland)
5. लैंगरहैंस की द्विपिकाएँ (islets of Langerhans)
6. जनन ग्रंथि (gonads)
1. पिट्यूटरी ग्रंथि (pituitary gland) :- यह कपाल की स्फेनोइड हड्डी में एक गड्ढे में स्थित रहती है |
➤ इसे मास्टर ग्रंथि भी कहते हैं |
➤ पिट्यूटरी ग्रंथि दो मुख्य भागों अग्रपिंडक तथा पश्चपिंडक में बंटा होता है |
➤ अग्रपिंडक द्वारा वृद्धि हॉर्मोन का स्त्रावित होता है , जो शरीर की मांसपेशियों तथा हड्डियों के वृद्धि को नियंत्रित करता है |
➤ इस हॉर्मोन के अधिक मात्रा में स्त्रावित से मनुष्य की लम्बाई औसत से बहुत अधिक बढ़ जाती है | अद्दियाँ भारी तथा मोटी हो जाती है इस अवस्था को जाइगैंटिज्म (gigantism) कहते हैं|
➤ इस हॉर्मोन के कम स्त्राव से शरीर की वृद्धि रुक जाती है जिससे मनुष्य में बौनापन हो जाता है |
➤ अग्रपिंडक द्वारा स्त्रावित अन्य हार्मोन नर में शुक्राणु (sperm) तथा मादा में अंडाणु (ova) बनने की क्रिया को नियंत्रित करते हैं |
➤ एक अन्य हार्मोन मादा के स्तनों को दुग्ध –स्त्राव के लिए उत्तेजित करता है
➤ पश्चपिंडक द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन शरीर में जल–संतुलन को बनाए रखने में सहायक होता है |
➤ पश्चपिंडक से स्त्रावित एक अन्य हॉर्मोन मादा में बच्चे के जनन में सहायक होता है |
2. थाइरॉइड ग्रंथि (thyroid gland) :- यह ग्रंथि श्वास–नली में स्थित होती है|
➤इस ग्रंथि से थाइरॉक्सिन (thyroxin) नामक हॉर्मोन स्त्रावित होता है |
➤ थाइरॉक्सिन के संश्लेषण के लिए आयोडीन का होना अनिवार्य है |
➤ आयोडीन की कमी से थाइरॉइड ग्रंथि द्वारा बनने वाला हार्मोन थाइरॉक्सिन कम बनता है | इस हॉर्मोन के बनने की गति को बढाने के प्रयास में कभी–कभी थाइरॉइड ग्रंथि बढ़ जाती है , जिसे घेंघा (goitre) कहते है |
3. पाराथाइरॉइड ग्रंथि (parathyroid gland) :- इसके द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन रक्त में कैल्सियम की मात्रा का नियंत्रण करता है |
4. एड्रिनल ग्रंथि (adrenal gland) :- यह सुप्रारीनल ग्रंथि (suprarenal gland) भी कहलाता है |
➤ एड्रिनल के दो भाग होते हैं —
(A) कॉर्टेक्स (cortex) (B) मेडुला (medulla)
(A) कॉर्टेक्स द्वारा स्त्रावित हार्मोन एवं उनके कार्य :-
(i) ग्लुकोकोर्टिक्वायड्स (Glucocorticoids) :- भोजन उपापचय में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है |
➤ ये कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन एवं वासा उपापचय का नियंत्रण करते हैं |
➤ शरीर में जल के नियंत्रण में भी सहायक होते हैं |
(ii) मिनरलोकोर्टिक्वायड्स (Mineralocorticoids) :- इसका मुख्य कार्य वृक्क नलिकाओं द्वारा लवन के पुनः अवशोषण एवं शरीर में अन्य लवणों की मात्रा का नियंत्रण करना है | शरीर में जल– संतुलन को भी नियंत्रित करते है |
(iii) लिंग लिंग हॉर्मोन (Sex Hormones) :- ये हॉर्मोन पेशियों तथा हड्डियों के परिवर्द्धन , बाह्यलिंग, बालों के आने का प्रतिमान एवं यौन–आचरण का नियंत्रण करते है |
(B) मेडुला द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन एवं उनके कार्य :
(i) एपिनेफ्रीन (Epinephrine) :-अत्यधिक शारीरिक एवं मानसिक तनाव, दर, गुस्सा, एवं उत्तेजना की स्तिथि में इस हॉर्मोन का स्त्राव होता है |
(ii) नॉरएपिनेफ्रीन (Norepinephrine) :- ये समान रूप से ह्रदय–पेशियों की उत्तेजनशीलता एवं संकुचनशीलता को तेज करते हैं |
5. लैंगरहैंस की द्विपिकाएँ (islets of Langerhans) :- इससे इन्सुलिन नामक हॉर्मोन स्त्रावित होता है |
➤ यह रक्त में ग्लूकोस की मात्रा को नियंत्रित करते हैं |
➤ इसके स्त्राव के कमी से मधुमेह (diabetes) नामक रोग हो जाता है |
6. जनन ग्रंथि (gonads) :- जनन कोशिकाओं का निर्माण इसका मुख्य कार्य है |
(i) अंडाशय :- अंडाशय के द्वारा कई हॉर्मोन का स्त्राव होता है | बालिकाओं के शरीर में यौवनावस्था में होनेवाले परिवर्तन इन हॉर्मोन के कारण ही होता है |
(ii) वृषण :- वृषण द्वारा स्त्रावित हॉर्मोन को एन्ड्रोजेन्स (androgens) कहते हैं |
➤ यह हॉर्मोन पुरुष के शरीर में लैंगिक लक्षणों के परिवर्द्धन एवं यौन–आचरण को प्रेरित करता है |
The end.
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(Control and Coordination)
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