आनुवंशिकता तथा जैव विकास नोट्स कक्षा 10 | Chapter 7 Heredity and Evolution Notes Class 10 Biology In Hindi

            आनुवंशिकता तथा जैव विकास नोट्स कक्षा 10 

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कक्षा 10  आनुवांशिक तथा जैव विकास  नोट्स | Chapter -7  Heredity and Evolution Notes Class 10 Biology In Hindi

 

                                   परिचय                                

        अध्य्याय -7. आनुवंशिकता तथा जैव विकास

 

* विभिन्नताएं :-

 विभिन्नता जीव के ऐसे गुण हैं जो उसे अपने जनकों अथवा अपनी ही जाति के अन्य सदस्यों के उसी गुण के मूल स्वरूप से भिन्नता को दर्शाते हैं |

* विभिन्नताओं के प्रकार :- विभिन्नताएं दो प्रकार की होती है —

1 . जननिक (Germinal) 
2.  कायिक (Somatic)
1. जननिक विभिन्नता :- ऐसी विभिन्नताएं जनन कोशिकाओं में होनेवाले परिवर्तन के कारण होती है | 
➞ ऐसी विभिन्नताएं एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में वंशागत  होती है | 
➞ ऐसी विभिन्नताओं में से कुछ जन्म से प्रकट हो जाती है , जैसे – आँखों एवं बालों का रंग , शारीरिक गठन, शरीर की लम्बाई इत्यादि |
 
2.  कायिक (Somatic) :- ऐसी विभिन्नताएं कई कारणों से हो सकती है : जैसे – जलवायु एवं वातावरण का प्रभाव , उपलब्ध भोजन के प्रकार इत्यादि | 
➞ ऐसी विभिन्नताएं एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में वंशागत नहीं होती है |
➞ ऐसी विभिन्नताएं उपार्जित होती है |
 
* आनुवंशिकता :
जनकों से उनके संतानों में पीढ़ी-दर पीढ़ी युग्मकों के माध्यम से पैतृक गुणों का संचरण आनुवंशिकता कहलाता है |
➞ प्रत्येक जीव में बहुत से ऐसे गुण होते हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी माता-पिता अर्थात जनकों से उनके संतानों में संचारित होते रहते हैं ऐसे गुणों को आनुवंशिक गुण ( heredity characters) कहते हैं |
➞आनुवंशिकता एवं विभिन्नता का अधयन्न जीवविज्ञान की विशेष शाखा के अंतर्गत होता है, जो आनुवंशिकी (genetics) कहलाता है |
➞ किसी जीव की जिनी संरचना उस जीव का जीनप्ररूप (genotype) कहलाता है |
 
* मेंडल के आनुवंशिकता के नियम :-                     
ग्रेगर जॉन मेंडल (Gregor Johann Mendel , 1822- ) ने सबसे पहले आधुनिक आनुवंशिकी की नींव डाली | 
➞ ग्रेगर जॉन मेंडल (Gregor Johann Mendel) को आनुवंशिकी का पिता (father of genetics) कहा जाता है |
➞ मेंडल ने अपने प्रयोग में साधारण मटर के पौधों का चयन किया |
➞ अपने प्रयोग में मेंडल में विपरीत लक्षणवाले गुण जैसे लम्बे तथा बौने पौधे पर विचार किया |
➞ अपने प्रयोग में मेंडल ने एक बौने पौधे के सारे फूलों को खोलकर उनके पुंकेसर (stamens) हटा दिए ताकि स्व-परागण न हो सके | फिर उन्होंने एक लम्बे पौधे के फुल को खोलकर उनके परागकण (pollen grains) को निकलकर बौने पौधे के फूलों के वर्तिकाग्रों (stigma) पर गिरा दिया |
➞  विपरीत गुण वाले इन दोनों जनक पौधों को मेंडल ने जनक पीढ़ी (parental generation) कहा तथा इन्हें P अक्षर से इंगित किया |
➞  इस प्रकार के परागण (pollination) के बाद जो बीजबने उनसे उत्पन्न सारे पौधे लम्बे नस्ल के हुए | इस पीढ़ी को मेंडल ने प्रथम संतति (first filial generation) कहा तथा इन्हें F1 अक्षर से इंगित किया | 
➞ लम्बे गुण वाले प्रभावी  जनक (P) पौधे को मेंडल ने T तथा बौनापन जो अप्रभावी है को t अक्षर से इंगित किया |
➞  F1 पीढ़ी के सभी पौधे Tt गुणवाले हुए | इनमे T (लम्बापन), t (बौनेपन) पर प्रभावी था | इसलिए F1 पीढ़ी के सभी पौधे लम्बे हुए |
➞  चूँकि दोनों जनक पौधे (P) शुद्ध रूप से लम्बे तथा बौने थे इसलिए शुद्ध लम्बे पौधे को TT तथा पिप्रित शुद्ध बौने पौधों को tt द्वारा इंगित किया गया |
➞  F1 पीढ़ी के पौधों में दोनों गुण (T एवं t) मौजूद थे इसलिए इन्हें संकर नस्ल ( hybrid) कहा गया |
➞ F1 पीढ़ी के पौधों को जब आपस में प्रजनन कराया गया तब अगली पीढ़ी F2 (second filial generation) पौधों में लम्बे और बौने पौधों का अनुपात 3:1 पाया गया , अर्थात कुल पौधों में से 75% पौधे लम्बे तथा 25% पौधे बौने हुए | 
3:1 के अनुपात को लक्षणप्ररुपी अनुपात तथा 1:2:1 को जीनप्ररुपी कहा जाता है |
➞  F1 पीढ़ी का आपस  में प्रजनन एकसंकर संकरण (monohybrid cross) कहा जाता है |
➞  इस प्रयोग से मेंडल निष्कर्ष निकाला कि अप्रभावी गुण (बौनापन) में न तो कोई बदलाव आता है और न ही ऐसा गुण लुप्त होता है | संकर नस्ल की पीढ़ी में दोनों विपरीत गुण साथ -साथ होते हैं| परन्तु, अगली पीढ़ी में पृथक , अर्थात अलग अलग हो जाते है | यह निष्कर्ष मेंडल का प्रथम निया या पृथक्करण का नियम (Mendal’s first law or Law of segregation) कहलाता है ||
 
* मेंडल का स्वतंत्र विन्यास का निया (Mendal’s law of independent assortment) :- 
  मेंडल ने अपने प्रयोग में मटर के पौधों में दो जोड़े विपरीत गुणों के वंशागति का अध्ययन किया | मेंडल के इस प्रयोग को द्विगुण संकरण (dihybrid cross ) कहा जाता है |
➞  इस प्रयोग में उन्होंने मटर के ऐसे पौधों का चयन किया जिसमे एक प्रकार के पौधों का बीज गोलाकार तथा पीले रंग के थे तथा दुसरे प्रकार के पौधों का बीज झुर्रीदार तथा हरे रंग के थे  | इन दोनों पौधों के आपस में प्रजनन के पश्चात प्राप्त सभी F1 पीढ़ी के पौधों के बीज गोला कर तथा पीले रंग के हुए | 
➞  F1 पीढ़ी के पौधों को जब आपस में प्रजनन कराया गया तब उनमे चार प्रकार के बीज प्राप्त हुए जिनका लक्षण प्ररुपी अनुपात 9:3:3:1 पाए गए |

आनुवंशिकता तथा जैव विकास नोट्स कक्षा 10 

* लिंग निर्धारण :-
क्रोमोसोम के द्वारा ही जीवों में लिंग का निर्धारण होता है | 
➞  मनुष्य में 23 जोड़े क्रोमोसोम होते है | इनमे 22 जोड़े क्रोमोसोम एक ही प्रकार के होते हैं , जिसे ऑटोसोम (autosomes) कहते हैं |
➞  तेईसवाँ जोड़ा भिन्न प्रकार का होता है, जिसे लिंग-क्रोमोसोम (sex-chromosome) कहते है | ये दो प्रकार के होते हैं — X और Y 
➞  नर में X और Y दोनों लिंग-क्रोमोसोम मौजूद होते हैं, पर मादा में XX लिंग-क्रोमोसोम होते हैं | 
➞  लिंग- निर्धारण के सिद्धांत  को हेटेरोगैमेसिस का सिद्धांत (theory of heterogamesis) कहते हैं |
 
 
* जैव विकास (Organic evolution) :-
पृथ्वी पर वर्तमान जटिल प्राणियों का विकास प्रारंभ में पाए जाने वाले सरल प्राणियों में परिस्थिति और वातावरण के अनुसार होने वाले परिवर्तनो के कारन हुआ | सजीव जगत में होने वाले इस परिवर्तन को जैव विकास कहते हैं |
 
* उपार्जित लक्षण (Acquired Character) :-
वातावरण की सीधे प्रभाव से या अंगों के कम या स्धिक उपयोग के कारन जंतु के शरीर में जो परिवर्तन होते हैं , उन्हें उपार्जित लक्षण कहते है |
➞ जंतुओं के उपार्जित लक्षण वंशागत होते है हैं, अर्थात एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में प्रजनन के द्वारा चले जाते हैं | 
➞  लामार्क ने सबसे पहले 1809 में जैव विकास के अपने विचारों को अपनी पुस्तक फिलोसफिक जूलौजिक (Philosophic Zoologique) में प्रकाशित किया | इसे लामार्कवाद (Lamarckism) या उपार्जित लक्षणों का वंशागति सिद्धांत (theory of inheritance of acquired characters) कहते हैं |
 
* आनुवांशिक लक्षण  (Genetic Characters) :-
➞ ये लक्षण जीवों को वंशानुगत प्राप्त होते हैं |
➞ ये जनन कोशिकाओं में घटित होते हैं तथा अगली पीढ़ी में स्थानतरित होते है |
➞ जैव विकास में सहायक है |
उदाहरण: मनुष्य के आँख एवं बालों का रंग |
 
* जाति उद्भवन (Speciation) :-
 जाति उद्भवन किसी जीव जाति के सदस्यों के बिच अंतःप्रजनन (inbreeding) तथा स्वतंत्र जीन प्रवाह (gene flow)  को बाधित करने वाली दशाओं कारण होता है | इन दशाओं के आधार पर जाति उद्भवन के दो प्रमुख भेद दिए गए हैं –
     (1) विस्थानिक जाति उद्भवन  (2) समस्थानिक जाति उद्भवन  
 
(1) विस्थानिक जाति उद्भवन (Allopatric Speciation) :-
एक जाति के कुछ जनसंख्याओं का भौगोलिक प्रथक्करण हो जाता है |हजारों वर्ष के उपरांत ये दो जन्संख्याएँ विकास के क्रम में भिन्न हो जाती है जब ये दो जनसंख्याँ दोबारा संपर्क में आते हैं तब इनके बिच प्रजनन नहीं होता है, इस प्रकार प्रत्येक जनसंख्याँ एक नई जाति बन जाती है , इसे विस्थानिक जाति उद्भवन कहते हैं |
 
(2) समस्थानिक जाति उद्भवन  (Sympatric speciation) :- 
जब एक जाति की एक ही भौगोलिक क्षेत्र में रहने वाली दो जन्संख्याएँ जननिक रूप से पृथक हो जाती है , तब ये जन्संख्याएँ धीरे-धीरे एक दुसरेसे भिन्न होती चली जाती है और अलग जातियाँ बन जाती है इसे  समस्थानिक जाति उद्भवन कहते है |
 
* समजात अंग (Homologous organs) :-
ऐसे अंग जो संरचना एवं उत्पत्ति के दृष्टिकोण से तो एक सामान के होते हैं परन्तु वे भिन्न कार्यों का संपादन करते हैं | ऐसे अंग समजात अंग कहलाते हैं |
 
* असमजात अंग (Analogous Organs) :- 
ऐसे अंग जो संरचना एवं उत्पत्ति के दृष्टिकोण से एक दुसरे से भिन्न होते हैं , परन्तु वे एक ही प्रकार के कार्य करते हैं | ऐसे अंग असमजात अंग कहलाते हैं |
 
* जीवाश्म (fossil) :-
प्राचीनकाल में ऐसे कई जीव पृथ्वी पर उपस्थित जो बाद में समाप्त या विलुप्त हो गए | वर्तमान समय में वे नहीं पाए जाते हैं वैसे अनेक जीवों के अवशेष के चिन्ह पृथ्वी के चट्टानों पर पाए गए हैं | पत्थरों पर ऐसे जीवों के चिन्हों को जीवाश्म कहते हैं |
➞ जीवाश्मों का अध्ययन जीवाश्मविज्ञान (palaentology) कहलाता है |
➞ जीवाश्म कितना प्राचीन है इसका ज्ञात हम दो प्रकार से कर सकते हैं –
  (i) खुदाई के दौरान गहराई से जीवाश्म का आयु ज्ञात कर सकते हैं |
  (ii) रेडियोकार्बन काल – निर्धारण ( radiocarbon dating) के द्वारा |
 
*आण्विक जातिवृत (Molecular Phylogeny) :- 
DNA अनुक्रम के तुलनातमक अध्ययन द्वारा किसी जीव के पूर्वजों की खोज आणविक जातिवृत कहलाता है |
 
                                                                  The end. 
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