विद्युत् धारा के चुंबकीय प्रभाव नोट्स | Magnetic Effect of Electric Current Class 10 Notes In Hindi NCERT पैटर्न के अनुसार लिखा गया है साथ ही इसमें चित्र के द्वारा समझाया गया है जिससे छात्र को समझने में आसानी होगी | इस नोट्स में आपको चुम्बक तथा चुंबकीय क्षेत्र , क्षेत्र रेखाएँ , मेक्सवेल का दक्षिण हस्त का नियम तथा फ्लेमिंग का हस्त नियम , परिनालिका के विषय में बहुत अच्छी तरह से नोट्स बनाया गया है |
भौतिक विज्ञानं
कक्षा -10
अध्याय -4
विद्युत् धारा का चुंबकीय प्रभाव
वह पदार्थ जो लोहे की बनी वस्तुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है , चुंबक कहलाताहै |
➤ चुंबक के सिरे के निकट की वह बिंदु जहाँ चुंबकका आकर्षण बल
अधिकतम होता है , ध्रुव (Pole) कहलता है |
➤स्वतंत्रतापूर्वक लटके हुए चुंबक का एक ध्रुव उत्तर दिशा की ओर तथा दूसरा ध्रुव
दक्षिण दिशा की ओर हो जाता है |
➤ चुंबक का वह ध्रुव जो उत्तर दिशा की ओर हो जाता है , उत्तर ध्रुव (North Pole) तथा जो ध्रुव
दक्षिण की ओर हो जाता है , दक्षिण
ध्रुव (South Pole) कहलाता है |
➤दोनों ध्रुवों को मिलनेवाली रेखा को चुंबकीय अक्ष (Magnetic Axis) कहा जाता है |
➤समजातीय चुंबकीय ध्रुव एक – दुसरे को प्रतिकर्षित (Repel) करते हैं और विजातीय चुंबकीय ध्रुव एक – दुसरे को आकर्षित (Attract) करते हैं |
✸चुंबकीय पदार्थ ( Magnetic Substances ) :
वैसे पदार्थ जिन्हें चुबंक आकर्षित करता है चुंबकीय पदार्थ कहलाते है | जैसे – लोहा, कोबाल्ट, निकेल तथा उनके कुछ मिश्रधातु |
✸अचुंबकीय पदार्थ ( Non – magnetic Substances ) :
वैसे पदार्थ जिन्हें चुंबक आकर्षित नहीं करता, अचुंबकीय पदार्थ कहलाते है | जैसे – काँच कागज, पीतलआदि |
✸ चुंबकीय क्षेत्र (Magnetic field) :
ऐसा क्षेत्र जिसमे किसी बिंदु पर राखी गयी चुंबकीय सुई एक निश्चित दिशा में ठहरती है इस क्षेत्र को चुंबकीय क्षेत्र कहते हैं |
➤ चुंबकीय क्षेत्र को चुंबकीय क्षेत्र रेखाओं द्वारा दर्शाया जाता है |
✦ चुंबकीय क्षेत्र–रेखाओं के गुण –
1. किसी चुंबक के चुंबकीय क्षेत्र में क्षेत्र-रेखाएँ एक संगत बंद वक्र होती है जो उत्तरी ध्रुव से दक्षिणी ध्रुव में प्रवेश कराती है और पुन: चुंबक के भीतर होती हुई उत्तरी ध्रुव पर वापस आ जाती है |
2. ध्रुवों के समीप क्षेत्र-रेखाएँ घनी होती है परंतु ज्यो-जयो उनकी दूरी ध्रुवों से बढ़ती है, उनका
घनत्व घटता जाता है |
3. क्षेत्र-रेखा के किसी बिंदु पर खीची गई स्पर्श रेखा उस बिंदु पर उस क्षेत्र की दिशा बताती है |
4. क्षेत्र-रेखाओं की निकटता बढ़ने से चुंबकीय क्षेत्र की प्रबलता बढ़ती है |
5. चुंबकीय क्षेत्र-रेखाएँ एक दूसरे को नहीं काटती है |
✸ विद्युत् – धरा चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न करती है –
1820 ओर्स्टेड ने अपने प्रयोग से पता लगाया कि जब किसी चालक से विधुत–धारा प्रभावित की जाती है तब चालक के चारों ओर चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होता है |
✸मैक्सवेल का दक्षिण – हस्त नियम (Maxwell’s right-hand rule )
यदि धारावाही तार को दाएँ हाथ की मुट्ठी में इस प्रकार पकड़ा जाए कि अंगूठा धारा की दिशा की और संकेत करता हो , तो हाथ की अन्य अँगुलियाँ चुंबकीय क्षेत्र की दिशा व्यक्त करेगी |
✸धारावाही वृताकार तार के कारण चुंबकीय क्षेत्र – रेखाएँ :
ताँबे का एक मोटा तार लेकर उसे वृताकार रूप में मोड़ कर धारा प्रवाहित करने पर चुंबकीय क्षेत्र रेखाएँ कुछ इस प्रकार दिखेगी |
✸ परिनालिका (Solenoid ) :
जब एक लंबे विधुतरोधित चालक तार को सर्पिल रूप में एक प्रकार लपेटा जाए कि तार के फेरे एक दूसरें से अलग, परंतु अगल–बगल हो, तो इस प्रकार की व्यवस्था को परिनालिका कहते है |
➤ परिनालिका जिस पदार्थ पर लिपटी होती है , उसे क्रोड कहा जाता है |
✸ विद्युत् चुम्बक (Electronic Magnet)
विधुत–चुंबक वैसा चुंबक है जिसमें चुंबकत्व उतने ही समय तक विद्यमान रहता है जितने समय तक परिनालिका में विधुत–धारा प्रवाहित होती रहती है | विधुत–चुंबक बनाने के लिए एक नरम लोहे के छड को परिनालिका में रखा जाता है |
✦चुम्बकत्व की तीव्रता निम्न बातों पर निर्भर करती है –
1. परिनालिका में फेरों की संख्या – यदि तार के फेरों की संख्या अधिक होगी तो चुम्बकत्व अधिक होगा |
2. विद्युद – धारा का परिणाम – पवाहित होने वाली विद्युत् – धारा का परिणाम जितना अधिक होगा , चुंबकीय क्षेत्र उतना ही प्रबल होगा |
3. क्रोड के पदार्थ की प्रकृति – परिनालिका में नरम लोहे के क्रोड का व्यवहार करने पर चुम्बकत्व अधिक होता है |
✸ धारावाही चालक पर चुंबकीय क्षेत्र का प्रभाव –
1.जब एक धारावाही चालक को चुंबकीय क्षेत्र में रखा जाता है तो उसपर एक बल लगता है |
2. बल की दिशा, चुंबकीय क्षेत्र की दिशा तथा विधुत-धारा की दिशा, दोनों पर निर्भर करती है |
✸ फ्लेमिंग का वाम-हस्त नियम ( Fleming’s left-hand rule ) :
यदि हम अपने बाएँ हाथ की तीन अँगुलियों मध्यमा, तर्जनी तथा अंगूठे को परस्पर लंबवत फैलाएँ और यदि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा तथा मध्यम धारा को दिशा की दर्शाते है तब अँगूठा धारावाही चालक पर लगे बल की दिशा को व्यक्त करता है |
✸ विधुत मोटर (Electric motor ) :
विधुत मोटर में एक शक्तिशाली चुंबक होता है जिसके अवतल ध्रुव खण्डों के बीच ताँबो के तार की कुंडली होता है जिसे आर्मेचर कहते है | आर्मेचर के दोनों छोर पीतल के खंडित वलयो R1 तथा R2 से
जुड़े होते है जिनपे दो कार्बन के ब्रशों B1 तथा B2 स्पर्श करते है |
जब आर्मेचर से धारा प्रवाहित की जाती है तब चुंबक के चुंबकीय क्षेत्र के कारण कुंडली के भुजाओं पर समान मान के किंतु विपरीत दिशाओं में बल लगते है | जिसके कारण आर्मेचर घूर्णन करने लगता है |
➤विधुत मोटर एक ऐसा यंत्र है जिसके द्वारा विधुत ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है |
✸ विद्युत – चुंबकीय प्रेरण (Electromagnetic Induction) :
जब कभी कुंडली और किसी चुम्बक के बिच आपेक्षिक गति होती है तब कुंडली में विद्युत् – धारा प्रेरित होती है | इस प्रभाव को विद्युत् – चुंबकीय प्रेरण कहते हैं |
✸ फ्लेमिंग का दक्षिण हस्त का नियम (Fleming’s right-hand rule ) :
यदि दाहिने हाथ के अँगूठा, तर्जनी और मध्यमा परस्पर समकोणिय इस प्रकार रखे गए हो कि तर्जनी चुंबकीय क्षेत्र की दिशा को संकेत करती हो और आँगूठा गति की दिशा में हो तो मध्यमा प्रेरित धारा की दिशा का संकेत करेगी |
✸ विधुत जनित्र (Electric Generator)
विद्युत् जनित्र एक ऐसा यंत्र है जिसके द्वारा यांत्रिक उर्जा को विद्युत् उर्जा में परिवर्तित किया जाता है |
➤कुंडली के तार के दोनों छोर ताँबा के विभक्त वलय C1 तथा C2 लगे रहते है | जिसे कार्बन ब्रश B1 तथा B2 स्पर्श करते है |
कुंडली के घूर्णन और
विभक्त वलय द्वारा प्रेरित धारा की दिशा में परिवर्तन के कारण प्रतिरोधक R में लगातार एक ही दिशा में विधुत-धारा प्रवाहित होती है इस धारा को दिष्ट-धारा ( Direct Current ) कहते है और उस जनित्र को डायानेमों या दिष्ट धारा जनित्र कहते है |
➤ यदि वुभाक्त वलयों के स्थान पर सर्पी वलय का उपयोग किया जाए तो
प्रत्येक अर्धाधूर्णन के बाद धारा की दिशा बदला जाती है इस प्रकार की धारा की प्रत्यावर्ती धारा ( Alternative Current ) कहते हैं और जनित्र का प्रत्यावर्ती धारा जनित्र करते है |
✸ घरों में व्यवहार की जानेवाली बिजली :
हमारे घरों में जो विद्युत् आपूर्ति की जाती है वह 220V पर प्रत्यावर्ती वोल्टता होती है जिसकी ध्रुवता प्रत्येक सेकंड में 100 बार परिवर्तित होती है अर्थात इसकी आवृति (Frequency) 50 Hz होती है | इसे मेनलाइन पॉवर कहा जाता है | और जिन तारों द्वरा यह आपूर्ति होती है उन्हें मेंस (mains) कहते हैं |
➤ मेन्स दो प्रकार के होते हैं –
(i) एक से 5 एम्पियर की धारा प्रवाहित होती है | (घरेलु लाइन)
(ii) दुसरे से 15 एम्पियर की धारा प्रवाहित होती है | (पॉवर लाइन )
✸ घरेलू वायरिंग की संरचना :
पावरहाउस से ट्रांसफार्मर की सहायता से विधुत को विधुत पोलों पर ताँबे के दो मोटे तारों द्वारा घरों तक पहुँचाया जाता है |
➤इसमें एक विधुन्मय तार होता है जो लाल रंग के विधुतरोधी पदार्थ से ढँका होता है तथा दूसरा उदासीन तार होता है जो वाले रंग के विधुरोधी पदार्थ के ढँका होता है |
➤घरों में एक तीसरा तार भी होता है जिसे भू-तार(Earth wire) कहते है जो हरें रंग के विधुतरोधी पदार्थ से ढँका होता है |
➤ घरों में प्रायः दो अलग – अलग परिपथ बनाये जाते हैं |
(i) 5 A के उपकरणों के लिए ( बल्ब , ट्यूब , पंखे आदि )
(ii) 15 A के उपकरणों के लिए (हीटर , रेफ्रिजरेटर आदि )
✸ अतिभारण ( Overloading ) –विधुत परिपथ में इस्तेमाल होनेवाले तारों का चयन उनमें प्रवाहित होनेवाली धारा के परिमाण के महतम मान पर निर्भर करता है यदि उपकरणों की कुल शक्ति
इस स्वीकृत सीमा से बढ़ जाती है | इसे अतिभारण कहा जाता है
|
✸ लघुपथन ( Short – circuiting ) – कभी-कभी
तारों के विधुतरोधी परत के खराब या क्षतिग्रस्त हो जाने से वे आपस में संपर्क में
आ जाते है | ऐसा होने पर परिपथ का प्रतिरोध लगभग शून्य हो जाता है और परिपथ में बहुत अधिक धारा प्रवाहित होने लगाती है इसे लघुपथन कहते है |
✸ फ्यूज ( Fuse ) – फ्यूज ऐसे तार का एक
टुकड़ा है जिसके पदार्थ की प्रतिरोधकता बहुत अधिक होती है और उसका गलनांक बहुत कम
होता है विधुत फ्यूज, विधुत परिपथ के बचाव के लिए सबसे आवश्यक सुरक्षा युक्ति है जब परिपथ में अतिभारण या लघुपथन के कारण या मेन्स में वोल्टता की सीमा बढ़ जाने पर धारा का प्रवाह तेजी से होने लगता है | धारा से उत्पन्न ऊष्मा के कारण फ्यूज का तार पिघल जाता है | जिससे परिपथ भंग हो जाता है |
➤ फ्यूज सदेव विद्युन्मय तार (Live wire) के साथ श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है |
✸ विधुत के उपयोग से संबंद्ध सावधानियाँ –
- स्विचों प्लगों सँकटों तथा
जोड़ा पर सभी संबंधन अच्छी तरह से होने चाहिए | - स्विच, प्लगों
सँकटों तार आदि अच्छे किस्म के होने चाहिए | - परिपथ में लगे फ्यूज
उपयुक्त क्षमता तथा पदार्थ के बने होने चाहिए | - अधिक शक्ति के उपकरणों ,
जैसे – हीटर , रेफ्रिजरेटर , इस्त्री आदि को भू-तार से अवश्य सम्पर्कित करना
चाहिए | - परिपथ में आग लगने या अन्य
किसी दुर्घटना से बचने के लिए MCV लगवाना चाहिए | - यदि कोई व्यक्ति विधुन्मय
तार के सीधे संपर्क में आ जाता है ओत उसे किसी विधुतरोधी पदार्थ के सहायता से
छुड़ाना चाहिए | - विधुत-परिपथ में कोई
मरम्मत करते समय दस्ताने और जूता पहनना चाहिए |