विद्युत् धारा नोट्स कक्षा 10

विद्युत् धारा नोट्स कक्षा 10 | Class 10 Physics Electric Current | Physics Class 10 Notes In Hindi | Vidyut Dhara Notes Class 10

 विद्युत् धारा  नोट्स  कक्षा 10 | Class 10 Physics Electric Current  | Physics Class 10 Notes In Hindi | Vidyut Dhara Notes Class 10, यह भौतिक विज्ञान नोट्स कक्षा 10 के विद्यार्थियों के लिए बनाये गएँ हैं इस लेख में हाई स्कूल भौतिक विज्ञानं के अध्याय – 3 विद्युत् धारा  का सरल भाषा में नोट्स लिखा गया है |

विद्युत् धारा नोट्स कक्षा 10  Notes In Hindi. इस अध्याय में हम विद्युत् धारा  का अध्ययन विद्युत् धारा के उष्मीय प्रभाव तथा ओम का नियम एमिटर , वोल्टमीटर , वियुत ऊर्जा तथा विद्युत् शक्ति  के बारे में पढ़ेंगे । हम कुछ प्रकाशीय परिघटनाओं जैसे- इंद्रधनुष बनना आकाश का रंग लाल या नीला होना इत्यादि के कारणों आदि के बारे में पड़ेंगे । Vidyut Dhara Class 10 In Hindi Notes

✽ भौतिक विज्ञान (Physics)  

Class – 10

Chapter -3

विद्युत् – धारा
(Electric Current)

विद्युत् धारा (Electric Current) :

विधुत धारा से हमारा तात्पर्य होता है तारों से होकर आवेश का प्रवाह |

बोलचाल की भाषा में इसे बिजली (Electricity) भी कहा जाता है |

हम जानते है कि पदार्थ के परमाणु तीन मौलिक कण ॠण आवेशयुक्त इलेक्ट्रॉन (electron) , धन आवेशशुक्त प्रोट्रॉन (proton)तथा अनावेशित न्यूट्रॉन (neutron) के बने होते है

प्रोट्रॉन तथा न्यूट्रॉन नाभिक में रहते है और इलेक्ट्रॉन कक्षाओं में घुमते रहते है |

परमाणु विधुतत: उदासीन होता है |

इलेक्ट्रॉनों को छोकर कोई पदार्थ धनावेशित हो जाता है और इलेक्ट्रॉनों को पाकर ॠणावेशित |

आवेश संरक्षित रहता है , उसे न तो उत्पन्न किया जा सकता है और न ही नष्ट

चालक (Conductor):

ऐसे पदार्थ जिससे होकर विधुत आवेश उनके एक भाग से दूसरे भाग तक जाता है, चालक कहलाते है | जैसे लोहा, चाँदी, मनुष्य, अशुद्ध जल, पृथ्वी |
 

विद्युतरोधी (Insulator) :

ऐसे पदार्थ जिनसे होकर विधुत आवेश एक भाग से दूसरे भाग तक नहीं जा सकते विधुतारोधी कहलाता है | जैसे मोम, चमड़ा, रबड़, शुद्ध जल

आवेश (Charge) :

जब कोई भी पदार्थ अपने सामान्य व्यवहार से अलग व्यवहार प्रदर्शित करने लग जाता है। अर्थात उसके कारण विद्युत क्षेत्र तथा चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न होने लगता है। पदार्थ के इस गुण को विद्युत आवेश कहते हैं। 

आवेश का SI मात्रक :- आवेश का SI मात्रक कूलॉम है। 

CGS मात्रक = स्टेट कूलॉम या फ्रेंकलाइन  [1 कूलॉम = 3 x 10⁹ स्टेट कूलॉम]

1 कूलॉम आवेश = 3 x 10⁹ esu आवेश = 1/10 emu आवेश = 1/10 ऐब कूलॉम

आवेश के प्रकार :-  आवेश मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं। 

1.धन आवेश धन आवेश को (+) चिन्ह द्वारा प्रदर्शित करते हैं

2.ऋण आवेश – ऋण आवेश को (-) चिन्ह द्वारा प्रदर्शित करते हैं

जब कोई दो वस्तुओं को आपस में रगड़ते हैं तो एक में ऋण आवेश तथा दूसरी में धन आवेश उत्पन्न होता है अर्थात दोनों वस्तुओं पर उत्पन्न आवेशों की प्रकृति एक दूसरे के विपरीत होती है।

उदाहरण- यदि काँच को रेशम के साथ रगड़ा जाय तो काँच में धन आवेश उत्पन्न होता है, लेकिन यदि काँच को रोआँ से रगडा जाय तो काँच में ऋण आवेश उत्पन्न होगा। 

विद्युत् विभव (Electric Potential) :

किसी एकांक धन आवेश को अनंत से विद्युत क्षेत्र में स्थित किसी बिंदु तक विद्युत बल के विरुद्ध किया गया कार्य ही उस बिंदु पर विद्युत विभव कहलाता है। 

इसे V से दर्शाते है।

विद्युत विभव एक अदिश राशि है।

इसका SI मात्रक = V (वोल्ट होता है )

vidyut 20vibhav
 
 
विभवांतर (Potential difference) 
किन्ही दों बिंदुओं के बीच विभवांतर की माप उस कार्य से होती है जो प्रति एकांक आवेश की एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में किया जाता है |
vibhwantar
 
➤ विभवान्तर का SI मात्रक वोल्ट होता है |
 
सेल (Cell) :

सेल एक ऐसा उपकरण होता है, जो रासायनिक ऊर्जा को विद्युत् उर्जा में रूपांतरित कर देता है| 

किसी एक बैटरी में आमतौर पर बहुत सारे सेल का समूह मौजूद होता है। प्रयुक्त इलेक्ट्रोलाइट्स के प्रकार के आधार पर, एक सेल या तो आरक्षित, गीला या सूखा दोनों प्रकार का भी होता है।

एक सेल में एक एनोड और दूसरा कैथोड होता है जो इसमें पॉजिटिव और नेगेटिव पॉइंट को दर्शाता है, जिसे इलेक्ट्रोलाइट द्वारा अलग किया जाता है इसका महत्वपूर्ण उपयोग वोल्टेज और करंट उत्पन्न करने में किया जाता है।

सेल मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं।

1.प्राथमिक सेल (primary)

2.द्वितीयक सेल  (Secondary cells)

1.प्राथमिक सेल :

वे सेल जिन्हें पुनः आवेशित नहीं किया जा सकता है। प्राथमिक सेल कहलाते हैं। यह रासायनिक ऊर्जा से विद्युत ऊर्जा प्राप्त करने का एक साधन है। इनके विसर्जित होने पर विद्युत अपघट्य (electrolyte)और इलेक्ट्रॉन (Electron) दोनों का व्यय (spent ) होता है।

2.द्वितीयक सेल :

द्वितीयक सेल वे सैल जिन्हें पुनः आवेशित (Charged) किया जा सकता है। द्वितीयक सेल कहलाते हैं। इन को काम में लेने से पहले आवेशित (Charged) करते हैं।

बैटरी(Battery) :

बैटरी एक ऐसा डिवाइस है जो रासायनिक ऊर्जा को अपने अंदर संग्रहीत करता है और इस ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपांतरित कर देता है। और एक बैटरी में बहुत सारे छोटेछोटे सेल मौजूद होते है। जिसमे रासायनिक प्रतिक्रियाओं के कारण ऊर्जा उत्पन्न होती है। इलेक्ट्रॉनों का प्रवाह एक विद्युत प्रवाह प्रदान करता है जिसका उपयोग कार्य करने के लिए किया जा सकता है

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चित्र : सेल 

 

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चित्र : बैटरी

 

 विद्युत् – परिपथ (Electric Circuit)

 जिस पथ से होकर विधुतधारा का प्रवाह होता है, उसे विधुतपरिपथ कहते है |

विधुतपरिपथ के विभिन्न अवयवों की व्यवस्था को उनके प्रतीकों द्वारा दर्शाने वाले आरेख को परिपथ आरेख कहते है

विद्युत् परिपथ के विभिन्न अवयवों के लिए उपयोग में आनेवाले प्रातिक :

विद्युत् धारा नोट्स कक्षा 10

E0 A4 B5 E0 A4 BF E0 A4 A6 E0 A5 8D E0 A4 AF E0 A5 81 E0 A4 A4 E0 A5 8D 20 E0 A4 AA E0 A4 B0 E0 A4 BF E0 A4 AA E0 A4 A5
 

 

 

विधुत-धारा की प्रबलता :

किसी चालक के किसी अनुप्रस्थ-काट को पार करनेवाली विधुत-धारा की प्रबलता उस अनुप्रस्थ-काट से होकर प्रति एकांक समय में प्रवाहित आवेश का परिणाम है |
E0 A4 B5 E0 A4 BF E0 A4 A6 E0 A5 8D E0 A4 AF E0 A5 81 E0 A4 A4 E0 A5 8D 20 E0 A4 AA E0 A5 8D E0 A4 B0 E0 A4 AC E0 A4 B2 E0 A4 A4 E0 A4 BE
 

 

 

 

 

किसी चालक के अनुप्रस्थ – काट से यदि एक सेकेण्ड (s) में एक कूलॉम (C) आवेश प्रवाहित होता है , तो उस काट से पार करनेवाली विद्युत् – धारा की प्रबलता एक एम्पियर (A) कही जाएगी | अर्थात :

E0 A4 B5 E0 A4 BF E0 A4 A6 E0 A5 8D E0 A4 AF E0 A5 81 E0 A4 A4 E0 A5 8D 20 E0 A4 AA E0 A5 8D E0 A4 B0 E0 A4 AC E0 A4 B2 E0 A4 A4 E0 A4 BE 202
 

 

ऐमीटर ( Ammeter ) :-
जिस यंत्र द्वारा किसी विधुत-परिपथ की धारा मापी जाती है, उसे ऐमीटर कहा जाता है यह किसी विधुत-परिपथ में श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है 
वोल्टमीटर ( Voltmeter ): –
जिस यंत्र द्वारा किसी विधुत परिपथ के किन्ही दो बिन्दुओं के बीच के विभवांतर को मापा जाता है, उसे वोल्टमीटर कहा जाता है | यह किसी विधुत-परिपथ में समांतर क्रम जोड़ा जाता है

 

एमीटर तथा वोल्टमीटर की तुलना :

एमीटर

वोल्टमीटर

1. यह किसी विद्युत् – परिपथ में धारा की प्रबलता को मापता है |

2. यह किसी विद्युत् – परिपथ में श्रेणीक्रम में जोड़ा जाता है |

3. इसका स्केल एम्पियर (A) में अंकित रहता है |

1. यह किसी विद्युत् – परिपथ में किन्हीं दो बिन्दुओं के बिच विभवांतर को मापता है |

2. यह किसी विद्युत् – परिपथ में समांतरक्रम में जोड़ा जाता है |

3. इसका स्केल वोल्ट (V) में अंकित रहता है |

 

 

ओम का नियम ( Ohm’ s Law ) :-

1826 में जर्मन वैज्ञानिक जॉर्ज साइमन ओम (George Simon Ohm) ने किसी चालक के सिरों पर लगाए विभवांतर तथा उनमें प्रवाहित विधुत-धारा का संबंध को एक नियम से व्यक्ति किया जाता है, जिसे ओम का नियम कहते है

यदि किसी चालक के ताप में परिवर्तन न हो, तो उसमें प्रवाहित विधुत-धारा उसके सिरों के बीच आरोपित विभवांतर के समानुपाती होती है

      I α V

 

OHM
 
 


 
 

Vidyut Dhara Class 10 In Hindi Notes

प्रतिरोध ( Resistance ) :-

किसी पदार्थ का वह गुण जो उससे होकर धारा के प्रवाह का विरोध करता है, उस पदार्थ का विधुत प्रतिरोध या केवल प्रतिरोध कहलाता है

  

OHM 1
 

 

 

 

 

 विद्युत् धारा  नोट्स  कक्षा 10

प्रतिरोध का SI मात्रक ओम ( Ohm, Ω ) होता है |

चालक (Conductor) 

बहुत कम प्रतिरोध वाले पदार्थो को जिनमें से आवेश आसानी से प्रवाहित होता है चालक कहलाता है | जैसे चाँदी, लोहा, ताँबा

प्रतिरोधक (Resistor) –

उच्च प्रतिरोध वाले पदार्थ प्रतिरोधक कहलाते है

विधुतरोधी (Insulator) 

बहुत ही अधिक प्रतिरोध वाले पदार्थों को जिनसे आवेश प्रवाहित नहीं हो पाता विधुतरोधी कहते है |

 जैसे रबर , लकड़ी, प्लैस्टिक एबोनइट आदि

प्रतिरोधकों का समूहन :

दो या दो अधिक प्रतिरोधकों को एक दूसरों से कई विधियों द्वारा जोड़ा जा सकता है इनमें दो विधियाँ मुख्य है

1. श्रेणीक्रम (Series Grouping)

2. समांतरक्रम (Parallel Grouping)

प्रतिरोधकों के श्रेणीक्रम तथा समांतरक्रम समूहन की तुलना :

श्रेणीक्रम समूहन

समांतरक्रम समूहन

1. सभी प्रतिरोधकों में एक ही धरा प्रवाहित होती है , परन्तु उनके सिरों के बीच विभवांतर उनके प्रतिरोधों के अनुसार अलग – अलग होता है |

2. प्रतिरोधकों का समतुल्य प्रतिरोध सभी प्रतिरोधकों के अलग – अलग प्रतिरोधों के योग के बराबर होता है |

3. समतुल्य प्रतिरोध का मान प्रत्येक प्रतिरोधक के प्रतिरोध के मान से अधिक होता है |

4. किसी एक प्रतिरोध को परिपथ से हटा दिए जाने पर बचे हुए प्रतिरोधकों से प्रवाहित होनेवाली धारा शून्य हो जाएगी |

 

1. सभी प्रतिरोधकों के सिरों के बीच एक ही विभवांतर होता है , परन्तु उनके प्रतिरोधों के मान के अनुसार उनमे भिन्न – भिन्न धरा प्रवाहित होती है |

2. प्रतिरोधकों के समतुल्य प्रतिरोध का व्युत्क्रम सभी प्रतिरोधकों के अलग –अलग प्रतिरोधों के योग के बराबर होता है |

3. समतुल्य प्रतिरोध का मान प्रत्येक प्रतिरोधक के प्रतिरोध के मान से कम होता है |

4. किसी एक प्रतिरोध को परिपथ से हटा दिए जाने पर बचे हुए अन्य  प्रतिरोधकों से धारा प्रवाहित होती रहेगी |

 

विधुत-धारा का ऊष्मीय प्रभाव (Heating effect of electric current) :-

जब किसी चालक से विधुत-धारा प्रवाहित की जाती है | तब वह चालक गर्म हो जाता है अर्थात विधुत ऊर्जा का ऊष्मा में रूपांतरण होता है इसे ही विधुत-धारा का ऊष्मीय प्रभाव कहा जाता है

विधुत धारा से उत्त्पन्न ऊष्मा का परिमाप किसी चालक में प्रवाहित विधुत-धारा द्वारा चालक के प्रतिरोध के विरुद्ध किए गए कुल कार्य के बराबर होता है |

विधुत-शक्ति (Electric Power) :-

किसी विधुत-परिपथ में विधुत ऊर्जा के व्यय की दर को उस परिपथ की विधुत शक्ति कहते है |

विद्युत् शक्ति का SI मात्रक वाट (watt) है , जिसे W से सूचित किया जाता है | (1W = 1VA.)

 

E0 A4 B5 E0 A4 BF E0 A4 A6 E0 A5 8D E0 A4 AF E0 A5 81 E0 A4 A4 E0 A5 8D 20 E0 A4 B6 E0 A4 95 E0 A5 8D E0 A4 A4 E0 A4 BF
 

 

 

Class 10 Physics Electric Current 

 
विधुत ऊर्जा ( Electric Power ) :-

 

यदि किसी बिजली के बल्ब पर 220 v , 60 W लिखा हो, तो इसका अर्थ होता है कि यदि किसी मकान के विधुत-परिपथ में इस लगा दिया जाए तो यह 220 V के विभवांतर पर 60 W शक्ति का उपयोग करेगा

विधुत ऊर्जा के घरेलू तथा व्यवसायिक उपयोग के पठन के लिए एक दुसरे मात्रक का उपयोग होता है जिसे किलोवाट घंटा ( kWh ) कहते है

एक यूनिट = 1  kWh = 1 kW x 1h 

विद्युत् – धारा के उष्मीय प्रभाव के उपयोग :

विद्युत् – धारा के उष्मीय प्रभाव का हमारे दैनिक जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान है | घरेलु उपकरणों , जैसे –बिजली का चूल्हा (Heater) , विद्युत् इस्तरी (आयरन) , रम हीटर , टोस्टर ,सोल्डरिंग रॉड इत्यादि में विद्युत् – धारा के उष्मीय प्रभाव का ही उपयोग होता है |

उपकरणों के जिस भाग में विद्युत् – धारा प्रवाहित करने पर ऊष्मा उत्पन्न होती है , उसे तपन अवयव (Heating Element) कहा जाता है |

तपन अवयव ऐसे  पदार्थों से बने होनी चाहिए जिनकी –

1. प्रतिरोधकता (resistivity) बहुत अधिक हो ,ताकि इसके साधरण लम्बाई एवं मोटाई वाले तार का प्रतोध अधिक हो और उनमे कम धारा प्रवाहित होने पर भी अधिक ऊष्मा उत्पन्न हो सके |

2. गलनांक अत्यधिक उच्च हो , ताकि इनमे प्रबल धारा (Heavy Current) प्रवाहित होने पर अत्यधिक ऊष्मा से तपन अवयव पिघले नहीं |

अधिकांश तापन अवयवों में निकेल ( 60 % ) , क्रोमियम ( 12 % ) , मैंगनीज ( 2 % ) तथा लोहा ( 26 % ) के मिश्रधातु जिसे नाइक्रोम (Nichrome) कहते है इसकी प्रतिरोधकता बहुत अधिक होती है और साथ ही गलनांक भी अत्यधिक उच्च होता है |

विधुत तापक (Electric heater) :-

 विधुत तापकों में नाइक्रोम के तार की कुंडली विधुतरोधी पदार्थ के आधार पर फैली रहती है इस कुंडली में जब प्रबल धारा प्रवाहित होती है | तब यह गर्म होकर ऊष्मा उत्पन्न करती है

विधुत बल (Electric Bulb) :-

 विधुत बल्ब में टंग्स्टन  के पहले तार की एक छोटी ऐंठी हुई कुंडली होती है जिसे तंतु या फिलामेंटकहते है | यह तंतु मोटे आधारी तारों द्वारा धातु के दो स्पर्श्क बटनों या स्टडों से जुड़ा होता है | तंतु एक काँच के बल्ब में बंद रहता है | बल्ब के अंदर निम्न दाब पर निष्क्रिय गैसों का मिश्रण प्राय: भरा रहता है

सुरक्षा फ्यूज (Electric Fuse) :-

 बिजली के उपस्करों तथा मकानों में बिजली की धारा ले जाने के लिए जो परिपथ बनाया जाता है | उसमें काँच की नली या चीनी मिट्टी या एक तरह के प्लैस्टिक से ढँके उपकरण होते है जिन्हें फ्यूज कहा जाता है

इसमें जस्ता और टिन की मिश्रधातु का तार लगा होता है |

इसकी प्रतिरोधकता अधिक और गलनांक कम होता है | अतः जब परिपथ में अचानक धारा की प्रबलता आवश्यकता से अधिक बढ़ जारी है तब धारा से उत्पन्न अत्यधिक ऊष्मा फ्यूज के तार को पिघला देती है और परिपथ टूट जाता है |

इससे पंखे , बल्ब , फ्रिज , टेलीविजन , ट्रांजिस्टर , मोटर आदि उपकरण जलने से बाख जाते हैं |

विद्युत् – धारा की प्रबलता के जिस मान पर पहुँचते ही फ्यूज गल जाता है , उसे फ्यूज या फ्यूज तार का क्षमताकहते हैं |

 

 

Note :

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