कृषि नोट्स हिंदी | Krishi Class 10 Notes In Hindi | Class 10 Social Science Notes

कृषि नोट्स हिंदी | Krishi Class 10 Notes In Hindi | Class 10 Social Science Notes

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कृषि :

भारत एक कृषि प्रधान देश है | इसकी लगभग दो – तिहाई जनसँख्या अपनी आजीविका के लिए प्रत्यक्ष रूप से कृषि पर ही निर्भर हैं |

कृषि का महत्व :

(i) यह देश के आर्थिक जीवन का प्राण है |

(ii) यहाँ की विशाल जनसँख्या के लिए भोजन कृषि से ही प्राप्त होता है |

(iii) कई उद्योग कृषि पर निर्भर हैं , जैसे – कपास – सूती वस्त्र उद्योग , गन्ना – चीनी उद्योग , जुट उद्योग आदि  |

(iv) कई फसल में भारत का विश्व में महत्वपूर्ण स्थान है |

(v) राष्ट्रीय आय में 24% कृषि का योगदान है |

कृषि भूमि उपयोग : कृषि पर आधारित लोगों के लिए भूमि अत्यंत ही महत्वपूर्ण संसाधन है |

फसलों के उत्पादन में भूमि की गुणवत्ता का भी व्यापक महत्त्व है | जबकि अन्य आर्थिक कार्यों जैसे – उद्योग , परिवहन , आवास में इसकी उतना महत्व नहीं है |

कृषि योग्य भूमि में चार तरह की भूमि सम्मिलित की जाती है –

(i) शुद्ध बोया गया क्षेत्र – 43.41%

(ii) चालु परती भूमि – 7.03%

(iii) अन्य परती भूमि – 3.82%

(iv) कृषि योग्य व्यर्थ भूमि – 4.41%

शस्य गहनता :

जनसँख्या वृद्धि और गैर – कृषि कार्यों में कृषि भूमि के बढ़ते उपयोग के कारण कृषि योग्य भूमि की कमी हो रही है | ऐसी स्थिति में उत्पादन में वृद्धि करने के दो उपाय हो सकते हैं –

(i) उर्वरक , सिंचाई , उन्नत बीजों का प्रयोग करके प्रति हेक्टेयर उत्पादन में वृद्धि |

(ii) एक ही कृषि वर्ष में एक ही भूमि में एक से अधिक फसलों को पैदा करना |

शस्य गहनता को प्रभावित करने वाले कारक :

(i) सिंचाई

(ii) उर्वरक

(iii) उन्नत बीज

(iv) यंत्रीकरण

(v) कीटनाशक

(vi) कृषि उत्पादों का उचित मूल्य

कृषि के प्रकार :

भारत में पायी जानेवाली विविध भौगोलिक एवं सांस्कृतिक परिवेश ने कृषि तंत्र को समय के अनुरूप प्रभावित किया है | इस तरह यहाँ कई प्रकार की कृषि की जाती है |

(i) प्रारंभिक जीविका कृषि

(ii) गहन जीविका कृषि

(iii) वाणिज्यिक कृषि

 (i) प्रारंभिक जीविका कृषि : यह अति प्राचीन काल से की जाने वाली कृषि का तरीका है , इसमें परंपरागत तरीके से भूमि पर खेती की जाती है |

खेती के औजार भी काफी परंपरागत होते हैं , जैसे लकड़ी का हल , कुदाल एवं खुरपी आदि |

इसमें जमीन की जुताई गहराई से नहीं हो पाती है | इसमें जैसे तैसे बीज बो दिया जाता है |

इस प्रकार की खेती में आधुनिक तकनीक के निवेश का अभाव रहता है |

(ii) गहन जीविका कृषि : यह कृषि देश के अधिकांश हिस्से में की जाती है जहाँ भूमि पर जनसँख्या का दबाव अधिक है वहाँ इस प्रकार की पद्धति को अपनाया जाता है |

भूमि की उर्वरता बांये रखने के लिए परंपरागत ज्ञान , बीजों के रख रखाव एवं मौसम सम्बन्धी भी अनेक ज्ञान का इसमें उपयोग किया जाता है |

(iii) वाणिज्यिक कृषि : इसमें फसलें व्यापार के लिए उपजाई जाती है |

इस कृषि में अधिक पूँजी , आधुनिक कृषि तकनीक का निवेश किया जाता है |

आधुनिक कृषि तकनीक में अधिक पैदावार देने वाले संकर बीज , रासायनिक खाद , सिंचाई , रासायनिक कीटनाशक आदि का उपयोग किया जाता है |

फसल प्रारूप :

भारत में विभिन्न प्रकार की फसलें विभिन्न ऋतुओं में उपजाई जाती है | ऋतू के आधार पर फसलों को तीन भागों में बाँटा गया है –

(i) रबी फसल : इसे जाड़े के महीने में अक्टूबर से दिसम्बर के मध्य बोया जाता है  और ग्रीष्म ऋतू में अप्रैल से जून के मध्य कटा जाता है |

प्रमुख फसलगेंहू , जौ , चना , मटर , मसूर, सरसों, आदि |

(ii) खरीफ फसल :  खरीफ फसल भारत में वर्ष ऋतू में बोई जाती है और सितम्बर – अक्टूबर में काट ली जाती है |

प्रमुख फसल – धान, अन्य फसल – ज्वर , बाजरा , कपास, सोयाबीन आदि |

(iii) जायद फसल (गरमा) : इसकी खेती ग्रीष्म ऋतू में मार्च अप्रैल से मई जून के बीच अल्प अवधि में की जाती है |

प्रमुख फसल – धान,मकई और सब्जियां ली खेती की जाती है जैसे – खीरा , ककड़ी, कद्दू,नेनुआ, खरबूज आदि

भारत की प्रमुख फसलें :

(i) खाद्य फसल

(ii) दलहन फसल

(iii) रेशेदार फसल

(iv) पेय फसल

(v) नकदी फसल

खाद्य फसल :

चावल :- चावल भारत की प्रमुख फसलों में से एक है , चीन के बाद भारत का चावल के उत्पादन में विश्व में दूसरा स्थान है |

प्रमुख उत्पादक राज – पश्चिम बंगाल

भारत विश्व का 22% चावल उत्पादन करता है |

चावल की कृषि के लिए अनुकूल भौगोलिक दशाएँ निम्नांकित है –

(i) तापमान यह उष्ण कटिबंधीय फसल है अतः इसकी उपज के लिए अधिक तापमान (24℃ – 27℃) की आवश्यकता है |

(ii) वर्षा 125 सेमी० से 200 सेमी०

(iii) मिटटी चिकायुक्त दोमट मिटटी

गेंहु : यह भारत की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण खाद्य फसल है |

भारत विश्व का दूसरा बड़ा उत्पादक देश है जो विश्व का 10% गेंहु उत्पादन करता है |

प्रमुख उत्पादक राज्य – पंजाब , हरियाणा , उत्तर प्रदेश |

गेंहु शितोषण कटिबंधीय फसल है |

तापमान – 10 से

वर्षा – 50 – 75

मक्का : यह भी एक अन्य महत्वपूर्ण खाद्य फसल है |

इसका उपयोग मनुष्य के भोजन एवं पशुओं के चारा के रूप में किया जाता है |

मक्का 50 – 70 सेमी० से 100 सेमी० वर्षा वाले क्षेत्र में उगाया जाता है |

कम वर्षा वाले क्षेत्र में सिंचाई की मदद से यह फसल उगाई जाती है |

मक्का को 21 –  27 तापमान की आवश्यकता होती है |

ज्वार : इसकी खेती उन क्षेत्रों में होती है जहाँ चावल और गेंहु की खेती नहीं की जा सकती है |

यह वर्षा पर निर्भर फसल है |

इसका सबसे बड़ा उत्पादक राज्य महाराष्ट्र है |

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बाजरा : यह पशुओं का प्रमुख आहार है |

इसे बलुआ और उथली काली मिट्टी पर अधिकांश उगाया जाता है |

सबसे बड़ा उत्पादक राज्य गुजरात है |

अन्य राज्य – राजस्थान , उत्तर प्रदेश , महाराष्ट्र

रागी : यह शुष्क प्रदेश की फसल है |

यह लाल , काली , बलुआ दोमट और उथली काली मिट्टी पर अच्छी तरह उगाया जाता है |

सबसे बड़ा उत्पादक राज्य कर्णाटक है |

दलहन :

दलहन फसलों का मानवीय जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है | इन फसलों से मानव शरीर को प्रोटीन जैसे महत्वपूर्ण विटामिन की प्राप्ति होती है |

प्रमुख दलहन फसलें – तुर(अरहर) , उड़द , मूँग , मसूर , मटर , चना |

दालें खरीफ तथा रबी दोनों ऋतुओं में उगाई जाती है |

अरहर , मूँग , उड़द खरीफ फसल है |

चना , मटर , मसूर , रबी फसल है |

दलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए “राष्ट्रीय दाल विकास कार्यक्रम” 1986 – 87 में शुरू किया गया |

तिलहन :

भारत विश्व का सबसे बड़ा तिलहन उत्पादक देश है |

मूँगफली , सरसों , नारियल , तील , सोयाबीन , भरंडी , बिनौला , अलसी और सूर्यमुखी आदि भारत में उगाई जाने वाली प्रमुख तिलहन है |

मूँगफली : यह भारत का प्रमुख तिलहन फसल है |

भारत विश्व में मूँगफली का दूसरा बड़ा उत्पादक देश है |

प्रमुख उत्पादक राज्य – गुजरात , आंध्रप्रदेश , कर्णाटक , महाराष्ट्र |

सरसों : इसके अंतर्गत राई , सरसों , तरिया , तारामीरा आदि कई तिलहन शामिल हैं |

यह रबी उपोषण कटिबंधीय फसल है |

इसका प्रमुख उत्पादक राज्य राजस्थान है |

अलसी (तीसी) : यह एक अन्य रबी तिलहन फसल है | इसका कई औद्योगिक उपयोग है |

पेय फसल :

चाय :- यह सदाबहार झाडी होती है जिसकी पत्तियों को सुखाकर चाय बनाई जाती है |

इसमें थीन (Theine) नामक एक पदार्थ होता है जिसके कारण इसे पिने से हलकी ताजगी महसूस होती है |

यह भारत का एक महत्पूर्ण पेय फसल है |

चाय के उत्पादन में भारत विश्व का दूसरा तथा खपत में यह विश्व का सबसे बड़ा देश है |

यह रोपण कृषि के अंतर्गत आता है |

प्रमुख क्षेत्र – असम की ब्रह्मपुत्र एवं सुरमा घाटी , पश्चिम बंगाल में दार्जिलिंग तथा जलपाइगुड़ी की पहाड़ियाँ तथा तमिलनाडु में नाल्गिरी की पहाड़ियाँ |

कॉफ़ी :- चाय की तहर यह भी एक पेय पदार्थ है , यह एक प्रकार की झाड़ी पर लगे हुए फल के बीजों द्वारा प्राप्त किया जाता है |

कॉफ़ी की तीन प्रमुख किस्मे हैं –

(i) अरेबिका – भारत में उत्तम किस्म की अरेबिका कॉफ़ी उगाई जाती है |

यह भारत में आरम्भ में यमन से लाया गया था और बाबाबुदनकी पहाड़ी पर लगाया गया था |

(ii) लिबेरिका

(iii) रोबस्ता   

कर्णाटक भारत का प्रमुख कॉफ़ी उत्पादक राज्य है |

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रेशेदार फसलें :

कपास , जुट सन और प्राकृतिक रेशम भारत के चार प्रमुख रेशेदार फसलें हैं |

कपास :- भारत को कपास का मूल स्थान कहा जाता है | सूती वस्त्र उद्योग के लिए यह कच्चा माल प्रदान करता है |

कप्स उपोषण तथा उष्ण कटिबंधीय पौधा है |

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जुट :- जुट भारत की दूसरी महत्पूर्ण रेशेदार फसल है |

इसे सुनहरा रेशा भी कहा जाता है |

जुट द्वारा रस्सी , चट , एवं बोरा आदि बनाया जाता है |

बागबानी फसलें :

विभिन्न प्रकार के फल,सब्जियाँ , कंदमूल , औषधीय एवं सुगंधदायक पौधे एवं मसाले आदि बागबानी फसलें हैं |

अखाद्य फसल :

रबर :- भारत में इसकी बगानी कृषि 1880 ई० में ट्रावनकोरऔर अंडमान – निकोबार में प्रारंभ हुआ |

  इसके प्रमुख उत्पादक राज्य – केरल, तमिलनाडु, कर्णाटक , अंदमान – निकोबार द्वीपसमूह और मेघालय |

भारतीय कृषि के निम्न उत्पादकता के मुख्य करक :

(i) जनसँख्या का कृषि भूमि पर निरंतर बढ़ता दबाव |

(ii) घटता कृषि भूमि क्षेत्र |

(iii) खेतों का छोटा आकार |

(iv) भू – स्वामित्व प्रणाली |

(v) सिंचाई की कम और अनिश्चित सुविधाएँ |

(vi) मानसूनी वर्षा की अनिशिचत्ता |

(vii) कृषि योग्य भूमि का निम्नीकरण |

(viii) कम पूंजी निवेश |

(ix) आधुनिक कृषि तकनीक का सिमित उपयोग |

(x) कृषि उत्पादों का उचित मूल्य न मिलना |

  खाद्य सुरक्षा :

भारत में जहाँ निर्धनता अधिक व्याप्त है वहाँ भुखमरी की समस्या है, इसके  निराकरण के लिए सर्कार ने खाद्य सुरक्षा प्रणाली बनाई है | इसके प्रमुख दो अंग हैं –

(i) बफर स्टॉक

(ii) जन वितरण प्रणाली (पी० डी० एस)

वर्धन काल  :- फसल के बोने – बढ़ने और पकने के लिए उपयुक्त मौसम वाला समय वर्धन काल कहलाता है |

हरित क्रांति :- हमारे देश की कृषि में क्रांतिकारी विकास | इसमें मुख्यतः नए बीज , खादों और उर्वरक का प्रयोग तथा सुनिश्चित जलापूर्ति की व्यवस्था के फलस्वरूप कुछ अनाजों की उपजों में अधिक वृद्धि हुई है |

रोपण कृषि :- बड़ी – बड़ी आर्थिक इकाइयों में व्यापारिक उत्पादन के लिए एक या एक से अधिक किस्म के पौधों के रोपण की पद्धति |

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